कबीर : हमारे समय के झरोखे में

विकास साल्याण, मंच संचालन के दौरान (अध्यापक हिन्दी विभाग, कु.वि.कु.)

आज कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में देस हरियाणा के सहयोग से और हिंदी विभाग व पंजाबी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में “कबीर : हमारे समय के झरोखे में” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में मंच संचालन विकास साल्याण ने किया और अध्यक्षता प्रोफेसर सुभाष सैनी ने की। जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर प्रोफेसर अशोक सभ्रवाल (अध्यक्ष हिन्दी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगड़) , प्रोफेसर सुभाष सैनी (अध्यक्ष हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र), डॉक्टर कुलदीप (अध्यक्ष पंजाबी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) सिंह मौजूद रहे।

आरंभ में हिन्दी विभाग कु.वि.कु. के शोधार्थी कपिल भारद्वाज व नरेश दहिया ने संक्षिप्त रूप में अपने विचार प्रकट किए और साथ ही हिन्दी विभाग के छात्र गुरदीप भोसले ने कबीर के दोहों का गायन किया।

प्रोफेसर अशोक सभ्रवाल जी वक्तव्य देते हुए।


अशोक सभ्रवाल ने अपने वक्तव्य में बताया कि आज के समय में कबीर को याद करना मजबूरी नहीं जरूरी है। उत्तर प्रदेश साहित्यकारों की भूमि है फिर भी सांप्रदायिकता सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में नजर आती है। जिस समाज में हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों ने जन्म लिया हो, उस समाज के बारे में हम ऐसी कल्पना कैसे कर सकते हैं। हिन्दू देवी देवता हिमाचल जैसे प्रदेशों में जा बसे हैं, और दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं। दर्शन करके भी वे दर्शन नहीं कर पाते क्योंकि परमात्मा तो अंदर है। अध्यापक की जिम्मेदारी बनती है कि वे एक तर्कशील समाज की नींव का निर्माण करे। अध्यापक के लिए स्वतंत्र होकर काम करना चाहिए जो कि उसे करने नहीं दिया जाता।

आज देस हरियाणा पत्रिका हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर रही है। सभी कहते हैं कि खुश रहना चाहिए लेकिन कोई खुश नहीं है क्योंकि सभी खुशी को बाहर ढूंढ रहे हैं लेकिन वह तो अपने अंदर है। कबीर, रैदास, नानक को पढ़ना आज के दौर के लिए जरूरी है। भारत संतों की धरती है हमें इन संतों से जुड़ना है और जिस दिन आप स्वयं से जुड़ जाएंगे तब आप कबीर से भी जुड़ जाएंगे। जिस प्रेम की बात मीरा ने कही आज कहीं दिखाई नहीं देती।

बुद्ध हमारे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है जिसने स्वयं की पहचान के लिए घर-बार व सारा सुख छोड़ दिया। समाजशास्त्रीयों को भी समाज को समझने के लिए हमारे संतो से जुड़ना चाहिए। आप किसी भी एक संत को अपने में धारण करें, तभी आप समझ जाएंगे की ये सब संत अलग-अलग नहीं हैं ये सब तो एक ही हैं। तभी आपके जीवन का उद्देश्य पूर्ण होगा। सभी संतों का उपदेश कर्म पर निर्धारित है। कबीर ने समतामूलक समाज की बात की और उसके लिए रास्ता भी दिखाया। हमें इन संतों की वाणी को समझना पड़ेगा। चाहे आप कुछ भी पढें लेकिन संतो को ना छोड़े, उनकी वाणियों को भी पढें और उन्हें आत्मसात करें। इसके लिए सभी साहित्यकार और सारे हिन्दी विभागों का उत्तरदायित्व है कि वे विद्यार्थियों में कबीर, रैदास, नानक की चेतना का भी निर्माण करें। कबीर ऐसे संत हैं जिनकी प्रासंगिकता हमेशा रहेगी।

डॉ. कुलदीप सिंह (वक्तव्य देते हुए)


डॉक्टर कुलदीप सिंह ने कहा कि ऐसे आयोजन बहुत जरूरी हैं। वर्तमान समय में कबीर को समझने की जरूरत है। आज के समय सबसे बड़ा संकट भाषा एवं साहित्य को कैसे बचाया जाए है। साहित्यकारों से अलग इस बारे में कोई नहीं सोचता। बाकियों को भाषा के महत्व के बारे में पता ही नहीं है। हर महत्वपूर्ण कार्यों का आधार भाषा ही है। आज के युवा डिग्री प्राप्त करने के अलावा कुछ नहीं सोचते, लेकिन डिग्री के साथ-साथ सभी को जानना जरूरी है कि संत अपने समय में सत्ताओं से लड़ते गए और समाजवाद का संदेश देते रहे। इतिहास में हिंदी और पंजाबी साहित्य का स्वर्ण काल मध्यकाल ही है। गुरूग्रंथ साहिब में भी रविदास और कबीर को शिरोमणि माना गया है, और इसकी वाणियों को ग्रंथ में सम्मिलित किया। कबीर सांप्रदायिकता को खत्म करने का रास्ता दिखाते हैं। कबीर अनपढ़ होते हुए भी सबसे ज्यादा बोले और कोई भी विषय उनसे अछूता नहीं रहा। इसमें हमें उनसे बेबाकी सीखने की जरूरत है और प्रेरणा लेने की जरूरत है।

प्रोफेसर सुभाष चंद्र (वक्तव्य देते हुए)


इसी कड़ी में प्रोफेसर सुभाष सैनी ने सभी को कबीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं दीं। पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष अशोक सभ्रवाल जी का कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पधारने पर हार्दिक अभिनंदन किया। आज सभी धर्मों के लोग खुद को कबीर से जोड़ते हैं। मध्यकाल में और उसके बाद अनेक लोगों ने कबीर की वाणी का संकलन किया है। धार्मिक भूमि बनारस में कबीर का जन्म हुआ और रविदास के साथ मिलकर कबीर ने आंदोलन खड़ा किया।

कबीर ने साफ-साफ कहा मैं कहता आंखन देखी तू कहता कागद की लेखी। कबीर की कसौटी अनुभव है कबीर कहते हैं अनुभव से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। उनकी वाणी हमें आपस में जोड़ कर रखती है। हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कहते हैं कबीर में अस्वीकार का साहस है। कबीर वही बात करते हैं जो उन्होंने देखा है जो उन्होंने अनुभव किया है कबीर समाधि की बात करते हैं। कबीर की वाणी की भाषा साधारण है उसको समझने के लिए किसी विशेष प्रकार की व्याकरण सीखने की जरूरत नहीं है। कभी को पढ़ने से सारे लोगों के दर्शन हो जाएंगे। इसके लिए हमें खुद को जानने की आवश्यकता है और आज के समय निरंतर कबीर पर चर्चा करना अति आवश्यक है।

डॉ. जसबीर सिंह (प्राध्यापक हिंदी विभाग, कु.वि.कु.)


समापन स्तर में डॉ. जसबीर ने बताया कि कबीर अपने आप में एक ऐसे संत हैं जिनकी वाणी में सभी संतो की वाणी मौजूद है। उन्होंने हर वो बात की जो समाज के हित में है। कबीर ने जाति-पाति, धार्मिक अंधविश्वास पर कड़े प्रहार किये। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों पर ऐसे कटाक्ष किए की दोनों वर्ग उनके खिलाफ खड़े हो गए थे। कबीर ने कहा कि मूर्ति पूजा करने से भगवान नहीं मिलते भगवान तो हर घट के भीतर है, उसे अपने अंदर खोजने की जरूरत है। आज भी कबीर हमारे समाज के लिए प्रासंगिक हैं और हमें समय-समय पर उनसे सीख व प्रेरणा लेने की जरूरत है।
इस अवसर पर हिन्दी व पंजाबी विभाग के अध्यापक, विद्यार्थी व शोधार्थी मौजूद रहे।

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