मैं सूं गरीब भील का बेटा, कर लिए कुछ ख्याल मेरा,
क्यूं मेरा गुंट्ठा मांगै सै मनै, के करया नुकस्यान तेरा।
धनुष विद्या की चाहना थी, मन मैं था सरूर गुरु जी
तों विद्या देण तै नाट गया, के था मेरा कसूर गुरु जी,
मनै माट्टी का गुरु बणाया, होकै न मजबूर गुरु जी
एक बात मैं फेर भी मानूं, तू सै मेरा जरूर गुरु जी,
चेला होण के नातै लागूं, मैं तो पूत समान तेरा।।
क्यूं मेरा गुंट्ठा…….
मेरे गुण की चर्चा दूनिया, सदियाँ बाद करैगी
यो गुरू द्रोण का चेला सै तनै, दुनिया याद करैगी,
जिसे काम तूँ करै गुरू जी, तेरी उसी औलाद करैगी
या गुंट्ठे आळी मांग मेरी, जिंदगी बरबाद करैगी,
तूं मणस-मणस मैं फरक करै, इब कड़ै गया ब्रह्मज्ञान तेरा।
क्यूँ मेरा गुंट्ठा…….
तनै गुरू की ना रीत निभाई, मैं अपना फर्ज पुगाउंगा
गुरू दक्षिणा द्यूंगा गुरू जी, कति नहीं घबराउंगा,
यो ले पकड़ गुंट्ठा गुरू जी, मैं अपणा मन समझाउंगा
हिम्मत कोन्या हारूंगा मैं, पैर तै तीर चलाउंगा,
मेरे पैर तीर छूटै फेर, काम्बै धरती आसमान तेरा।
क्यूँ मेरा गुंट्ठा…….
तूं पहला नहीं गुरू जी, या चलरी रीत पुराणी
कदै कान मैं कांच पा दिया, सुनी शास्त्र बाणी,
भजन करूँ था जीभ काटली, करी बोलण तै बदबाणी
फेर शम्भूक की गर्दन काटी, करदी खत्म कहाणी,
इब ना जुल्म सहूं मैं केसर, सुणले तूं फरमान मेरा।
क्यूं मेरा गुंट्ठा मांगै सै मनै, के करया नुकस्यान तेरा।
