भारत के अलावा दुनिया के किसी अन्य देश में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता देश के लोग जन्म के आधार पर इतनी जातियों में बँटे हों ।
कि एक ही हिन्दुओं के बीच जाति-व्यवस्था के तहत लोगों को प्रमुख तौर पर चार जातियों – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बाँटा गया है। यह व्यवस्था उन लोगों में प्रचलित है, जो आर्य सिद्धान्तों को मानते हैं; कहते हैं कि वे ‘ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं। हर व्यक्ति जानता है कि इस सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मण शीर्ष पर हैं और उसके बाद शेष जातियाँ क्रमश: निचले क्रम में। इनमें से आखिरी यानी शूद्र को सर्वाधिक निम्न स्तर का माना जाता है। इसके बावजूद इतनी अधिक जातियों की मौजूदगी की वजह क्या है? ऐसा इसलिए, क्योंकि लोग ईश्वर के अनुसार वर्ण में बँटे हुए थे; वे धीरे-धीरे पथ-भ्रष्ट हुए और मिश्रित वर्ण के होने लगे । वर्णों के आपस में मिल जाने के कारण अलग-अलग जातियों का उदय हुआ। ऐसी चूकों के बाद प्रत्येक वर्ण पर नैतिक संहिता लागू की गई । हम यह भी देखते हैं कि ऐसे जातीय विचलन व भेद के बाद पंचम (सर्वाधिक निचली) जाति अस्तित्व में आई।
ऐसे सूत्रों ने यह भी कहा कि हमारे देश में अनेक महत्त्वपूर्ण जातियाँ ऐसे ही आपसी मेलजोल से सामने आईं। उच्च जाति के लोग पथभ्रष्ट हुए इस और अपने नैतिक मानकों से डिगे, तो इसके परिणामस्वरूप पंचम जाति यानी सबसे पिछड़ी जाति अस्तित्व में आई । यह भी कहा जाता है कि तमिलनाडु में लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण वेलाला जाति पंचम जाति में आती है और जाति के लोग उन ब्राह्मण और क्षत्रिय युवतियों की सन्तान हैं, जिन्होंने अन्य वर्ण के पुरुषों के साथ मेल किया। यह भी कहा जाता है कि इन वेलाला लोगों में से जो लोग खेती से अपनी आजीविका अर्जित करते, तो इनको ‘कनियालार’ कहा जाता; अगर ये प्रशासनिक पद सँभालते, तो इनको ‘वेलन सामन्तर’ कहा जाता। सुप्रा भूतकम, ब्रह्मा पुराणम, वैकंसम, माधवीयम और सतीविलक्कम जैसी पुस्तकों में इस वर्गीकरण के बारे में जानकारी दी गई है।
अगर एक ब्राह्मण किसी वैश्य युवती के जरिये बच्चे पैदा करता, तो उनको अंबत्तन कहा जाता और अगर ऐसे बच्चे विवाहेतर सम्बन्धों से पैदा होते, तो उनको ‘कुयवार ‘ (कुम्भकार) और ‘नविता’ (नापित) कहा जाता।
हिन्दी व पंजाबी विभाग के अध्यापक
इसी तरह अगर एक ब्राह्मण व्यक्ति किसी शूद्र स्त्री से समागम कर बच्चे पैदा करता, तो ऐसे विवाह से उत्पन्न बच्चों को बरदवार अथवा सेंबतवार कहा जाता और जो बच्चे विवाह के रिश्ते से बाहर पैदा होते उनको ‘वेत्तईकरन’ अथवा ‘वेदुवर’ कहा जाता।
इसी तरह अगर ब्राह्मण युवती क्षत्रिय पुरुष से सम्बन्ध बनाकर बच्चे पैदा करती, तो उनको ‘सवर्ण’ अथवा ‘तेलंगर’ कहा जाता। अगर शूद्र व्यक्ति किसी ब्राह्मण युवती के साथ रहता, तो इस सम्बन्ध पैदा होने वाले बच्चों को ‘चांडाल’ कहा जाता । अगर चांडाल किसी ब्राह्मणी के साथ रहता है, तो इस रिश्ते से पैदा होने वाले बच्चों को ‘चमार’ अथवा ‘सकिलियार’ (चमड़े का काम करने वाला) कहा जाता । अगर चांडाल किसी क्षत्रिय युवती के साथ रहता, तो इस दौरान पैदा होने वाले बच्चों को ‘वेनुगर’ (बाँसुरी बजाने वाला), कनगर (स्वर्णकार), सेलर ( बुनकर) आदि कहा जाता ।
इसी प्रकार अगर ‘अयोवह जाति’ की लड़की ( एक ऐसी जाति, जो निम्न और उच्च वर्ग की संकर जाति थी) निषादों से सम्बन्ध स्थापित कर बच्चे पैदा करती, तो उनको ‘भार्गव’ कहा जाता । इस तरह कई जातियों के नाम सम्बन्धी नियम चलन में थे। इन नियमों को अभिज्ञान कोसाक, अभिज्ञान चिन्तामणि और हिन्दू पंडितों द्वारा उल्लिखित अन्य पुस्तकों में देखा जा सकता है। इसके अलावा चार प्रमुख जातियों के अलावा उन तमाम अन्य जातियों को कमतर माना जाता, जिनकी सन्तानें किसी उच्च वर्ण की स्त्री और निम्न वर्ण के पुरुष अथवा निम्न वर्ण की स्त्री और उच्च वर्ण के पुरुष के रिश्ते से पैदा होतीं । इसके अलावा विवाह के रिश्ते से बाहर पैदा हुए बच्चों को चेट्टियार और असरियार कहा जाता । इनको अवमाननापूर्ण ढंग से भी सम्बोधित किया जाता ।
ऐसे में अगर हम जाति-व्यवस्था को कायम रखते हैं, तो इसका अर्थ यह होगा कि हम इन अपमानजनक टिप्पणियों को परोक्ष रूप से स्वीकार कर रहे हैं ।
( अंग्रेजी से अनुवाद : पूजा सिंह)
– जाति व्यवस्था और पितृसत्तात्मकता – पेरियार
(रिपब्लिक, सम्पादकीय : (कुदी आरसु) 16 नवम्बर, 1930 )