पुस्तक समीक्षा
पुस्तक : आत्मकथाएं: साहित्यिक परिवेश
कवि : डॉ. सुरेन्द्र कुमार
प्रकाशक : कलमकार पब्लिशर्स, नई दिल्ली
पृष्ठ-182
मूल्य : रु. 300.
हरियाणा विद्यालय शिक्षा विभाग में हिन्दी प्राध्यापक डॉ. सुरेन्द्र कुमार की ‘आत्मकथाएं: साहित्यिक परिवेश’ साहित्यकारों के जीवन में झांकने वाली एक बेहतरीन किताब है। रामदरस मिश्र, हंसराज रहबर, हरिवंश राय बच्चन, गोपाल प्रसाद व्यास, उपेन्द्रनाथ अश्क, डॉ. नगेन्द्र, रामविलास शर्मा, काका हाथरसी, ओम प्रकाश वाल्मिकी सहित कितने ही साहित्यकारों की आत्मकथाओं के जरिये उनके प्रसंग इस किताब में संजोए गए हैं। साहित्यकारों के आपसी संबंधों और विशेष घटनाओं का किताब में विवरण ही नहीं है, बल्कि उनके साहित्य के प्रेरक तत्वों की समीक्षा भी है। किताब को छह अध्यायों में बांटा गया है, जिनमें पहला अध्याय ‘काव्य लेखन का साहित्यिक परिवेश’ है। यह अध्याय किताब के सबसे अधिक पन्ने ले गया है। इसका एक कारण तो यह लगता है कि लेखक खुद काव्य-रसिक है और उसकी कवियों व उनकी कविताओं में दिलचस्पी है। अध्याय में विभिन्न कवियों की पूरी की पूरी कविताओं को उनके संदर्भों और लिखे जाने की परिस्थितियों के साथ शामिल कर दिया गया है। दूसरा कारण यह भी लगता है कि पुस्तक का हिस्सा बने अधिकतर साहित्यकार लेखन की शुरूआत काव्य लेखन से ही करते हुए दिखाई देते हैं।
लेखक कहता है- ‘बच्चन, नगेन्द्र, अमृतलाल नागर, गोपाल प्रसाद व्यास, बेचन शर्मा उग्र, काका हाथरसी, निराला प्राय: सभी रचनाकारों ने काव्य लेखन के द्वारा ही साहित्य के क्षेत्र में कदम रखा।’ बच्चन तो मानते हैं कि उन्हें तनाव से मुक्ति काव्य सृजन से मिलती है। यहां तक कि वे परीक्षा में ध्यान भी तभी लगा पाते हैं, जब वे कविता लेखन के तनाव से मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। किताब को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लेखक विभिन्न कवियों के प्रसंग हमें रोचक भाषा और शैली में सुना रहा हो। पाठक उनके साथ-साथ आगे बढ़ता है। पहले अध्याय में कुछ कवियों के बारे में तो बहुत ही विस्तार से हमें विभिन्न प्रसंग पढऩे को मिलते हैं। हरिवंश राय बच्चन के स्कूली दिन, कॉलेज व विश्वविद्यालय में पढऩे के दिन, पत्नी श्यामा की बीमारी, उनकी मृत्यु, सुमित्रानंदन पंत सहित अन्य कवियों के साथ उनके संबंध, उन पर गांधी जी का प्रभाव, खद्दर प्रचारक टीम का गठन, राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत गीतों की रचना, उन्हें गाना, जवाहर लाल नेहरू द्वारा उनका गीत सुनना, गांधी जी की मृत्यु पर उनका दुखी होना, क्रांतिकारी महिला श्रीकृष्ण प्रकाशों से मिलना, नेहरू की मृत्यु सहित कितने ही प्रसंगों का जिक्र किताब में है। इन प्रसंगों के साथ जुड़ी उनकी कविताएं भी हैं। इसी प्रकार से काका हाथरसी के जीवन-प्रसंगों व कविताओं का भी विस्तृत परिचय किताब में मिलता है। हाथरसी की हास्य कविताओं का पाठक खूब आनंद उठाते हैं। आजाद हिन्द फौज पर आधारित गोपाल प्रसाद व्यास की कविताएं लोगों में आजादी की चेतना पैदा कर रही थी। उनकी कविताएं आज भी युवाओं की जुबान पर सवार रहती हैं-
वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन न रवानी है,
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं है पानी है।
इसी तरह गांधी जी और चरखे से प्रेरित होकर लिखी गई उनकी कविताएं भी सभी को खूब आकर्षित करती हैं- कातो चरखा मिले सुराज, यों कहते गांधी महाराज, या चरखा चक्र सुदर्शन है, जन-जन का आकर्षण है। विभिन्न कवियों के काव्य-संग्रह और उनके समय के कवि सम्मेलन साहित्य और कविता के लिए माहौल का निर्माण करते हुए लोगों में चेतना का निर्माण कर रही थी।
दूसरे अध्याय ‘गद्य लेखन का साहित्यिक परिवेश’ में कहानी, उपन्यास और नाटक आदि गद्य विधाओं पर आधारित किताबों के प्रसंग पढऩे को मिलते हैं। ‘साहित्यिक परिवेश व हिन्दी भाषा’, ‘साहित्यकारों का फक्कड़पन और पत्रकारिता’, ‘आलोचना की पृष्ठभूमि’ और ‘अनुवाद से संवाद’ शीर्षक अध्याय अपनी संक्षिप्तता व सारगर्भिता के कारण पाठकों पर विशेष प्रभाव अंकित करते हैं। पूरी किताब विभिन्न किताबों का निचोड़ प्रस्तुत करती है और पाठकों को साहित्यकारों के जीवन, उनकी बहुविध रचनाओं की पृष्ठभूमि के साथ ही अनूठा रसास्वादन करवाती है। लेखक को उनकी बेहतरीन किताब के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ। आशा है उनकी रचनात्मकता यूंही विकास करेगी और आगामी किताबों में पाठकों को दिखाई देगी।
लेखक अरुण कुमार कैहरबा समीक्षक एवं हिंदी प्राध्यापक हैं।
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