मैं लिखता हूँ कविताएँ चाँद पर,
इसलिए नहीं कि चाँद
अब तक के कवियों का
प्रिय विषय है, और मैं
उनका अनुसरणकर्ता हूँ।
बल्कि इसलिए कि
चाँद पहुँचता है आज भी
पोषक बनकर किसान की फ़सलों में,
रोशनी बनकर झोंपड़ियों, फ़ुटपाथों पर,
दूर-दराज़ के दुर्गम गाँवों में,
आदिवासियों के जंगलों में,
और भी अनेक ऐसी जगहों पर
जहाँ दुनिया का कोई लोकतन्त्र
आज तक नहीं पहुँच पाया।
~रास
करनाल (हरियाणा)
परास्नातक अंतिम वर्ष का छात्र
जामिया मिल्लिया इस्लामिया