05 मई 2022 को हिन्दी विभाग कु.वि.कु. और देस हरियाणा पत्रिका के सहयोग से भारतीय नवजागरण व हिन्दी साहित्य विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. कृष्ण कुमार शामिल हुए। व्याख्यान की अध्यक्षता प्रोफेसर सुभाष चंद्र जी ने की और मंच संचालन श्री विकास साल्याण जी ने किया।
प्रोफेसर कृष्ण ने बताया “साहित्य समाज से पैदा होता है। जिस जाति व समुदाय को अपनी स्वतंत्रता को बोध नहीं वह आजाद रहकर भी मानसिक गुलाम रहता है और भविष्य में उसके लुप्त होने सम्भावना बढ़ जाती है। उन्होंने बताया भारतीय समाज में नवजागरण से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ जो रास्ता जाता है उसमें विभिन्न साहित्यकारों, क्रांतिकारियों और समाज-सुधारको की क्या भूमिका रही है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय साहित्यकार उस समय की अन्य समस्याओं पर प्रहार कर रहे थे। गांधी, नेहरू और अन्य नेताओं को भी बाद में ज्ञात हुआ की जो हम कर रहे हैं, वो साहित्य पहले से ही कर रहा था। अगर आप साहित्य को समझना चाहते हैं तो लोक साहित्य का अध्ययन करना शुरु कर दीजिए। भारत जैसे देश को न तो संस्कृत, न अंग्रेजी और न हिन्दी से नहीं बल्कि सिर्फ उसकी लोक भाषाओं से समझा जा सकता है। साहित्यकारों के पास अंतर्दृष्टि होती है जिससे वह वर्तमान और भविष्य की घटनाओं का अंदाजा लगा लेता है। मुक्तिबोध ने जो उस समय लिखा वह आज घटित हो रहा है बस यही एक साहित्यकार की विशेषता होती है जिससे वह वर्तमान परिस्थितियों का अध्ययन कर भविष्य को देखता है।
जो भी बड़ा साहित्यकार या भाषाविद् होता है वह लोगों की आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करता है और यही उसकी खूबसूरती होती है। जिसकी भाषा में स्पष्टता नहीं है तो उसके जीवन में भी स्पष्टता नहीं होती। जो काम परवर्ती साहित्यकार नहीं कर पाए उसे करना आज के साहित्यकारों का दायित्व है। भक्तिकाल स्वतंत्रता आंदोलन का अभिन्न अंग है, उसके बिना यह काम अधूरा रहेगा। स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने का काम या अपनी अस्मिता को पहचानने का काम भक्तिकाल से ही शुरु हो गया था।”
इसके उपरांत गुरदीप भोसले, कपिल भारद्वाज, नरेश दहिया, रजत, दिनेश आदि विद्यार्थियों व शोधार्थियों ने डॉ.कृष्ण से सवाल जवाब किए। अध्यक्षीय टिप्पणी में प्रोफेसर सुभाष चंद्र जी ने कहा “कृष्ण कुमार जी ने अपनी बातें सूत्र शैली में रखकर इतने बड़े विषय को कम शब्दों में कहने का प्रयास किया। दोस्तों बात कहने की दो शैलियां होती हैं, सूत्र शैली और पुराण शैली। सूत्र शैली में बात को कह देना ही विद्वान की पहचान होती है। मुझे उम्मीद है की यह व्याख्यान आपके जीवन में मुख्य भूमिका निभाएगा और आप बार-बार इस व्याख्यान को याद करेंगे। आप सबने प्रश्न पूछे ये भी इस बात की तरफ इशारा है की आप कुछ न कुछ सीख रहें हैं, प्रश्न पूछना ही अपने आप में बड़ी बात है। अगर आपके पास प्रश्न हैं तो आपका जीवन सफल है।” कार्यक्रम के अंत में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ. जसबीर जी ने व्याख्यान में पहुंचने पर सभी का हार्दिक अभिवादन किया। इस मौके पर हिन्दी विभाग के विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे।
