लाग रही सै घणी मस्ताई माणस नैं ।
आपणी मौत आप बुलाई माणस नैं।
पत्थर पड़ग्ये आज अकल पै माणस की,
कुदरत गेल्यां करी लड़ाई माणस नैं।
कर दी धरती बंजर दरखत काट लिए,
खो दी ठंडी छाम ह़र् याई माणस नैं।
ढोर – जन्योर कीट पतंग भी निगलै सै,
छोड्या ना कोय जी कसाई माणस नैं।
इसकै भीतर राकस बेठ्या घर करकै,
जाड़ी दुनियां बसी – बसाई माणस नैं।
घोळ्या जह़र हवा पाणी म्हं जुल्मी नैं,
आपणे ह़ात्थां करी तबाह्ई माणस नैं।
घणे जीव तो लुप्त हो लिए दुनिया तै,
जीया -जंत की जात मकाई माणस नैं।
दरिया जंगळ परबत तक बी हड़प लिए,
कुदरत उप्पर करी चढ़ाई माणस नैं।
सोच – सोचकै घबरावै सै न्यूं ‘केसर’,
ले बेठैगी याह़् अड़बाई माणस नैं।
कर्मचन्द केसर
संपर्क – 09354316065