मेरी मौत पर न रोना मेरी सोच को बचाना
मेरे लहू का केसर मिट्टी में न मिलाना
मेरी भी जिंदगी क्या बस बूर सरकंडे का
आहों की आंच काफी तीली भी न जलाना
एकबारगी ही जलकर मैं न चाहूं राख़ होना
जब-जब ढलेगा सूरज कण-कण मेरा जलाना
घेरे में कैद होना मुझको नहीं मुआफिक
यारों की तरह अर्थी सड़कों पे ही जलाना
जीवन से मौत तक हैं आते बहुत चौराहे
मुश्किल हो जिस पे चलना उसी राह पर ले जाना
2. पंछी भर इक नई परवाज़ !
भर इक नई परवाज़ पंछी! भर इक नई परवाज़!
जितने छोटे पंख हैं तेरे उतने लम्बे राह हैं तेरे तेरी राहों में आखेटक ने किया है गर्द-गबार पंछी! भर इक नई परवाज़
जिस टहनी पर वास तेरा है उस टहनी का हाल बुरा है तेरे उड़ने से पहले कहीं उड़ न जाये बहार पंछी! भर इक नई परवाज़
झनक-झनक निकली हथकड़ियाँ पर तूने जोड़ी नहीं कड़ियाँ तेरे बच्चों तक फैला है बाजों का प्रहार पंछी! भर इक नई परवाज़
तू लोहे में चोंच मढ़ाकर डाल-डाल पर नज़र गड़ाकर खेतों में बिखरे चुग्गे का बन जा पहरेदार पंछी! भर इक परवाज़
3. किसको वतन कहूँगा ?
हर जगह लहूलुहान है धरती हर जगह कब्रों-सी चुप पसरी अमन कहाँ मैं दफ़न करूँगा मैं अब किसको वतन कहूँगा
तोड़ डाली नानक की भुजाएं पकड़ खींच दी शिव की जटाएं किसको किसका दफ़न कहूँगा मैं अब किसको वतन कहूँगा
ये जिस्म तो मेरी बेटी -सा है ये कोई मेरी बहन के जैसी किस -किस का मैं नग्न ढकूंगा मैं अब किसको वतन कहूँगा
कौन करे पहचान मां-बाप हर इक लाश दिखे एक जैसी किस-किस के लिए कफ़न मैं लूँगा मैं अब किसको वतन कहूँगा
लगी सिसकने चांदनी रातें खत्म हुई दादी मां की बातें बीते का कैसे हवन करूंगा मैं अब किसको वतन कहूँगा
ले ज़ज्बात (संभाल) मेरे सरकार वापिस कर मेरे गीत-प्यार इच्छायों का कैसे दमन करूंगा मैं अब किसको वतन कहूँगा।
4. जेल में दशहरा
जलाया तो आज भी गया है त्रेतायुग के रावण का पुतला दिखाया तो आज भी गया है दिल्ली से सेंट्रल जेल के कैदियों का रोष रावण तो हम आज भी यहाँ कैद हैं जिन्हें घोषित किया गया है नीच, चांडाल,राक्षस उर्फ़ समाजविरोधी अंसर और जो कर रहे हैं अपनी सुनहरी मातृभूमि के अस्सी प्रतिशत भूखे मेहनतकशों की बात रावण के पुतले के सामने खड़े हैं बहुत बेबस बनकर हे महान स्त्री! हम 'कलियुग के रावण' लेते हैं तेरी आबरू का हलफ़ हम तेरी पवित्रता की नहीं होने देंगे अग्निपरीक्षा 'सरबत के भले की कामना' करने वाले राम की तरह हम 'कलियुग रावण' नहीं कटने देंगे 'सोनागाची' और जी बी रोड पर बहनों की इज्जत की नाक और हम नहीं करने देंगे 'विभीषण' उर्फ़ सी आई ए को अपने वतन की मुखबरी हे सुनहरी मातृभूमि! केवल 'लक्ष्मण' के लिए नहीं बोई जाती तेरे पर्वतों पर संजीवनी और केवल 'लक्ष्मण' की मूर्छा पर ही क्यों उपलब्ध हों 'सुखनवैद्य' की सेवाएं ! हम तो कलियुगी रावण हैं जो कर रहे हैं अपनी सुनहरी मातृभूमि के अस्सी प्रतिशत भूख से मर रहे लोगों की बात हे कण -कण प्रकाशित करने वाले सूर्यदेव कितनी तेज़ थी हनुमान की दाढ़ झेल न सकी जो 'बाली' की गदा का एक ही वार हे पवनपुत्र हनुमान! क्या 'अशोवाटिका' में कैद सीता 'अंजना' जैसी नहीं ? अपने मतलब के लिए खाए होंगे राम ने भीलनी के बेर एक नीच की रची 'बाल्मीकि रामायण की तरह' हां, हम कलियुगी रावण बोल रहे हैं! जिन्हें बीज बोने से फल आने तक पौधों को छूने की पूरी छूट है पर भ्रष्ट हो जाता है फल जब उस तरफ बढ़ते हैं हमारे हाथ और अपवित्र हो जाती हैं दक्षिण की तमाम नदियाँ जब हमारे होठों की तरफ बढती है पानी की अंजुरी हां हमने ही की है द्राविडों, संथालों, आदिवासियों और कबाइली लोगों की बात और हम हरगिज़ नहीं लेने देंगे 'बिरला मन्दिर' की छाया में बैठे ऋषियों को चैन और हरगिज़ नहीं जलाने देंगे रावण के पुतले के बहाने अख़बारों में नुमायाँ भगत सिंह, बन्दा बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह की तस्वीरें
(15 अक्तूबर 1975 सेंट्रल जेल ,पटियाला )
5. अभी
अभी न आई मंज़िल तेरी, अभी अँधेरा गाढ़ा है हिम्मत कर अलबेले राही,अभी फासला ज़्यादा है।
अभी मुसव्विर छाप नहीं सका, दर्द भरी तस्वीरों को अभी मिस्त्री तोड़ नहीं सका इन मजहबी जंजीरों को अभी इश्क का कासा खाली, भीख हुस्न ने डाला नहीं मानवता के दरवाजे पर कोई रांझा मांगने आया नहीं
हर दिल में है शिकवे, चिंता हर दिल में ही साड़ा(जलन) है अभी बहारें नहीं चहकी हैं अभी अँधेरा गाढ़ा है।
अभी किरत की चोंच है खाली,कामचोर मौज उड़ाते हैं मुल्ला, पण्डित, भाई, धर्म के ठेकेदार कहलाते हैं अभी मानव की काया पर, साया है जागीरों का है अभी मानुख नहीं मालिक बना, अपनी तकदीरों का
अभी बेबस जिस्म का, मिलता यहाँ पर भाड़ा है अभी न सोयी जनता जागी, अभी अँधेरा गाढ़ा है
अभी तो यहाँ लोगों के अरमान भी बेचे जाते हैं अभी तो पैसे पैसे में, ईमान भी बेचे जाते हैं
अभी तो पर्वत जस का तस है अभी न तेज़ कुल्हाड़ा है अभी न 'शीरी' हाथ बंटाया, अभी अँधेरा गाढ़ा है
अभी तो हिंसा खुला चर रही अमन-अमन के नारे बदले अभी तो दुनिया नरक भोग रही, जन्नत के इक लारे बदले
अभी न काले बादलों में, चमकी कोई किरण सुनहरी बेशक़ मंत्र याद हमारे, अभी बांधनी साँपिन ज़हरी
अभी तो रब्ब को बतलाना है वो जनता से माड़ा(कमज़ोर)है अभी न हूटर बजा साथियों, अभी अँधेरा गाढ़ा है।
6. गीत
देश है प्यारा हमें ज़िंदगी प्यारी से देश से प्यारे इसके लोग साथियों हम तोड़ देंगे हम तोड़ देंगे लहू पीनी जोंक साथियों
हमारी फसलों का नूर,चढ़े देखकर सरूर तोड़ देंगे गरूर, तेरा ज़ोर कामचोर अब चलेगा नहीं अब चलेगा नहीं, तेरा ज़ोर कामचोर
गरजेंगे शेर जब, भागेंगे कायर सभी भरपेट खाएंगे किरती-किसान फिर से ज़रा हल्ला मारो ज़रा हल्ला मारो किरती-किसान जुड़ के
रूठी हुई बहारें हम मोड़कर ले आएंगे कहते हैं लोग छाती ठोंक साथियों तूफान जनता का तूफान जनता कौन सके रोक साथियों
बनके घटाएं हमने धरती पर बरसना है धो डालेंगे गुबार जो है हवा में सिर काटने हैं सिर काटने हैं बीसवीं सदी के रावण के
कामचोरों ने मज़ा लिया है आज़ादियों का कामगारों की ज़िंदगी मुहाल हुई है तेरे जुल्मों की तेरे जुल्मों की, ज़ालिम आख़िरी घड़ी आई है
सुन लो कागो, हम टांग देंगे उल्टे तुम्हें घुघुती के बच्चों को मारने वालों रोटी बच्चों के रोटी बच्चों के हाथों से छीनने वालो
किरणों का घोंसला तो बनेगा आकाश में भंवरा वसेगा बीच नए युग का हमें स्वर्ग का हमें स्वर्ग का झांसा अब नहीं जँचता
देश है प्यारा हमें ज़िंदगी प्यारी से देश से प्यारे इसके लोग साथियों हमने तोड़ देनी हमने तोड़ देनी लहू पीनी जोंक साथियों ।
7. एक श्रद्धांजलि-एक ललकार
चढ़ने वालो हकों की भेंट तुम्हें श्रद्धा के फूल चढ़ा रहा हूँ तुम्हारी याद में बैठकर दो घड़ी एक-दो प्यार के आँसू बहा रहा हूँ
तुम्हें मिलेगा समर्थन संसार में से नींव रखी है तुमने कहानियों की सौगंध लेते हैं हम जवानियों की कीमत अदा करेंगे कुर्बानियों की
जहाँ गए हो हमें भी आए समझो जलती लाट अब ठंडी नहीं होने देनी गरम रखेंगे दौर कुर्बानियों का लहर हकों की विधवा नहीं होने देंनी
खेलना जानते हैं तूफानों की छाती पर सिर पर ज़ुल्म की जीत नहीं होने देंगे सम्राज्यवाद की मंडी 'गर हिन्द बना अब इसे लाशों मंडी नहीं होने देंगे।
8. वारिसों के नाम
हमारा अम्मियों ज़रा न फ़िक्र करना हमें ज़िंदगी सुर्खरू करने देना हम जन्मे हैं आह की लपटों से हमें सेंक जुदाई का सहन करने देना
हमारे भाइयों को रोककर घरों में ज़िंदा मारना नहीं हमारी आब माता भगत सिंह की माँ बेशक बनना बन जाना न कहीं पंजाब माता
हमारे सिरों पर निश्चय रखो बापू नंगी होने नहीं देंगे पीठ तेरी बूँद-बूँद जवानी कुर्बान करके हल्की करेंगे गमों की गठरी तेरी
हमने सड़कों पर लाठियों की आग तापी लेकिन हकों को ठंड लगवाई तो नहीं हमारा कातिल ही कच्चा निशानची था हमने गोली से पीठ बचाई तो नहीं
नाहक भ्रम है हमारे कातिलों को कि हम होंगे दो या चार बापू बदला लेने पर भी जो टूटेगी नहीं इतनी लंबी है हमारी कतार बापू
हमारे हकों को मकई अब हुई जवान कामचोर रेवड खेतों में न घुसने देंगे नरम भुट्टों के सुर्ख तन को हम लूट का ताप नहीं चढ़ने देंगे।
9. रखवालों
ओ खेतों वालो! ओ देशों वालो !! सूअर तुम्हारे खेत चर गए खेतों के रखवालों !!!
मैंने चखा साग बिदर का नमक भी जिसमें नहीं है पुत्तर लेकर भूखी माँ दर-दर पर भटक रही है जीवन का मोल कौन उतारे, आज कीमत वालों ओ खेतों वालों!
आज आदमखोर, फिरकापरस्ती भाई-भाई लड़वाए कौनसा लक्ष्मण आकर शूर्पणखा को तीर लगाए धर्म और सरमाया एक ही, सुन लो! श्रद्धा वालों! ओ खेतों वालों!
मेहनत के सरोवर पर आ मुड़ते हँस प्यासे हैं दो पल भी कोई मान न देता खाली दिल के कासे हैं मेहनत का फल कामचोर खाते, सुनो मेहनत वालों!
ओ खेतों वालो! ओ देशों वालों!! सूअर तुम्हारे खेत चर गए खेतों के रखवालों!
10. दुनिया भर के कामगारों
मेहनत लुटवाने वालो, सब एक हो जाओ,एक हो जाओ! जिस्म तुड़वाने वालो सब एक हो जाओ, सब एक हो जाओ
आग धधके जब कांगो में तो, लपटें वियतनाम में निकलें हड्डियां जलें जब फिलिस्तीनियों की रोष कम्बोडिया में फैले मरे जब अमरीकी कामगार, चीनी माँ के आँसू छलके पाकिस्तानी पढ़ें नमाज़ें, सजदा करें तिलक-जनेऊ पूंजीपति की पूंजी में, अपना महंगा लहू न गंवाओ एक हो जाओ! एक हो जाओ!!
इंग्लैंड या अमेरिका, हैं साम्राज्यवाद का एक खासा करें गुदगुदी भारत में, बंग्लादेश देश में पहुंचे ठहाका धरती माँ की छाती पर कौन खींचेगा आज लकीरें सरहदों की गांठ न बांधो, सुनो छलकते दिल की चीखें जन्नत के झांसे पर, ज़िंदगी को झांसे में न लगाओ एक हो जाओ! एक हो जाओ!!
सरहदों पर खतरा बताकर अपनी नीयत छुपाई जाती तुम्हें मुर्गे की तरह लड़वाकर, खून की नदी बहाई जाती कौमियत के तुच्छ स्वार्थ की, तुझको ज़हर पिलाई जाती तेरे कैद खून की तुमसे, होली है खिलवाई जाती कौन है अपना कौन पराया, लक्ष्मण की सी टेक लगाओ एक हो जाओ! एक हो जाओ!!
पूंजीपति की मर्ज़ी है कि, तू लड़ता रहे, तू मरता रहे धर्म, क़ानून, जाति का डंडा, तू उठाता रहे, रखता रहे फ़ौज,पुलिस के साये में, बनते रहें सब महल-मुनारे रहे कड़कड़ाती बिजली, चूँ न करें कुल्ली औ'ढारे सांझा करो लहू औ' पसीना, और लोहे का पहरा लगाओ एक हो जाओ! एक हो जाओ!!
जिस इज़्ज़त पर तू हाथ उठाए, वो तेरे ही भाई-सी है तू जिसके राँझा को मारे, वो तेरी ही हीर-सी है तू रोटी से व्याकुल होकर, जिस भाई पर ताने दुनाली पेट टटोलकर देखना उसका, वो भी है रोटी से खाली अपनों से बंदूक हटाकर, छुपे डाकुओं की ओर घुमाओ एक हो जाओ! एक हो जाओ!!
ज़न कवि संत राम उदासी की जमीनी कविताएं पढ़ते हुए लाल सिंह दिल की बहुत याद आई…!!!
जल्द ही लाल सिंह दिल की कविताएं प्रकाशित की जाएंगी।