कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में मिशन के राष्ट्रीय संयोजक प्रो. सुभाष चन्द्र ने शिरकत की। कार्यशाला का संयोजन पंजाबी अध्यापक नरेश सैनी ने किया। देस हरियाणा से जुड़े अरुण कैहरबा के नेतृत्व में सभी प्रतिभागियों द्वारा गाए गए विश्वास गीत के साथ कार्यशाला की शुरूआत हुई। प्रो. सुभाष चन्द्र ने कहा कि समाज में सकारात्मक हस्तक्षेप करने के लिए जनसंवाद महत्वपूर्ण औजार है। एक जन संवादक के सामने संविधान में दिए गए स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक न्याय, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता व सत्य जैसे मूल्य आदर्श हैं। ये मूल्य ही किसी भी वक्तव्य की कसौटी होते हैं। उन्होंने कहा कि जनसभा या फिर नुक्कड़ मीटिगों में जन संवाद करके लोगों को समझाना बेहद चुनौतिपूर्ण कार्य है। मौजूदा व्यवस्था में अपने ही लोगों को समझाना भी आसान कार्य नहीं है। जनसंवादक को सबसे पहले यह तय करना होता है कि वह क्या कहना चाहता है। उसके बाद उसके सामने अपनी बात रखने के तरीकों या औजारों को तय करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। जन संवादक को एक इतिहासकार, दार्शनिक, वकील, लेखक, पत्रकार व धर्मगुरु की तरह काम करना होता है। जिस तरह से एक इतिहासकार संदर्भ का निर्माण करता है व इतिहास की दृष्टि प्रदान करता है, उसी तरह से वक्ता को इतिहास के ज्ञान से संदर्भ लेने होते हैं। एक वक्ता दार्शनिक की ही भांति परिप्रेक्ष्य देता है। वह भविष्य की दिशा प्रदान करता है। समस्याओं के समाधान सुझाता है। भविष्य के प्रति आशा का संचार करता है। वक्ता वकील की तरह अच्छा केस बनाता है। विषय के पक्ष-विपक्ष के विचारों को दृष्टि में रखकर तर्क पेश करता है और विचार को सही दिशा प्रदान करता है। लेखक की भांति वक्ता अपने वक्तव्य में संवेदनशीलता व भावात्मकता का पुट प्रदान करता है, जिससे श्रोता विषय के साथ जुड़ जाते हैं। वक्ता को पत्रकार की भांति ही विवरण देने होते हैं और विषय का विश्लेषण करना होता है। जन संवादक को धर्मगुरु की भांति ही श्रोताओं को नैतिक संबल व सांत्वना प्रदान करनी चाहिए। संकट में आम आदमी को स्नेह व सांत्वना की जरूरत होती है। जन संवादक अहंकार से ग्रस्त ना हो। उसे श्रोताओं या आम जनता को कोसने की बजाय उनमें आशा व उम्मीद का संचार करना चाहिए। उनमें उत्साह जागना चाहिए। ठेस पहुंचाने वाले शब्दों से तो हमेशा ही बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक अच्छे जन संवादक को विषय से जुड़ा रहना चाहिए और भटकाव से बचना चाहिए।
प्रो. सुभाष चन्द के मुख्य वक्तव्य के बाद प्रतिभागियों को चार समूहों में बांटा गया और समूहों ने विषय पर विस्तृत चर्चा की। समूह चर्चा के बाद पहले समूह से किशोर कुमार, दूसरे समूह से सतीश कुमार, तीसरे समूह से योगेश शर्मा, चौथे समूह से जगतार सिंह ने चर्चा का सार व प्रतिभागियों के प्रश्र प्रस्तुत किए। किशोर कुमार ने जन संवाद की कसौटी, साहब सिंह व सतीश ने अपने लोगों को अपनी बात समझाने की चुनौतियों, योगेश शर्मा ने अलग-अलग वर्ग के लोगों को एक ही वक्त में संबोधित करने की चुनौती और जगतार सिंह ने वक्तृत्व के लिए आदर्श समय सहित विभिन्न बिंदुओं पर अपने विचार व्यक्त किए।
मुख्य वक्ता डॉ. सुभाष चन्द्र ने समूह की प्रस्तुतियों और प्रश्रों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यशाला के दूसरे सत्र की शुरूआत में फूल कौर ने कबीर के दोहे गाकर सुनाए। डॉ. सुभाष चन्द्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधी जी ने एक जंतर दिया था कि जो चीज अंतिम व्यक्ति के हित में हो, वह ठीक होती है। जब तक न्याय नहीं होगा, तब तक शांति नहीं हो सकती। हमारा संविधान वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बताता है। उन्होंने कहा कि विचार का निर्माण भाषा में होता है। यदि हम सोचते हैं कि विचार आ गया है, भाषा नहीं आई है तो हम गलत हैं। भाषा के साथ ही विचार आता है। उन्होंने कहा कि अपने परिवार व आस-पास के लोगों के सामने अपनी बात रखना और उसे मनवाना इसलिए कठिन होता है क्योंकि जिससे हम बात कर रहे हैं, वह हमारे विचारों की बजाय हमारी स्थिति को देखने लगता है। हमारे घरों में तो भयंकर संवादहीनता पसरी हुई है। हमारे घर पिछड़ेपन के कारखाने हैं। जन संवाद को परिवारों व समाज के लोकतांत्रिकरण की राह खोलनी चाहिए।
इसके बाद राममेहर ने मेवात में कार्य करने के अपने अनुभव सांझा करते हुए कहा कि मेवात के बारे में बहुत सी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, जिसकी वजह से मेवात की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर ध्यान नही दिया जा रहा। प्राध्यापक वीरभान ने शिक्षा की मौजूदा दशा पर प्रकाशा डाला। सुनील मौर्य ने अपने स्कूली शिक्षा के अनुभव सांझा करते हुए कहा कि भेदभाव के खिलाफ शिक्षा को हथियार बनाने के लिए काम करना बेहद जरूरी है। जगतार सिंह ने कहा कि उन्हें कबीर को पढ़ कर प्रेरणा मिली है। कबीर ने हर धर्म-सम्प्रदाय के अंधविश्वसों और कुरीतियों पर चोट की है। पत्थर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़, ताते ये चक्की भली पीस खाय संसार। कंकड़ पत्थर जोडि़ के मस्जिद लई बनाय, तां चढ़ मुल्लां बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय आदि कबीर के दोहे पढक़र उन्होंने बलि प्रथा पर प्रश्र खड़े किए। उन्होंने कहा कि शिक्षा ने ही उन्हें चेतनशील बनाया है। यदि शिक्षा ना मिली होती तो ना जाने वे किस दिशा में आगे बढ़ रहे होते। फूल कौर ने अपने शिक्षा के अनुभव सांझा करते हुए कहा कि लड़कियों की शिक्षा के मार्ग में आज भी अनेक प्रकार की बाधाएं हैं। किशोर कुमार ने कहा कि कार्यशाला ने वक्ता निर्माण ही नहीं व्यक्तित्व निर्माण की महत्वपूर्ण भूमिका का दायित्व निभाया है।
कार्यशाला के आखिरी सत्र में प्रतिभागियों ने भावी कार्य योजना तैयार की। संयोजक नरेश सैनी ने कहा कि 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव शहीदी दिवस पर करनाल में कार्यशाला में तैयार हुए वक्ता करनाल में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में अपने वक्तत्व रखेंगे। इसी प्रकार 26 मार्च को खंड घरौंडा में एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। कार्यशाला के समापन पर अरुण कैहरबा ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ करवाया। कार्यशाला में विक्रम वर्मा, सुलेख चंद, रिंकू कुमार, बिजेन्द्र कुमार, सतनाम सिंह, रजनीश कुमार, विनोद कुमार, अर्जुन सिंह, सोनू अली, गौरव, सतीश गुढ़ा, सुनील कुमार मौर्य, अक्षय चौरा, विकास, जसविन्द्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
रिपोर्ट: अरुण कुमार कैहरबा