क्रान्तिज्योति नाम सावित्री,
उसने मन में ठानी थी,
तलवार कलम को बना करके
क्रांति सामाजिक लानी थी।
शिक्षा का प्रचार करके
सबको नई राह दिखानी थी,
सब के ताने सुन-सुन के
प्रथम शिक्षिका बनी सावित्री थी।
कलम उठा कर चली सावित्री
सहकर अनेक प्रहार,
किया उत्थान हर जन का
कभी ना मानी हार।
अज्ञानता को तोड़-ताड़ कर
दरिद्रता को जीवन से मिटाना था,
दासता भरे जीवन से
हम सबको बचाना था।
तोड़कर जात पात को
बनाना नया समाज,
किया सावित्रीबाई ने
ये अनोखा आगाज़।
वीराने में आई जैसे
बनकर नई बहार,
स्त्रियों को दिया है उसने
शिक्षा का उपहार।
क्रांतिकारी थी वह स्त्री,
नहीं थी कोई सन्त,
धार्मिक पाखंड अंधश्रद्धा का
किया था जिसने अंत।
अंधविश्वास से हम सबको
एकजुट होकर लड़ना है,
सावित्री के बनाये पथ पर
हम सबको आगे बढ़ना है।
लेते हैं संकल्प आज ये
उस देवी का कर्ज चुकाएंगे,
अज्ञानता, गरीबी और गुलामी को,
मिलकर दूर भगाएंगे।।