उपजे एक बूंद तै का बामन का सूद। मूरख जन ना जानई सबमैं राम मौजूद।। रविदास जन्म के कारनै होत न कोऊ नीच। नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।’ उन्होंने जाति की बजाय अच्छे गुणों से मनुष्य की पहचान करने का संदेश देते हुए कहा- ‘रविदास बामण मत पूजिये, जो होवे गुन हीन। पूजिऐ चरन चंडाल के, जऊ होवे गुन परवीन।’
रविदास ने भगवान का नाम लेकर भी लोगों को बांटने और एकता को समाप्त करने की साजिशों का पर्दाफाश किया और अलग-अलग नाम से एक ही भगवान होने का संदेश देते हुए हिन्दू-मुसलमान को एक होने की बात कही। उन्होंने कहा- ‘ रविदास हमारो साईयां राघव राम रहीम। सबही राम को रूप है ऐसो कृष्ण करीम।। रविदास हमारे राम जोई सोई है रहमान। काबा कासी जानिये दोऊ एक समान।। रविदास देखिया सोधकर सब ही एक समान। हिन्दु मस्लिम दोऊ का सृष्टा एक भगवान।। मुसलमान सो दोस्ती हिन्दुअन से कर प्रीत। रैदास सबमैं जोति राम की सब हैं अपने मीत।।’
गुरु रैदास संत, समाज सुधारक व विचारक होने के साथ-साथ राजनैतिक चेतना से सम्पन्न थे। वे जानते थे कि दलित-वंचित लोगों के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा के जरिये सत्ता के दरवाजे खुल सकते हैं। उन्होंने लोगों को शिक्षित होने की अपील की और साथ ही ऐसी राजनैतिक व्यवस्था की परिकल्पना पेश की, जिसमें सबको बराबर के मौके मिलेंगे। वे कहते हैं-‘बेगमपुरा शहर को नांव, दुख अंदोह नहीं तिस ठांव। न तसवीस खिराज न माल, खौफ खता न तरस जवाल।..जहां सैर करो जहां जी भावै, महरम महल न कोय अटकावै।’ बेगमपुरा का उनका विचार एक बेहद क्रांतिकारी विचार था। रैदास की प्रसिद्धि से परेशान कुछ लोगों ने दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी से उनकी शिकायत की। लोदी ने रैदास जी को गिरफ्तार करवा कर दिल्ली दरबार में बुला लिया। बताते हैं कि वहां लोदी के साथ रैदास जी की बातचीत हुई। रैदास ने बड़ी बेबाकी से अपने राजनैतिक, सामाजिक विचार उनके सामने रखे। उनके विचारों से लोदी प्रभावित हुआ और उन्हें रिहा कर दिया।
संत रविदास जैसे क्रांतिकारी कवि व समाज सुधारकों के जीवन व विचारों को विकृत करने के लिए अनेक प्रकार की किवंदतियां गढ़ी गई हैं। उनके विचारों के विपरीत उनके साथ ऐसे चमत्कार जोड़ दिए गए हैं, जिनका उन्होंने आजीवन विरोध किया। गुरु रविदास के ऐसे चित्र प्रचारित किए गए, जिसमें उनके हाथ में माला है और माथे पर टीका है। उनके नाम पर मंदिर बनाए जा रहे हैं, वह तो ठीक है, लेकिन मंदिर में कर्मकांडों व पाखंडों का बोलबाला है। ये सब चीजें उनके जीवन व विचारों के साथ मेल नहीं खाती हैं। आज हमें रविदास के साथ जोड़ दिए गए चमत्कारों से नहीं उनके विचारों के माध्यम से उन्हें जानने की जरूरत है।