अन्ना हजारे : गाँधी-मार्ग का अंतिम पथिक – डॉ. अमरनाथ

अन्ना हजारे

“मेरा इस्तेमाल कर 2014 में सत्ता में आई थी भाजपा।” ( hpps://www.prabhasakshi.com published on Feb.5,2019) अन्ना हजारे ने 5 फरवरी 2019 को तब ये बात कही जब वे केन्द्र तथा महाराष्ट्र में लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति की माँग और किसानों के मुद्दों को लेकर अपने पैतृक गाँव रालेगण सिद्धि में 30 जनवरी से अनशन कर रहे थे और उनके अनशन का कोई खास असर नहीं दिख रहा था। अन्ना हजारे को दिल्ली के रामलीला मैदान में अपने अनशन के दौरान 2011 का उमड़ा जनसमुद्र याद आ रहा था। निस्संदेह अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए उस आंदोलन में यूपीए सरकार की स्थिति कमजोर हुई जिसके बाद 2014 में भाजपा सरकार केन्द्र की सत्ता में आई और दिल्ली में भी अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी। अन्ना आन्दोलन से जुड़े वरिष्ठ वकील प्रशान्त भूषण ने भी स्वीकार किया है कि, “साल 2014 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने से पहले 2011 में देश में जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ था उसे बीजेपी और आरएसएस का समर्थन प्राप्त था।” (https://www.bbc.com September 16, 2020)  

जन लोकपाल बिल लाने की माँग को लेकर अन्ना ने 5 अप्रैल 2011 से दिल्ली के जंतर –मंतर पर अनशन शुरु किया था। इसमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविन्द केजरीवाल, भारत की पहली महिला आई.पी.एस. किरण बेदी, जनहित के लिए निरंतर लड़ने वाले वकील प्रशान्त भूषण, लोकप्रिय हिन्दी कवि कुमार विश्वास, बाबा रामदेव आदि ने अन्ना का जमकर साथ दिया था। मीडिया ने इसे अभूतपूर्व ढंग से कवर किया था। देश के कोने- कोने में लोग इसके समर्थन में सड़कों पर उतर आए थे।

तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा अपेक्षित आश्वासन मिलने के बाद अन्ना ने अनशन तोड़ा था किन्तु उन्हें सरकार से जिस तरह के लोकपाल बिल की अपेक्षा थी, उस तरह का बिल संसद में पेश नहीं हुआ और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने का अन्ना का सपना अधूरा ही रह गया। अब तो लोकपाल की चर्चा भी नहीं होती है। आज अन्ना अपने गाँव रालेगण सिद्धि में अपनी निरीहता और अकेलेपन से जूझ रहे हैं। उनका अकेलापन गाँधी-मार्ग का अकेलापन है। अन्ना- आन्दोलन के समय उनके साथ खड़े होकर कुछ लोगों ने अपनी ईमानदार छवि निर्मित की और उसका भरपूर लाभ उठाया। उन्हीं में से अरविन्द केजरीवाल हैं जो रिकार्ड बहुमत से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। किरण बेदी हैं जो गोवा की राज्यपाल बनीं। पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह मंत्री बन गए। योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण, कुमार विश्वास, आशुतोष आदि अरविन्द केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी से निकाल दिए जाने के बाद मजबूर होकर अपने- अपने क्षेत्रों और अपने- अपने कामों में लग गए। गाँधी के प्रतीक का इस्तेमाल हो चुका था। अब वह गाँधीवादी इन सबके लिए व्यर्थ था। परिवार न बसाकर पूरे भारत के नागरिकों को अपना परिवार कहने वाला गाँधी- मार्ग का यह नायाब पथिक अब अपने चंद ग्रामवासियों के साथ अपने गाँव में अकेलेपन से जूझ रहा है।

अन्ना हजारे ने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किन्तु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी सरकार का रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा। लेकिन अन्ना के इस अनशन को मिले जनसमर्थन के फलस्वरूप इसके आंदोलन का रूप लेने पर सत्ताधारी कांग्रेस सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और 16 अगस्त 2011 तक संसद में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपनी पूर्व घोषित तिथि 16 अगस्त 2011 से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई।

16 अगस्त 2011 को सुबह साढ़े सात बजे जब 74 वर्षीय अन्ना हजारे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, तभी दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनकी टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर कोर्ट द्वारा दिल्ली से बाहर रालेगण सिद्धि चले जाने या सिर्फ 3 दिन तक अनशन करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्हें 7 दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया किन्तु शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने जेल से रिहा होने से इनकार कर दिया।17 अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। 17 अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में 7 दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। मगर अन्ना ने 30 दिनों से कम अनशन करने की अनुमति लेने से मना कर दिया। उन्होंने जेल में ही अपना अनशन जारी रखा। अन्ना को रामलीला मैदान में 15 दिन की अनुमति मिली और 19 अगस्त से अन्ना राम लीला मैदान में जन लोकपाल बिल के लिये अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। 24 अगस्त तक तीन मुद्दों पर सरकार से सहमति नहीं बन पायी। अनशन के 10 दिन हो जाने पर भी सरकार अन्ना का अनशन समाप्त नहीं करवा पाई | अन्ना ने दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हों। अन्ना हजारे ने कहा कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और इन तीन शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोनो पक्षों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने की दिशा में पहली ठोस पहल करते हुए लोकसभा में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डॉ॰ जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों द्वारा पेश विधेयकों के साथ जन लोकपाल विधेयक पर भी विचार करेगी। उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा।

27 अगस्त को कांग्रेस और भाजपा ने अन्ना के तीनो शर्तों पर बहस करवाई, भाजपा ने साथ दिया जिसके बाद स्पीकर के कहने पर प्रस्ताव पारित कर दिया गया जिसे बाद में स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया।  28 अगस्त को सुबह सवा दस बजे अन्ना ने अनशन तोड़ दिया किन्तु आन्दोलन जारी रहा. उन्होंने घोषणा की कि जन लोकपाल बिल जब तक बन नहीं जाता वे पूरे भारत में भ्रमण करेंगे। इस बीच अन्ना से मिलने मेधा पाटकर, श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव आदि अनेक विशिष्ट लोग पहुँचे और उन्हें अपना समर्थन दिया।

जनलोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के अनशन करने की माँग को सरकार ब्लैकमेल बताती रही।  उसका कहना था कि जो लोग इस तरह का दबाव सरकार पर डाल रहे हैं उन्हें जनता ने नहीं चुना है। लोकतंत्र में संसद के सर्वोच्च होने का हवाला देते हुए सरकार कहती रही कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास ही है।

किन्तु अन्ना हजारे को अपने लोगों से भरपूर ताकत मिलती रही। देश के युवा और हजारों कार्यकर्ताओं के अलावा कई नेता, सरकारी कर्मचारी और पुलिसकर्मी भी भीतर- भीतर अन्ना को समर्थन दे रहे थे। विपक्षी दल भाजपा का भीतर ही भीतर भरपूर समर्थन मिल रहा था।

अन्ना हजारे का जन्म 15 जून 1937 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगण सिद्धि नामक गाँव के एक  मराठा  किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबूराव हजारे और माँ का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था। अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में बीता। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहाँ अन्ना ने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये महीने वेतन पर काम करने लगे। बाद में उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगण से बुला लिया।

वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हजारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे। 12 नवम्बर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहाँ तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने अन्ना के जीवन की दिशा को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में और 13 वर्ष तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। 1975 में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के 15 वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे अपने गाँव रालेगण सिद्धि आ गए और इसी गाँव को अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए।

अन्ना के जीवन पर स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी और विनोबा भावे का गहरा प्रभाव पड़ा है। वे बताते हैं कि 1965 के युद्ध के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने स्वामी विवेकानंद की एक पुस्तक ‘कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन’ खरीदी। इसे पढ़कर उनके मन में भी अपना जीवन, समाज को समर्पित करने की इच्छा बलवती हो गई। बाद में उन्होंने महात्मा गाँधी और विनोबा भावे की पुस्तकें भी पढ़ीं।1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर स्वयं को सामाजिक कार्यों के लिए पूर्णतः समर्पित कर देने का संकल्प कर लिया।

मुंबई रहने के दौरान वे अपने गाँव रालेगण सिद्धि आते-जाते रहे। 1978 में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने रालेगण आकर अपना सामाजिक कार्य प्रारंभ कर दिया। इस गाँव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। अन्ना ने गाँव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी इसमें योगदान दिया। अन्ना के कहने पर गाँव में जगह-जगह पेंड़ लगाए गए। गाँव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपने पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। वे गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। उनके प्रयास से आज गाँव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। यह गाँव आज शांति, सौहार्द्र एवं भाईचारे की मिसाल है।

अन्ना के समाज सेवा का कार्य सिर्फ उनके गाँव तक ही सीमित नहीं रह गया। 1991 में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ ‘भ्रष्ट’ मंत्रियों को हटाए जाने की माँग को लेकर भूख हड़ताल कर दी। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंतत: उसे दागी मंत्रियों को हटाना ही पड़ा। एक मंत्री ने  अन्ना के खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर दिया। अन्ना अपने आरोप के समर्थन में न्यायालय में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया। इसके बाद अन्ना हजारे ने शिवसेना और भाजपा के दूसरे कई नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।

1997 में अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। 9 अगस्त 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत और कड़े विधेयक को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप 12 अक्टूबर 2005 को भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। अगस्त 2006 में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया।

2003 में ही अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों- सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन छेड़ दिया और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जाँच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना पड़ा।

कद-काठी में साधारण से दिखने वाले अन्ना सिर पर गाँधी टोपी और बदन पर खादी का कुर्ता और धोती पहनते हैं। उनकी आँखों पर मोटा चश्मा है। गाँधी के विचार और आचरण को अपने जीवन में उतारने वाले अन्ना ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने महात्मा गाँधी के बाद भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को कई बार पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है।  अहिंसात्मक संघर्ष और त्यागपूर्ण जीवन के कारण अन्ना हजारे को आधुनिक युग का गाँधी कहा जाता है।

अन्ना हजारे गाँधीजी के ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्धि का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि ‘बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।’

व्यक्ति- निर्माण से ग्राम- निर्माण और उसके बाद स्वाभाविक रूप से देश- निर्माण के गाँधीजी के मन्त्र को उन्होंने यथार्थ में उतार कर दिखा दिया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज लगभग एक सौ गाँवों तक सफलतापूर्वक पहुँच चुका है। व्यक्ति- निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है।

अन्ना हजारे आज भी सक्रिय हैं। मोदी सरकार ने सूचना के अधिकार कानून में जब जुलाई 2019 मे संशोधन किया तो अन्ना ने कड़ा विरोध किया था और उसे भारत के नागरिकों के साथ धोखा करार दिया था। अरविन्द केजरीवाल पर भी हमला करते हुए उन्होंने कहा कि वे सत्ता और पैसे के आगे जनता से किया गया वादा भूल चुके हैं। जन लोकपाल के मुद्दे पर उनके विचार पहले जैसे ही हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि यदि लोकपाल होता तो राफेल घोटाला नहीं हुआ होता।

अन्ना के जीवन पर राइज पिक्चर्स प्राइवेट लि. ने एक फिल्म भी बनाई है जिसका निर्देशन शशांक उदापुरकर ने किया है। किन्तु इन सबके बावजूद अन्ना आज अकेले हैं जैसे गाँधी अपने आखिरी दिनों में अकेले रह गए थे, यद्यपि गाँधी पर अन्ना की आस्था आज भी यथावत है।

( लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं।)

अमरनाथ

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