स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय साहित्य पर संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी आयोजित

10 मई को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 1857 की क्रांति की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में “भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन व हिन्दी साहित्य” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी का उद्घाटन विश्वविद्यालय के उपकुलपति सोमनाथ सचदेवा ने किया। प्रदर्शनी में हिन्दी विभाग के विद्यार्थियों द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों के चित्र एवं स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित कविताओं के पोस्टर और मॉडल प्रदर्शित किए, जिन्हें देख कर उपकुलपति ने विभाग के प्रयासों की सराहना की। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर सुभाष चन्द्र ने उपकुलपति सोमनाथ सचदेवा, सेमिनार के मुख्य वक्ता प्रो. जगमोहन सिंह व सेमिनार के अध्यक्ष प्रो. दिनेश कुशवाह का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। अतिथियों के स्वागत के साथ ही हिन्दी विभाग के विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित कविताओं का गायन किया।

कुलपति महोदय श्री सोमनाथ सचदेवा जी प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए

प्रदर्शनी का अवलोकन करने से पहले विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि 1857 की चिंगारी देखते ही देखते पूरे देश में फैल गई थी। इससे यह तय हो गया था कि अंग्रेज अब यहां ज्यादा समय रहने वाले  नहीं हैं। आजादी के लिए जिन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी और संघर्ष किया, उन्हें श्रद्धाजलि देने के लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा है। उन्होंने 1904 में इकबाल ने जो पंक्तियां लिखी थी, उन्हें सुनाते हुए कहा- गुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी रहता है दिल हमारा
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा। उन्होंने माखन लाल चतुर्वेदी की कविता- पुष्प की अभिलाषा, सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता झांसी की रानी की पंक्तियां पढ़ते हुए कहा कि कवियों व लेखकों ने लोगों में आजादी की चेतना फैलाने के लिए अपनी रचनाएं लिखी।

प्रोफेसर जगमोहन सिंह जी अपना वक्तव्य देते हुए

इस अवसर पर मुख्य वक्तव्य रखते हुए शहीद भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह व क्रांतिकारी दल के लोगों में पढ़ने का गजब का उत्साह था। भगत सिंह ने जेल में रहते हुए करीब तीन सौ किताबें पढ़ीं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों द्वारा जब्त की गई प्रेमचंद की किताब सोज़े वतन में पांच कहानियां थीं। इनमें से एक कहानी का जिक्र भगत सिंह ने किया है। अपने जीवन के अंतिम समय में भी भगत सिंह के मन में केवल एक ही बात को लेकर उत्साह था कि पढ़ें, पढ़ें और पढ़ें। भगत सिंह कईं साहित्यिक कृतियों से खासे प्रभावित थे। उन्होंने आजादी का तराना लिखने वाले अजीमुल्ला, स. अजीत सिंह, अजीजन, कूका आंदोलन, गदर पार्टी, करतार सिंह सराभा व प्रीतिलता सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के विचारों व अध्ययनशीलता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगत सिंह के साथी अज्ञेय व यशपाल ने आजादी की चेतना से ओतप्रोत अनेक रचनाएं दी।
प्रोफसर दिनेश कुशवाह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के साथ हिन्दी साहित्य का नाभिनाल संबंध है। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों में हीरा डोम जैसे रचनाकार भी हैं, जिनकी रचनाओं को महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपनी पत्रिका सरस्वती में स्थान दिया था। उन्होंने राम की शक्तिपूजा, समर शेष है, परशुराम की प्रतीक्षा सहित अनेक कविताओं का संदर्भ देते हुए कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव में आजादी की नई लड़ाई की जरूरत है।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाष चन्द्र ने कहा कि आजादी की लड़ाई में भगत सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारी दल, महात्मा गांधी की अगुवाई वाले अहिंसावादी आंदोलन व डॉ. भीमराव अंबेडकर के समता व न्याय के आंदोलन साहित्य से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान और बाद में चाहे और किसी ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई हो, लेकिन साहित्यकारों ने अपनी लेखनी के द्वारा समाज में लगातार चेतना फैलाने का काम किया। विभाग की शोधार्थी अंजू के नेतृत्व में अतिथियों व प्रतिभागियों ने संविधान की प्रस्तावना का समूह पाठ किया और संविधान के मूल्यों को बचाने की शपथ ली।

प्रोफेसर जगमोहन सिंह और प्रोफेसर दिनेश कुशवाह जी को सम्मानित करते हुए विभाग के अध्यापकगण

विभाग में अध्यापक जसबीर सिंह, विकास साल्यान, ब्रजपाल ने अतिथियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.के.चहल, पंजाबी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीप सिंह, अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अशोक चौहान, पुस्तकालय एवं सूचना विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मनोज जोशी, राजनीतिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर विकास सभ्रवाल, प्रोफेसर दिनेश गुप्ता, प्रोफेसर दलबीर सिंह, प्रोफेसर जोगिन्द्र, प्रोफेसर परमजीत कौर, पत्रकार अरूण कैहरबा, मंजीत भोला, कर्मचंद केसर, हिन्दी विभाग के विद्यार्थी और शोधार्थी शामिल थे।

हिन्दी विभाग परिवार (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र)

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