तेंदुआ- अमित मनोज

अमित मनोज

हाल फिलहाल जंगल से सटे रिहाइशी इलाकों में तेंदुओं के घुसने की ख़बरों में बढ़ोतरी हुई है। असल सवाल यह है कि कहीं आदमी तो तेंदुओं के रिहाइशी इलाके में नहीं घुस रहा? जंगल के प्रति मनुष्य की इसी क्रूरता और अंधे लालच को बेपर्दा करते हुए यह कहानी आगे बढती है। अमित मनोज ने इस कहानी के जरिए वन्य जीवों के प्रति गाँव शहर की असंवेदनशीलता पर प्रश्न उठाया है।

तेंदुए रोज उदास उठते। वे जंगल से लगातर और दिखते असामान को लेकर चिंतामग्न रहते। कोई चारा न देख एक दिन सब तेंदुए इकट्ठे हुए।

मंच पर जैसे ही एक बूढ़ा तेंदुआ आया, सभा में मची अशांति शांति में बदल गईं। सब तेंदुए बिना कुछ पूछे बूढ़े तेंदुए से पूछ रहे थे कि दादाजी आज पंचायत क्यों बुलाई।

बूंढे तेंदुए ने गला खंखारा और कहना शुरू किया- ‘प्यारे भाइयो, बहनो और बच्चो। आज मैंने तुम्हें एक खास मकसद से बुलाया है। तुम जानते ही हो कि आज हम भय के वातावरण में किस तरह जी रहे हैं। आदमी ने हमारे घर और तेजी से उजाड़ने शुरू कर दिए हैं। यही रफ्तार रही तो एक दिन किसी भी जगंल में कोई पेड़ शेष न बचेगा और हम…..’ बूढ़ा तेंदुआ भावुक हो गया।

-‘फिर क्या उपाय करें दादा जी।’ सामने बैठे एक तेंदुए से रहा नहीं गया।

-‘तुम पहले मेरी बात पूरी सुनो। आज के बाद शायद ही मैं तुम्हें कभी संबोधित कर पाऊं। मेरे जीवन के तो दो-चार साल ही बचे हैं, जैसे-तैसे ये भी कट जाएंगे। पर , तुम्हारे सामने अभी पूरा जीवन बाकी है। अब जंगलों में तुम्हारे रहने की जगह नहीं है। आदमी तय करने लगा है कि जंगलों में कौन रहेगा। रोज अखबारों में तेदुंओं, चीतलों, दूसरे जंगली जानवरों के जंगल से भागने के समाचार देखने को मिलते हैं। इसलिए हे प्यारे दोस्तों। तुम अपना जीवन बचाने के लिए संघर्ष करो। आदमी को डराओ। खुद बचो और जंगल बचाओ। उसी में तुम्हारी कामयाबी है। जीवन है। जय जंगल। जय पृथ्वी।’

सभा विसर्जित हो गई थी।

दादाजी के संबोधन में बहुत कुछ छुपा था। सब उनका अर्थ अच्छी तरह जान गए थे। आदमी को सबक सिखाने के लिए कुछ तेंदुए सिर पर कफन बांध जंगलों से भाग बस्तियों की ओर रवाना हो गए थे।

श्यामपुरा गांव जंगल से बीसेक किलोमीटर की दूरी पर था। गांव छोटा ही था और इन दिनों यहां किसी तरह की कोई चर्चा नहीं थी। रात को आराम से सोया गांव सुबह भी आराम से उठा था। सूरज के आने में काफी वक्त था। जंगल-झाड़ी जाने वाले पानी की बोतलें ले खेतों की ओर चल पड़े थे।

दयानंद को कहीं जाना था तो उसने गांव के जोहड़ की पाल पर ही अपना लंगोट खोल लिया था। जोहड़ में पानी नहीं था। पिछली तीनों पंचायतें इसी जोहड़ की राजनीति को लेकर बनती-बिगड़ती रही हैं। दयानंद पाल पर बैठा ही था कि उसे जोहड़ के एक कोने में कुछ होने का आभास हुआ। थोड़ा-सा उजाला और हुआ तो उसने समझा कि कोई जंगली बिलाव है। पर यह तो बिलाव से बहुत बड़ा था। दयानंद का सारा ध्यान इसी बिलाव पर लग गया। वैसे भी वह कब्ज से परेशान रहता था। घंटों बैठकर ही उसे पेट साफ करने में सफलता मिलती थी। आज तो मामला ही सारा उलट गया था।

दयानंद को बैठे-बैठे एक छेड़खानी सूझी। उसने पाल पर से एक पत्थर उठाया और जोर से बिलाव की तरफ फेंका। पत्थर बिलाव के लगा तो नहीं, पर उसके पास पड़ने से वह हरकत में आ गया।

दयानंद खड़ा हो गया। आज भी वह ठीक से निबट नहीं पाया। उसने जल्दी-जल्दी पानी से अपने हाथ धोए और पायजामे का नाड़ा गांठ मारकर भीतर की और ठूंस लिया। पाल पर खड़ा वह राह चलतों को साफ नजर आने लगा था। सूरज के आने से पहले का उजाला सारे अंधेरे मिटा रहा था।

दयानंद ने इधर-उधर देखकर एक पत्थर और उठाया और उसे भी बिलाव की तरफ जोर से और निशाना बांध कर फेंक दिया। जाने बात क्या थी कि उसके सारे निशाने नाकामयाब हो रहे थे, जबकि वह तो पहले बड़ा निशानेबाज था। बेरोजगारी से क्या पाला पड़ा, निशाने-विशाने सब भूल गया।

दयानंद ने एक और पत्थर उठाकर फेंका। आने-जाने वाले दयानंद की ये हरकतें देख उत्सुक हुए और एक-एक कर पाल पर जुड़ने लगे। निशाना इस बार चूका नहीं था। पत्थर बिलाव की पीठ पर लगा। बिलाव एकदम से बिदका और वह दयानंद की ओर एकटक देखने लगा।

पाल पर चढ़े लोग भी इस तमाशे में शामिल हो गए। जो भी आता कोई बिलाव कोई शेर कहता। कोई धमका देता कि शेर ऐसा थोड़े न होता है। शक्ल ही देख लो। बिल्ली जैसा है। बिलाव है बिलाव। जंगली बिलाव। जंगल से भागकर आया है। कोई लगे हाथ गाली भी दे रहा था। बिलाव को। जंगलों को, और जंगल हड़पने वाले दलालों, माफियों को।

पाल पर चढ़े लोगों ने भी उसे तंग करने के लिए रुक-रुक कर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। किसी का निशाना चूक रहा था तो किसी का अचूक भी था। पत्थर किसका भी होता। सब महसूस करते कि उसी का पत्थर लगा है। पत्थर लगने की खुशी मुंह से भी जाहिर होती-लगी न साले के। हाल यह हुआ कि बिलाव के आंख-मुंह-नाक चोटिल हो गए और बिलाव गुस्से में हो गया।

उधर, सारे गांव में एक बहुत बड़े बिलाव के आने की खबर आग की तरह फेल गई। गांव के लिए यह बिन पैसे का तमाशा था, इसलिए महिलाओं व नौकरी-पेशा वालों को छोड़कर सब तमाशा देखने के लिए घरों से निकल पड़े।

बिलाव ने भी तमाशे को जरा और रोचक बना दिया। वह जोहड़ से निकलकर लोगों की ओर भागा तो लोगों ने शोर मचाकर उसे दूर भगाना चाहा। इस शोर मचाने में उनका इकट्ठा हुआ झुंड फट गया था और बिलाव के पीछे भागने वाले इन्हीं लोगों में थे। यह बहुत खतरनाक बात थी कि एक बड़ा-सा बिलाव गांव में इस तरह घुस गया था। बस बचाव की बात यह थी कि बिलाव से अभी कोई घायल नहीं हुआ था। दहशत में आ बिलाव गांव की गलियों में भागने लगा।

जिसे भी पता लगा, वह अपना घर बंद कर या तो धर में ही दुबकने लगा था या बाहर आकर तमाशे में शामिल होने लगा। लोग अपने घरों में भाग-भाग लंबे-लंबे लठ और जेली-कुल्हाडे़-गंडासे ले आए। सबका एक ही मकसद हो गया था कि किसी भी तरह बिलाव को पकड़ा जाए।

बिलाव लोगों को रह-रहकर दिखता। वे उस पर पत्थर फेंकतें। बिलाव डर के मारे और तेज भागता।

लोगों में एक प्राइमरी स्कूल का मास्टर भी था। वह बिलाव के इस तरह तंग करने के विरुद्ध था। उसने लोगों को समझाने की कोशिश की- ‘यह बिलाव नहीं तेंदुआ है। किसी जंगल से भागकर अपने प्राण बचाने आया है। इसे यूं तंग मत करो। हम भिवानी के चिड़ियाघर में फोन कर देंगे। वे खुद आकर ले जाएंगे इसे । इस तरह मत बिर्चाओ। मानो मेरी बात…..’

लोग सब तरह के थे। किसी को मास्टर जी की बात अच्छी भी लगी। किसी को नहीं भी।

मास्टर जी ने खुद कुछ करने की सोची। उन्होंने अपने किसी जानकार से चिड़ियाघर का फोन नम्बर लेना चाहा। वे खड़े-खड़े मोबाइल से बात करने लगे।

तेंदुआ भागकर गांव के पशु अस्पताल में घुस गया। लोगों को मौका मिल गया। उन्होंने अस्पताल में ही तेंदुए को घेरने की योजना बना ली। लाठी-जेली लिए लोग अस्पताल की चारदीवारी पर बैठे गए। तेंदुआ अस्पताल के एक खाली पड़े कमरे में घुस गया। तीन-चार जनों ने पत्थरों से कमरे की तरफ कई वार किए। एक पत्थर तेंदुए के ठीक सिर पर लगा। लगते ही उसका सारा सिर खून से सन गया। तेंदुए ने लोगों की भीड़ को एकबारगी देखा। सब लोग मारो-काटो की स्थिति में थे। तेंदुआ घबरा गया। उसने कमरे से बाहर की ओर रुख किया।

लोग पहले से ही तैयार बैठे थे। तेंदुआ कभी इधर भागने लगा, कभी उधर। कहीं सुरक्षित जगह न देखकर उसने सामने की दीवार की तरफ छलांग लगा दी। लोग डर गए। तेंदुए की छलांग में दो-तीन आदमी घायल हो गए। तेंदुआ फिर से गांव में भाग गया। इस बार उसने सामने से आती एक महिला पर धावा बोल दिया। महिला रोयी-चिल्लायी। लोग उसे बचाने भागते, तब तक वह घालय होकर जमीन पर गिर गई।

तेंदुए की तरफ शोर मचाता लोगों का टोल पहुंचा। तेंदुआ फिर गायब हो गया।

गांव वाले अभी तक जिसे तमाशा मान रहे थे, अब एक मुसीबत में फंस गए थे। तेंदुए ने कई जनों को बुरी तरह से जख्मी कर दिया था।

मास्टर जी ने चिड़ियाघर को फोन कर दिया था, लेकिन डेढ़ घंटा बीत जाने के बाद भी उधर से कोई कौआ तक उड़कर न आया था।

असल में चिड़ियाघर के लिए भी यह एक नयी मुसीबत थी। कहने को तो वहां एक टीम थी जिसका काम जंगली जानवरों को ही वश में करना था, पर कभी उसकी जरूरत नहीं पड़ी थी । श्यामपुरा गांव में तेंदुआ घुस आने की खबर से चिड़ियाघर में अफरा-तफरी मच गई थी। एकबारगी तो उन्हें समझ में ही नहीं आया कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। फिर भी ड्यूटी तो ड्यूटी थी।

उधर, गांव वालों ने भी पास के शहर की पुलिस चौकी में भी इत्तला कर दी थी। पुलिस ने ऐसे में कुछ न कर पाने की असमर्थता जाहिर करने के बावजूद गांव में पहुंचने को कह दिया था, पर पहुंची वह भी नहीं थी।

टीम इंचार्ज भारी तनाव में आ गया। उसने अपने साथियों को श्यामपुरा गांव चलने को कहा और घंटे भर की मशक्कत के बाद वे एक पुरानी-सी जीप में गांव चलने को तैयार हुए।

फोटो – साभार इन्टरनेट

गाँव को उम्मीद थी कि चिड़ियाघर वालों के आते ही सबकुछ यूं चुटकियों में ही हो जाएगा। लेकिन उनकी उम्मीद उस वक्त टूट गई थी जब उन्हें पता लगा कि उपने साथ लाए उनके हथियारों ने काम करना छोड़ दिया है और चिड़ियाघर वाले सालों से बिना प्रशिक्षण के बिर्चे हुए जानवरों को पकड़ना भूल गए हैं।

टीम आने के बाद भी तेंदुआ वश में नहीं आया। उसने आदमियों के साथ-साथ कई पशुओं को भी नुकसान पहुंचा दिया था।

आई हुई टीम के हाथ-पांव फूल गए थे। वे अपने साथ कुछ रस्से-वस्से भी लेकर आए थे। लेकिन बात सिर्फ रस्सों से ही नहीं बननी थी, उसके लिए साहस चाहिए था और तकनीक व तरकीब भी कि तेंदुए को किसी तरह जाल में फंसा लिया जाता। तेंदुआ उनके लिए एक चुनौती बन गया था।

टीम के मुख्य अधिकरी ने गांव वालों से सलाह मिलायी कि वे मिलकर तेंदुए को पकड़ेंगें। गांव वाले किसी भी तरह तेंदुए से पीछा छुड़वाना चाहते थे, इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे।

पुलिस वालों की समझ से यह सब बाहर था। वे अपने आप को तेंदुए के हमलों से बचा रहे थे।

तेंदुए ने एक और अटैक कर दिया था। इस बार उसने अपने निशाने पर टीम के साथ आए मुख्य अधिकारी को लिया था। तेंदुआ गली में किसी के मकान की छत से कूदा था और एक झपट्टे से अधिकरी की खोपड़ी को फाड़ दिया था। दृश्य इतना डरावना था कि देखने वाले सब जने भय से कांपने लगे थे और अपने-अपने देवी-देवताओं के स्मरण के लिए आसमान की ओर देखकर गुहार कर रहे थे कि कैसे भी हो, इस विपदा से बचाओ प्रभु।

टीम वाले भी बुरी तरह घबरा गए थे। अपने साथ लायी बंदूक से वे दो-तीन बार हवाई फायर भी कर चुके थे ताकि तेंदुआ डर कर गांव छोड़कर भाग जाए, पर तेंदुआ डर से निकल गया था। वह लोगों को डरा रहा था। उसके मन में बहुत सारा गुस्सा था और वह मौका देख-देखकर लोगों को नुकसान पहुंचा रहा था।

टीम को आदेश नहीं थे कि वे तेंदुए को मारते। उनके साथ आए अधिकरी की हालत बहुत गंभीर थी। गांव के ही तीन-चार जने अपना निजी वाहन में घायल अधिकारी को लेकर भिवानी की ओर प्रस्थान कर चुके थे।

टीम और गांव वालों ने मिलकर तय किया कि ऑफ द रिकार्ड तेंदुए को मार दिया जाए। वह पगला चुका है। जिंदा रहेगा तो जाने क्या गुल खिलाएगा।

लोगों ने अपने-अपने हाथ जेली-गंडासों-लाठियों पर कस लिए थे और वे किसी तरह तेंदुए को मारकर अपनी विजय का उत्सव मनाना चाहते थे। लोगों में यह होड़ लगी थी कि किसके वार से तेंदुआ मरे ताकि पीढ़ियों में उसका नाम रहे और गांव के किस्सों में वह सदा जीवित रहे।

लोग अपने देसी हथियारों के साथ तेंदुए को मारने के लिए जुट गए थे। एक बड़ा-सा घेरा पूरे गांव ने बना लिया था। टीम और कुछ लोग तेंदुए की तरफ भागते। तेंदुआ उनकी तरफ छलांग लगाता। लोग अपनी लाठी-जेली-गंड़ासे हवा में घुमाते।  तेंदुआ हर बार घायल होता। लोग भी तेंदुए के वार से बच नहीं रहे थे।

सब लोगों को हरकत में देख तेंदुआ भी घबरा गया था। उसकी हिम्मत जवाब देने को थी। लोग जोर से हू-हू करते तो तेंदुआ डर कर इधर-उधर भागता।

लोगों ने तेंदुए को वश में कर लिया था। तेंदुआ कई जगहों से घायल हो गया था। गलियों में तेंदुए और लोगों के खून के धब्बे साफ दिख रहे थे।

तेंदुआ थक गया था। कुल्हाड़ों-गंडासों से उसके कान-वान काट कर फेंक दिए थे। जेलियां उसके शरीर में यहां-वहां घोंप दी गई थीं।

तेंदुआ हार गया था। वह अपनी निरीह आंखों से सबको समझाने की कोशिश कर रहा था- तुमसे मेरी क्या दुश्मनी दोस्तो ! तुम हमारे घर मत उजाड़ो, हम बस्तियों में नहीं आएंगे।

लोग तेंदुए की कोई बात नहीं सुन रहे थे।

वे बहरे थे और अंधे भी।

पूरा गांव तेंदुए को तड़पते देख विजयोत्सव मना रहा था।

तेंदुए की आंखें सदा के लिए बंद हो गई थी।

मीडिया के लोग जैसे तैयार ही बैठे थे। तेंदुए के मरते ही वे अपने-अपने कैमरों के साथ मैदान में कूद पड़े थे। कैमरों के सामने लोग अपनी बहादुरी पर इतरा रहे थे और भविष्य के किस्सों में सदा अमर होने के लिए बढ़-चढ़कर अपने बारे में बता रहे थे।

2 Comments

(Hide Comments)
  • Vinod kumar

    April 17, 2024 / at 4:45 pmReply

    Excellent description

  • Vinod kumar

    April 17, 2024 / at 4:46 pmReply

    Thanks

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