वीरांगना फूलन देवी, यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लोग फूलन देवी को बेंडिट क्वीन के नाम से भी जानते हैं।
चंबल के बीहड़ों में डकैतों का जीवन जीने वाली फूलन देवी की छवि लोगों के बीच एक डाकू और खराब महिला की ही बन कर रह गई। मगर फूलन देवी की रहस्यमयी जिंदगी में ऐसी बहुत सी रोचक बातें छुपी हैं जिन्हें जान कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं।
महज़ 10 वर्ष में तीन गुनी उम्र के आदमी से शादी, 18 वर्ष की उम्र में 22 ठाकुरों द्वारा रेप किया जाना, 22 कि उम्र में डाकुओं की गैंग में शामिल हो जाना और फिर 11 साल की जेल के बाद राजनेता बन जाने तक का फूलन देवी का सफ़र कई वीभत्स तो कई रोमांचक घटनाओं से भरा हुआ है। आज इन्हीं घटनाओं में से कुछ खास घटनाएं हम आपके सामने रख रहे हैं।
बैंडिट क्वीन के बारे में शायद आपने सुना होगा। एक महिला, एक डकैत, एक रेप सर्वाइवर, एक नेता और एक विक्टिम। यहां उस महिला के बारे में बात हो रही है जिसकी जिंदगी और मौत ने समूचे भारत, खासकर जो जातिगत वर्चस्व स्थापित किए हुए था, को हिलाकर रख दिया था।
फूलन देवी पर बनी फिल्म ‘द बैंडिट क्वीन’ भी बहुत चर्चित रही है। कुछ लोगों के हिसाब से फूलन देवी एक निर्मम हत्यारी थी और कुछ के हिसाब से वह एक दबंग महिला और रोल मॉडल थी। इस फिल्म में सीमा बिस्वास का किरदार इतना मार्मिक रहा है कि इसे देखने वाले कई लोग रो दिए थे। फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को हुआ था।
बचपन से ही तेज था स्वभाव
फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के ‘जालौन’ के एक गाँव गोरहा का पूर्वा में 1963 में हुआ था। बचपन से ही फूलन अपने तेज स्वभाव की वजह से पूरे गांव में चर्चित थीं। गरीब परिवार में जन्मी फूलन को जब पता चला कि उसके पिता की जमीन उसके चाचा ने हड़प ली है तो बगावत करने और जमीन वापिस हासिल करने के लिए फूलन ने धरना प्रदर्शन किया। इस बात से घबरा कर फूलन के पिता ने 10 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही उसका विवाह कर दिया। फूलन का विवाह 30 वर्ष एक आदमी से किया गया, शादी की पहली रात ही फूलन के पति ने उसे अपनी हवस का शिकार बना दिया। इसके बाद अपनी हवस मिटाने के लिए फूलन का रोज ही बलात्कार होने लगा। फूलन की तबियत बिगड़ी तो उसे उसके मायके भेज दिया गया।
डाकुओं से करनी पड़ी दोस्ती
अपने गांव वापिस लौटने पर फूलन को सभी से तिरस्कार को सहना पड़ा। गांव के लोग अपनी घर की बेटी बहुओं को फूलन के पास भी नहीं फटकने देते थे। वहीं गांव के किशोर लड़के फूलन को आते जाते छेडते। फूलन जब उन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाती तो पंचायत हमेशा फूलन के खिलाफ ही फैसला सुनाती । फूलन की वजह से उसके पिता का गांव में रहना मुशिकल हो गया था। गांव से जुड़े बीहड़ों में अकेले घूमना फूलन को अच्छा लगने लगा। एक रोज बीहड़ों में टहलते हुए डाकुओं के एक गैंग् से फूलन का परिच हुआ। माला सेन की किताब बेंडिट क्वीन, जिसने बाद में चल कर एक किताब का रूप ले लिया, उसमें भी बाताया गया है कि डाकुओं की एक गैंग के सरदार गुज्जर को फूलन से प्यार हो गया।
मगर फूलन उसे पसंद नहीं करती थी। सरदार ने फूलन को उसके घर से किडनैप कर लिया। इसके बाद सरदार ने फूलन का रेप किया। सरदार के ही गैंग में शामिल एक डाकू विक्रम को भी फूलन से प्यार था। सरदार जब फूलन का रेप करता विक्रम का खून खौल जाता। एक दिन उसने सरदार की हत्या कर दी और खुद गैंग का सरदार बन बैठा। विक्रम ने फूलन से शादी भी की। मगर वे दोनों ज्यादा दिन साथ नहीं गुंजार पाए। सरदार गुज्जर की गैंग के कुछ लोगों ने एक दूसरी ठाकुर डाकुओं की गैंग के साथ मिल कर विक्रम की हत्या कर दी।
कई बार हुई दुष्कर्म की शिकार
विक्रम की हत्या के बाद ठाकुर गैंग के लोगों ने फूलन पर बहुत अत्याचार किए। सबसे खौफनाक घटना का जिक्र करते हुए माला सेन ने अपनी किताब में लिखा है कि फूलन को 2 हफ्तों से भी ज्यादा समय तक नग्न अवस्था में रखा गया था। हर दिन गैंग के 22 लोग फूलन का बारी-बारी से तब-तक बलात्कार करता था जब तक वो बेहोश नहीं हो जाती। इसके बाद एक दिन फूलन को गैंग के सरदार ने नग्न कर पूरे गांव के आगे बाल पकड़ कर मारते-पीटते घुमाया। इतना अत्याचार सहने के बाद भी फूलनदेवी ने जिंदगी से हार नहीं मानी। सामान्य तौर पर आम लड़की आत्महत्या कर लेती लेकिन वीरांगना फूलन देवी वहां से मौका मिलते भागने में सफल हुई।
इस भयानक अपमान, दर्द-उत्पीड़न ने फूलन देवी को अंदर तक झकझोर डाला। इन्होंने प्रण कर लिया कि जबतक इस जातीय वर्चस्व को कुचल न देगी तब-तक चैन से न बैठेगी।
अपने आत्म सम्मान को समूचे महिलाओं के सम्मान के साथ जोड़ा इसलिए
अपनी डाकुंओं का एक गैंग तैयार की और उन 22 बलात्कारी ठाकुरों को उसी बेमई गाँव में घर से खींच कर चौराहे पर लाइन से खड़ा कर गोली से मौत के घाट उतार दिया।
फूलन ने जेल में बिताए 11 साल
फूलन के साथ हुए अत्याचारों ने उसे बेखौफ और संवेदनहीन बना डाला था।
22 ठाकुरों की हत्या के बाद उसके नाम से भी लोग कांपने लग जाते थे।
फूलन देवी को सम्पन्न पुरुषवादी सामाजिक व्यवस्था ने तो बदनाम कर ही दिया था। हत्याओं, डकैती और अपहरण की घटनाओं को अंजाम देने के बाद लोगों के बीच उसकी छवि एक महिला डकैत की बन गई थीं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने फूलन देवी से आत्मसमर्पण की अपील की जिसपर फूलन देवी ने संज्ञान लिया और समर्पण की बात कुछ शर्तों के साथ की जिसमें पुलिस के सामने समर्पण नही होगी उसके साथ चार और शर्तें रखीं:
1.एक वादा कि आत्मसमर्पण करने वाले उसके गिरोह के किसी भी सदस्य पर मृत्युदंड नहीं लगाया जाएगा.
2.गिरोह के अन्य सदस्यों के लिए कार्यकाल आठ वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए।3.जमीन का एक प्लॉट उसे दिया जाए.
4.उसके पूरे परिवार को पुलिस द्वारा उसके आत्मसमर्पण समारोह का गवाह बनाया जाना चाहिए.
एक निहत्थे पुलिस प्रमुख ने उनसे चंबल के बीहड़ों में मुलाकात की। उन्होंने मध्य प्रदेश के भिंड की यात्रा की, जहाँ उन्होंने गांधी और देवी दुर्गा के चित्रों के समक्ष अपनी राइफल रखी। दर्शकों में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के अलावा लगभग 10,000 लोग और 300 पुलिसकर्मी शामिल थे। उसके गिरोह के अन्य सदस्यों ने भी उसी समय उसके साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बाद बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया।
1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से (लोकसभा) चुनाव जीता और वह संसद तक पहुँची।
सासंद बनने के बाद महिलाओं के विकास के लिए सदन में कई बातें रखीं बाल विवाह कानून को मजबूत की। दलित-शोषित की बेटी के लिए स्कूल खोलवाई।
शोषित समाज को संगठित करने के लिए एकलव्य सेना की स्थापना की।
25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन देवी की हत्या कर दी गयी। उसके परिवार में सिर्फ़ उसके पति उम्मेद सिंह हैं।
फूलन देवी की 38 साल की उम्र में मौत हुई।
गौतम कुमार प्रीतम
सामाजिक न्याय आंदोलन,बिहार
श्रोत- सोशल साइट्स ।