विश्वविद्यालय के शिक्षकों छात्रों, वकीलों, पत्रकारों व जागरूक सामाजिक कार्यकर्त्ताओं तथा संस्कृतिकर्मियों ने जन घोषणा पत्र पर विस्तार से चर्चा की। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक न्याय, महिला शक्तिकरण व सुरक्षा, ग्रामीण व शहरी विकास, पर्यावरण सुरक्षा, चुनाव सुधारों के मुद्दों पर लोगों के विचारों को ध्यान में रखते हुए घोषणा पत्र का प्रारुप तैयार किया गया।बैठक की अध्यक्षता जनसंचार विभाग के प्रोफेसर डा. अशोक शर्मा ने की।हरियाणा के चुनावों से पहले सभी जिलों में गोष्ठियां व सेमीनारों के माध्यम से जन संवाद करके जनता की आकांक्षाओं को जन घोषणा पत्र के रूप में संकलित किया जाएगा। इसके लिए समितियों का गठन किया गया। इसमें शिक्षा के लिए डा. सुभाष सैनी, पर्यावरण के लिए डा. अशोक चौहान, महिला सशक्तिकरण के लिए, मीडिया के लिए डा. अशोक शर्मा तथा स्वास्थ्य के लिए श्री कर्मवीर को संयोजक बनाया गया। डा. अशोक चौहान, डा. अशोक शर्मा, डा. संजीव शर्मा, इन्दर सिंगला, सेवाराम बालू, राजविन्द्र चन्दी, मनोज कुमार, जगमोहन, दीपक राविश, मनोज कुमार, अश्विनी दहिया, पवन सागर आदि चर्चा में शामिल हुए।
देसहरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष सैनी ने कहा कि बेवसाईट पर भी इसे प्रकाशित किया जाएगा। लोगों के सुझाव के लिए यह यहां उपलब्ध रहेगा। प्रतिनिधि मंडल समस्त राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के मिलकर जनता की भावनाओं को उन तक पहुंचाएगा।
शिक्षा
सबके लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त करने लायक सरकारी ढांचे, गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए सरकारी व प्राईवेट स्कूलों व कालेजों पर सामाजिक नियंत्रण की मांग की गई है। सरकारी स्कूलों में गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए सरकारी शिक्षकों, अधिकारियों-कर्मचारियों व जन-प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढना अनिवार्य हो। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले सभी छात्रों को छात्रवृति दी जाए।
स्वास्थ्य
हर सरकारी हस्पताल में तथा प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों में डाक्टर, दवाई तथा अन्य न्यूनतम सुविधाओं की व्यवस्था हो। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हर शहर व कस्बे में सरकारी अस्पताल के अलावा स्वतंत्र तौर पर सरकारी लैब की व्यवस्था हो। दवाइयों की कीमतों को नियंत्रित किया जाए। सरकारी हस्पतालों के बाहर शहर के अलग-अलग स्थानों पर दवाइयों के लिए सरकारी औषधालय खुलें।
निजी चिकित्सा केन्द्रों पर सामाजिक नियंत्रण हो। समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए निगरानी समितियां बने। प्राईवेट हस्पतालों में डाक्टर की फीस, बैड व कमरे के किराये की अधिकतम सीमा तय की जाए। निजी डाक्टरों को हिदायत हो कि वे साल्ट लिखें न कि कम्पनियों के नाम।
चिकित्सा में प्रत्यारोपित किए जाने वाले यंत्रों जैसे पेस मेकर, स्टेंट, हड्डियों के रोग की प्लेंटे, नकली दांत, कृत्रिम अंग, वेंटिलेटर, सीटी स्केन, एम आर आई आदि की कीमतें कम की जाएं। चिकित्सा यंत्रों व उपकरणों को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाया जाए।
जन-प्रतिनिधियों तथा सरकारी खजाने से स्वास्थ्य खर्च लेने वालों का इलाज सरकारी हस्पतालों में ही हो। प्राईवेट हस्पताल में इलाज के लिए सरकारी सहायता विशेष अवस्था में ही दिया जाए।
कृषि
खेती को लाभकारी बनाने के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए। खेती में प्राकृतिक जोखिम के लिए फसल बीमा निगम बनाया जाए। गिरते जल-स्तर तथा जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। छोटे किसान के लिए सामूहिक-संसाधनों का निर्माण तथा उनके सामूहिक-उपयोग के लिए वातावरण बनाया जाए। सामूहिक बिजली कनेक्शन लेने पर खर्च में आधी छूट दी जाए। किसान अपनी जमीन एक जगह करने के लिए भूमि का परस्पर तबादला करना चाहें तो स्टाम्प ड्टूटी एक प्रतिशत से अधिक न हो। सब्जी उगाने वाले किसानों की फसलों को मण्डी तक पहुंचाने के लिए सरकारी परिवहन की व्यवस्था की जाए।
भूमिहीन पशुपालक-दुग्ध-उत्पादक के पशुओं के लिए चारा व दाना मुहैया करवाया जाए। चारे के लिए पंचायती जमीन का आधा हिस्सा आरक्षित किया जा सकता है, सड़क व रेल लाईन के किनारे की जमीन, वन-क्षेत्र या अन्य किस्म की सार्वजनिक जमीन का प्रयोग किया जा सकता है।
सभी क्षेत्रों व वर्गों के योग्य उम्मीदवारों को मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरी मिले। जिस पद में किसी विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है, उन नौकरियों से साक्षात्कार समाप्त किया जाए। सरकारी क्षेत्र में खाली पड़े पदों पर नियुक्ति की जाए। कोई भी पद छः महीने से अधिक खाली न रहे। आवश्यकता के अनुसार नए पदों का सृजन किया जाए। सरकारी नौकरी में ठेकेदारी प्रथा को बन्द किया जाए। स्थायी काम के लिए डेली वेज या तदर्थ आधार पर नहीं, बल्कि स्थायी नियुक्ति की जाए। सरकारी नौकरियों में फार्म भरने की फीस समाप्त की जाए। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के नियमों को संवैधानिक तरीके से लागू किया जाए। आरक्षित श्रेणियों के समस्त रिक्त पदों को तुरन्त भरा जाए।
उद्योग
कृषि-उद्योग (एग्रो-इंडस्ट्री) को विकसित किया जाए। फूड़-प्रोसेसिंग (सब्जियों, फलों, रूई, तेल आदि) व संग्रहण की छोटी इकाईयों के लिए पूंजी, प्रशिक्षण तथा बाजार उपलब्ध कराया जाए। सरकारी क्षेत्र में मेगा एग्रो-इंडस्ट्री लगाई जाए। छोटी ईकाइयां निजी क्षेत्र की मेगा ईकाइयों के साथ मुकाबला नहीं कर पाती। निजी क्षेत्र की ईकाइयों के उत्पाद के मूल्य व गुणवत्ता पर नियंत्रण के लिए सरकारी क्षेत्र में उत्पादन का होना अनिवार्य है।
सामाजिक सुरक्षा
दस्तकारों ( कुम्हार, लुहार, बढ़ई, खाती, मोची, सुनार, पलम्बर आदि) के लिए साल में एक बार औजार-भता दिया जाए। दस्तकारी को आधुनिक जरूरतों से जोड़ने के लिए कौशल प्रशिक्षण दिया जाए। बाजार सुनिश्चित किया जाए। श्रमिकों को पूरा साल काम मिल सके इसके लिए मनरेगा के कार्यों का दायरा बढ़ाकर उत्पादक व समाज उपयोगी कार्यों से जोड़ा जाए।
सरकारी, गैर-सरकारी तथा व्यवसायिक-औद्योगिक सभी प्रतिष्ठानों के श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन का कानून लागू हो। बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं, बल्कि सम्मानजनक गुजारा भत्ता दिया जाए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त किया जाए। जरूरत का समान अनाज, दालें, चावल, तेल तथा कपड़ा मिले।
नशे को सामाजिक समस्या के तौर पर पहचाना जाए। इसे दूर करने के लिए सरकारी तथा सामुदायिक तौर योजनाएं बनाने की जरूरत है।
महिला सशक्तिकरण व सुरक्षा
देश व परिवार की आय में गृहिणियों के योगदान रेखांकित करने के लिए हर वर्ग की समस्त गृहिणियों के शक्तिकरण व सामाजिक सुरक्षा के लिए न्यूनतम प्रोत्साहन राशि कम से कम दो हजार रुपया महीना दिया जाए। महिला-उत्पीड़न के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाएं। यौन शोषण पीड़ित महिला की सहायता व सामाजिक सम्मान के लिए योजना बनाई जाए। लैंगिक संवेदना के लिए अलग विभाग का गठन किया जाए। जो पितृसतात्मक सोच को समाज से निकालकर मानवीय सोच स्थापित करने के लिए निरंतर कार्यक्रम व योजनाएं चलाए। गांव व मोहल्ला स्तर पर यौन-उत्पीड़न व छेड़छाड़ रोकने के लिए समितियां गठित की जाएं।
सामाजिक न्याय
सफाई के समस्त कार्य में मशीनों का प्रयोग किया जाए। इस काम को मानवीय व सम्मानीय बनाने के लिए यह आवश्यक है। दलित-उत्पीड़न के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाएं। नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था को सही अर्थों में लागू किया जाए। विभिन्न स्तरों पर निर्णय-प्रक्रियाओं में सामाजिक तौर पर कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित की जाए।
जन परिवहन
सरकारी बसों को बढ़ाया जाए तथा सिटी बसों का संचालन किया जाए। निजी परिवहन का रेगुलेशन किया जाए। महिलाओं के लिए विशेष बस सेवा शुरु की जाए। सुरुक्षा कारणों से तथा जन परिवहन के अभाव में ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियां उच्च-शिक्षा से वंचित रहती हैं।
पर्यावरण
हर शहर-कस्बे में कूड़ा डालने के लिए स्थान निर्धारित किया जाए तथा कूड़ा प्रबन्धन के लिए नवीनतम तकनीक का प्रयोग किया जाए। औद्योगिक कचरा और रसायनयुक्त पानी को नदियों, बरसाती नदियों में तथा जमीन में छोड़ने पर सख्ती बरती जाए। हर कारखाने में पानी सफाई की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। मोबाइल टावर का मानव स्वास्थ्य तथा पक्षियों पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है। मोबाइल टावरों को स्कूलों, कालेजों व सघन आबादी से दूर लगाया जाए।
ग्रामीण विकास
हर गांव में पीने के साफ पानी की व्यवस्था के लिए वाटर बाक्स बनाया जाए तथा प्रत्येक गांव में पानी शुद्ध करने की मशीन (आर ओ) लगाई जाए। हर गांव में गन्दे पानी की निकासी के लिए तीन तालाब व्यवस्था को लागू किया जाए।
महिला तथा पुरुषों को टेक्नोलाजी साक्षर बनाने के लिए प्रत्येक गांव में के लिए सरकारी कम्प्यूटर लैब की स्थापना हो। तथा हर गांव में जानकारी केन्द्र तथा पुस्तकालय-वाचनालय की स्थापना हो, जिसमें समाज कल्याण की योजनाओं की जानकारी हो तथा आत्मिक विकास के लिए साहित्य उपलब्ध हो। हर गांव में खेल का मैदान विकसित किया जाए। तथा खेल का सामान उपलब्ध कराया जाए। हर गांव में पार्क हो।
शहरी विकास
प्रत्येक मार्किट में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के जन-शौचालय का निर्माण किया जाए। शहरों के गन्दे व बरसाती पानी की निकासी की समुचित योजना बनाई जाए। साईकिल चालकों की सुरक्षा के लिए अलग से लेन बनाई जाए। शहरों में स्लमों में रहने वालों को सस्ती दर पर पक्के मकानों की व्यवस्था की जाए। प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण हो उनको सरकारी स्कीमों के लाभ मिलें।
चुनाव सुधार
चुनावों में वोटिंग मशीन के प्रयोग से वोटों की गिनती बूथ के अनुसार होती है, जिसकारण वोटर की पहचान आसानी से हो जाती है। वोटर की गोपनीयता बनाए रखने के लिए वोटों की गिनती बूथ अनुसार न करके सभी वोटों को एकत्रित करके की जाए। जातिगत-पंचायतों व संगठनों के पदाधिकारी व धर्म-सम्मेलनों में भाग लेने वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने पर पाबन्दी लगाई जाए। चुने हुए जनप्रतिनिधियों के जाति-पंचायतों व सम्मेलनों में भाग लेने पर पाबन्दी हो।