सन् 1887 में सावित्रीबाई फुले के पति जोतिबा फुले को अंधरंग हो गया था। अपने जीवन के अंतिम तीन साल उन्होंने बिस्तर पर गुजारे। सावित्रीबाई फुले व सत्यशोधक समाज के कार्यकर्ताओं ने उनका इलाज करवाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इस दौरान सावित्रीबाई फुले ने उनकी खूब सेवा की। 28 नवम्बर सन् 1890 को सावित्रीबाई फुले के पति जोतिबा फुले का देहांत हो गया।
क्या आप जानते हैं कि भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने अपने पति को मुखाग्नि दी थी। भारतीय समाज में यह क्रांतिकारी कदम था। जहां आज भी महिलाओं को कमजोर दिल की माना जाता है और शमशाम भूमि में नहीं जाने दिया जाता।
अपनी वसीयत में जोतिबा फुले ने यह इच्छा व्यक्त की थी कि मृत्यु के बाद चिता पर जलाया न जाए उन्हें नमक से ढंक कर दफनाया जाय। लेकिन नगरपालिका के अधिकारियों ने आवासीय भूमि पर शव को दफ़नाने की अनुमति नहीं दी इसलिए शव-दाह किया गया।
सावित्रीबाई फुले और जोतिबा फुले की अपनी संतान नहीं थी। इन्होंने अपने बाल हत्या प्रतिबंधक गृह में पैदा हुए बच्चे को गोद लिया था और इसका नाम यशवंत रखा था। जोतिबा फुले ने अपनी वसीयत में उत्तराधिकार के समस्त अधिकार यशवंत को दिए थे।
एक परंपरा यह थी कि जो व्यक्ति अंतिम यात्रा में ‘तित्वा’ (मिट्टी का छोटा घड़ा) उठाकर चलता, वही मृतक का उत्तराधिकारी माना जाता था और मृतक की संपति प्राप्त करता था। संपति के लालच में जोतिबा फुले के भतीजे (भाई के लड़के) ने यशवंत को दत्तक पुत्र बताकर ‘तित्वा’ उठाने पर विवाद किया और रक्त संबंधी होने के कारण इसे निभाने का दावा किया। इस विवाद में सावित्रीबाई फुले स्वयं ‘तित्वा’ उठाकर चली और अपने पति जोतिबा फुले का अंतिम संस्कार किया। शायद यह भारत की पहली महिला थी जिसने अपने पति को मुखाग्नि दी। जिस समाज में स्त्रियों का श्मशान भूमि में जाना तक वर्जित हो उसमें यह साहसिक कदम ही कहा जाएगा।
Gurdeep Bhosle
👏🙏