‘स्वतंत्रता, समता, बंधुता मिशन’ की स्थापना

‘स्वतंत्रता, समता, बंधुता मिशन’ भारत

दिनांक 25 फरवरी 2023 को सायं 6 बजे देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, कलाकारों, प्रबुद्ध जनों की बैठक हुई।बैठक की अध्यक्षता प्रोफेसर टीआर कुंडू और प्रोफेसर जगमोहन व प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा ने की। बैठक में देश व समाज की मौजूदा हालात पर चर्चा हुई।

संयोजक प्रो. सुभाष सैनी ने मीटिंग की शुरुआत करते हुए कहा कि भारत के लोगों ने एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करते हुए एक गरिमा पूर्ण जीवन का सपना देखा था। इसके लिए स्वतंत्रता समता बंधुता को संवैधानिक मूल्यों के रूप में अपनाया था। इन महान मूल्यों को स्थापित किए बिना कोई समाज सुखी नहीं हो सकता। चर्चा में रेखांकित किया कि समाज में धर्म, जाति व अन्य अनेक विषयों को लेकर समाज में संकीर्णता, नफरत, द्वेष बढ़ रहा है तथा झूठ-भ्रम फैलाया जा रहा है। देश की ख़ुशहाली के लिए हर नागरिक को विशेषतः बुद्धिजीवियों को पहल करने की आवश्यकता है। प्रोफेसर सुभाष सैनी ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि ‘स्वतंत्रता, समता, बंधुता मिशन’ चलाया जाए तथा राष्ट्रीय स्तर पर देशभर से बुद्धिजीवियों को जोड़ा जाए।

प्रस्ताव का मसौदा इस प्रकार हैं-

“हम भारत के लोगों ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करते हुए प्रत्येक मनुष्य व समाज के गरिमापूर्ण जीवन के लिए स्वतंत्रता-समता-बंधुता को संवैधानिक मूल्यों के रूप में अपनाया। इन महान मानवीय मूल्यों को स्थापित नहीं किये बिना समाज सुखी-समृद्ध और शांतिपूर्ण नहीं हो सकता। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्त्व राजनीतिक-आर्थिक हितों के लिए समाज में झूठ-भ्रम फैलाकर संकीर्णता, नफरत, द्वेष को बढ़ावा देकर इन मूल्यों को मिटा रहे हैं। इस चुनौती का सामना करने के लिए हम भारत के लोग देश, समाज और समय की जरूरत को समझते हुए अपनी आत्मा की आवाज पर समाज में संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के लिए स्वतंत्रता-समता-बंधुता मिशन, भारत की शुरुआत कर रहे हैं। जिसके उद्देश्य कार्यक्रम निम्नलिखित होंगे।

उद्देश्य –

1. स्वतंत्रता, समता, बंधुता, धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली को प्रोत्साहन।

2. सामाजिक भाईचारा, साम्प्रदायिक सदभाव, सामाजिक न्याय, लैंगिक संवेदनशीलता की स्थापना के प्रयास।

3. जाति, लिंग, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र के आधार पर गैर बराबरी, भेदभाव, अविश्वास को समाप्त करना ।

4. अनुसूचित जातियों, जनजातियों, पिछड़े व अल्पसंख्यक वर्गों सहित देश के प्रत्येक नागरिक के लिए आर्थिक, राजनैतिक व सामाजिक न्याय सुनिश्चित करवाना ।

5. प्रगतिशील समाज सुधारकों, महापुरुषों, संतों के जीवन-आदर्शों व कार्यों के माध्यम से साझी सांस्कृतिक विरासत, मानवतावाद व वैज्ञानिक चेतना का प्रसार ।

कार्यक्रम

• मिशन के उद्देश्यों के लिए बैठकों, सभाओं, सेमिनार, संगोष्ठियों, जन रैलियों, जनसभाओं, कार्यशालाओं तथा सांस्कृतिक उत्सवों-मेलों का आयोजन करना।

• मिशन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु पत्र-पत्रिकाएं, पुस्तिकाओं, पर्चों, डाक्यूमेंट्री का निर्माण-वितरण करना व संचार के अन्य साधनों-माध्यमों को विकसित करना।

• पठन-पाठन की संस्कृति विकसित करने के लिए पुस्तकालयों की स्थापना करना तथा इसे बढ़ावा देने वाली गतिविधियां आयोजित करना।

प्रस्ताव पर चर्चा में प्रोफेसर टीआर कुंडू (कुरुक्षेत्र हरियाणा), प्रोफेसर जगमोहन (लुधियाना, पंजाब), प्रो. हरिमोहन शर्मा(दिल्ली) , डॉ. टेकचंद(दिल्ली), रीतिका (हिमाचल), गगनदीप (हिमाचल), परमानंद शास्त्री (सिरसा हरियाणा), प्रेम यादव (नारनौल, हरियाणा), विक्रम मित्तल (हिसार), बलवान दलाल (हांसी), जयपाल (अंबाला), मंगत राम शास्त्री (जींद, हरियाणा) , सीमा (कुरुक्षेत्र हरियाणा), नीरू (करनाल हरियाणा), अंजू श्योकंद (दिल्ली), मंजीत भोला(कुरुक्षेत्र हरियाणा), जगदीप जुगनू (जींद, हरियाणा) , राजकुमार जांगड़ा(हरियाणा हरियाणा), अरुण कैहरबा (करनाल हरियाणा), गौरव,(कुरुक्षेत्र) विनोद (पानीपत), धीरज गाबा (टोहाना) अविनाश सैनी (रोहतक), रोहतास(हिसार), सुनील थुआ(कुरुक्षेत्र), विकास साल्याण (कुरुक्षेत्र), योगेश (करनाल), गुरदीप (जींद), ब्रजपाल (जींद), लल्लन(चंडीगढ़), विरेंद्र (सोनीपत) समेत कई साथियों ने विचार रखते हुए प्रस्ताव का समर्थन किया।

प्रोफेसर टीआर कुंडू ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि स्वतंत्रता, समता, बंधुता फ्रांस की क्रांति के महान उद्घोषक शब्द हैं। हमारे देश में भी ऐसा वक्त आया हुआ है कि देश के तमाम बुद्धिजीवियों को एक साथ आकर इस मिशन के लिए कमर कसनी होगी। इसी के साथ उन्होंने देश की तरक्की में ‘जाति प्रथा’ एवं ‘अकर्मण्यता’ को सबसे बड़ी बाधा बताया। प्रोफेसर जगमोहन ने 1857 की क्रांति के मूल विचार और शहीद-ए-आजम भगत सिंह के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि हमें एक जाति मुक्त भारत की कल्पना को साकार करने के लिए एकजुट होना होगा। सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक सुरेंद्र पाल सिंह ने कहा कि यह मिशन भारत में चल रहे अनेक छोटे-छोटे समूहों को एक स्थान पर एकजुट करते और उन्हें बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करने का करेगा। इसके सांगठनिक स्वरूप पर विस्तृत चर्चा हुई। राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय परिषद, कार्यकारी मंडल के चयन के संबंध में चर्चा हुई तथा इसी तर्ज पर इसका विस्तार राज्य व जिला स्तर तक किया जाएगा। भविष्य के तीन अभियानों मार्च में भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के शहीदी दिवस, अप्रैल में जोतिबा फुले-आंबेडकर जयंती तथा मई में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के अवसर पर कार्यक्रमों की शृंखला आयोजित करने पर विचार हुआ। 5 मार्च को इस संबंध में कुरुक्षेत्र में कार्यशाला आयोजित करके रूपरेखा बनाने का निर्णय लिया। इस विचार से सहमत समस्त संगठनों-संस्थाओं-व्यक्तियों से मिशन के साथ जुड़ने की अपील करते हैं।

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