प्रत्येक – मनुष्य समय पर काम करने वाला हो सकता है, पर जिस तरह से होना चाहिए वैसे सब नहीं होते। थोड़ी-सी देर करके सब काम करते जाना सहज है, परन्तु ठीक समय पर काम करने वाले मनुष्य का काम दूसरों से दुगुना हो जाता है और उसे सुभीता तथा सन्तोष भी दुगुना होता है । जो लोग काम भी समय पर पूरा न करके उसे टाल दिया करते हैं उनकी भाषा ऐसी होती है:- “मुझे इस काम के करने में बहुत देर हो गई, परन्तु ऐसा केवल एक ही बार हुआ है। मैंने आज का काम समय पर नहीं किया, परन्तु ऐसा एक ही बार हुआ है।” एक बार किसी काम का अमुक समय तक कर डालने का निश्चय हो जाए, तो उसे पूरा करना ही चाहिए। अत्यंत खेद, शोक और लज्जा की बात है कि हम भारतवासियों में कालातिक्रम करने की बड़ी बुरी आदत पड़ गई है। किसी से मुलाकात करने जाओ तो भेंट होने में ही दो-चार घंटे अथवा कभी-कभी दिन लग जाते हैं । समय का मूल्य न जानने के कारण दस-पाँच घंटों की कुछ कीमत ही नहीं समझी जाती है। जातीय निमन्त्रणों में, पंचायतों में और सभा आदि के व्याख्यानों में इस बात का अच्छा उदाहरण मिलता है। किसी के घर चार बजे का समय निमन्त्रण में निश्चित होता है। और यदि सब लोग सात बसे तक उपस्थित हो जाएँ तो गृजस्वाती को यह समझना पड़ता है कि उसका भाग्योदय हो गया । अपने तथा दूसरों के समय के महत्त्व को न जानना ही भारत की अवनति का विशेष कारण हुआ है।
स्त्रोत- जीवन संग्राम में विजय प्राप्ति के कुछ उपाय
अध्याय – 16, पृष्ठ संख्या 129