पाँच हरियाणवी ग़ज़लें- मंगतराम शास्त्री “खड़तल”

मंगत राम शास्त्री

1

कहणे को तो सब तरियां के ठाट गाम्मां म्हं।
मगर घरां म्हं बढ री सै कड़वाट गाम्मां म्हं।।

पूछ नहीं करदा कोये इब एक दुज्जै की
एक त एक बसैं सैं मुल्की लाट गाम्मां म्हं।

माणस टोह्ण गया था पाये, हीर-डूम-खात्ती
बाह्मण-नाई-रोड़-कमो सब जाट गाम्मां म्हं।

नेता के उकसाये जात्तीवाद म्हं फसकै
लोग भतेरे हो रये बाराबाट गाम्मां म्हं।

स्यासत-पुन्जी मिलकै खेल्लैं खेल मजहब का
नफरत हिंसा की भी खुल गी हाट गाम्मां म्हं।

एक धड़ी घी-बूरा-शक्कर-खीर खावणियें
मिलते ना इब वें माणस खर्राट गाम्मां म्हं।

पैल्ड़ी बीरां जिसा नहीं पर आज भी पावै
शहर आल़ी बीरां तै घणा चमाह्ट गाम्मां म्हं।

"नांग्गे घर की नांग्गी आई धेज ना ल्याई"
इन बात्तां पै खूब हुवै करलाट गाम्मां म्हं।

दारू-चिट्टा-चरस-हिरोइन-फीम-गांज्जे की
हर नुक्कड़ पै मिलै नजायज हाट गाम्मां म्हं।

पीज्जा-बर्गर, ब्यूटी पार्लर पोंह्च गे घर-घर
फैशन का भी उठ्या ईब खखाट गाम्मां म्हं।

प्राईवेट सकूल चुगरदै भोत से खुल गे
ट्यूशन का भी बंध रया खूब घघाट गाम्मां म्हं।

पीस्से बरतण नै बेस्सक तै हाथ हो तंग पर
मोबाइल के ऊठ रहे धर्राट गाम्मां म्हं।

दूध घणखरा जावै तड़कै इ रोज शहरां म्हं
शहर पसर ग्या ले कै पपड़ी-चाट गाम्मां म्हं।

आज कढोणी,रई,बिलोणी भूल गे बच्चे
ना रह रे इब खुद्दै आल़े माट गाम्मां म्हं।

आल्हा-ब्याल्ला-गूग्गा-रांज्झा-पीर गावणियें
कोन्या आन्दे ईब कबिस्सर-भाट गाम्मां म्हं।

तांस्शां पै भी जूत बजा लें भोत से लड़दू
न्यूं कहक़ै त्नै क्यां तै मारी काट, गाम्मां म्हं।

ईब त सबकै लाग्गण लाग्गे टैण्ट ब्याहां म्हं
परस म्हं कट्ठी ना होंदी इब खाट गाम्मां म्हं।

कब्जे कर लिये ठाड्यां नै शमलात गोर्यां पै
थोड़े रह गे ताल-तलैय्ये-घाट गाम्मां म्हं।

दिक्खण म्हं तो पा ज्या सै परिवार का एक्का
नीच्चै-नीच्चै हो रयी आट्टो-पाट गाम्मां म्हं।

चाच्चा नै दे काट भतीज्जा खूड की बाबत
रोज्जे देक्खां माच्चै रोवाराट गाम्मां म्हं।

पीढ्ढी बध गी बोवण जोग जमीन तो घट गी
आज गजां म्हं लाग्गे बिकण प्लाट गाम्मां म्हं।

कुछ तो नेता की रैल्ली म्हं स्टेज पै चढ गे
गरीब आज बि न्यूंए बिछावै टाट गाम्मां म्हं।

भाईचारा तोड़णियां की बरखिलाफ्फी कर
ऊठ कमेरे चाल मोरचा डाट गाम्मां म्हं।

यार मिरा कल न्यूं बोल्या तूं प्रेम नी करदा
आज बता द्यूं इसकी जाब्बक नाट गाम्मां म्हं।

खड़तल कहणे भर तै या तसबीर ना बदलै
मैल मिटावण नै ले ज्या रंगकाट गाम्मां म्हं।

2

बिना खरची बिना परची मिलै रुजगार,क्या कहणे।
नसिब्बां तै मिलै ऐसी भली सरकार,क्या कहणे ।।

तरक्की और के होगी जो एक्के टेम भारत म्हं
करोड़ां लोग कर रे सूर्य को नमस्कार ,क्या कहणे।

 चलाण् एक्ले का बिन छिंक्कै कटै खुल्ली सड़क पै भी
हजारां की भि रैल्ली की नहीं तकरार,क्या कहणे।

करोन्ना भी डरै दिन म्हं बजारां तै घणा ,वो तो
पढणियें बाल़कां पै सै रजू-बलिहार,क्या कहणे।

गुरू होगा जमान्ने का यु हिंदुस्तान तड़कै नै
चलै भर कै जबान्नी रेल धूंम्माधार,क्या कहणे।

गजब अंदाज सै सांईं तिरा हरियाणवी लहजा
खरी देस्सी करै सै बात"खड़तल"यार,क्या कहणे।

3

मींह् के कारण भींत बिचाल़ै पड़ी दराड़ां नै।
रोज भरै मां माट्टी-गारा गेल बुआड़ां नै।।

छोट्टी-मोट्टी कमियां नै तो न्यूंए ढक दे वा
डूंड चला राक्खे सैं मां के जोड़-जुगाड़ां नै।

सारी रात फिरैं खेत्तां म्हं रखवाल़े,क्यूं के
गाम दुखी कर राक्खे सुन्ने ढोर-उजाडां नै।

प्रेम-बही नै शक का कीड़ा न्यूं चट कर ज्या सै
जैसे गम का कीड़ा चाट्टै तन की नाड़ां नै।

अणगिणती के अणू मिलैं जब तो बम एक बणै
वो इतना ठाड्डा हो सै दे फोड़ पहाड़ां नै।

शहरां तै तो इब्बी चोक्खी काण-सुहाण बची
 पर बदनाम करे सैं गाम तो ऊत-लपाड़ां नै।

रोग बुरा सै सुग्गर का न्यूं खावै माणस नै
जैसे घुण खा ज्या सै घर के कड़ी-किवाड़ां नै।

खड़तल इसा रफूगर चहिये प्रेम की सूई तै
सीम्मै दिल-चाद्दर के पाट्टे होए झराड़ां नै।

4

लालच म्हं जंगल़ कटवाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।
यार तनै खुद लाभ कमाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।।

मार उडारी दुनिया घूम्मी ऐश करी बे स्याह्ब तनै
घर के बुजरग ना संगवाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।।

शोर सराब्बा कर डी जे का तनै सहजता खुद खोई
सुथरे गाणे नहीं बचाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

ऐंटीना टावर बिजल़ी अर सिमटिड घर तनै बणवा कै
चिड़िया काब्बर आप मिटाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

गेल जमान्नै कै बदले सब खान-पान-पहरान्नी भी
खिंडके धौत्ती उनै छुटाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

करजा छिकमा दिया हकूमत नै खुद अपणे यारां तै
परदेस्सां म्हं आप भजाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

कार्पोरेट घरान्यां तै त्नै खुदमुख्तारी सोंप दई
घर के भाण्डे आप बिकाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

खड़तल तो त्नै बरज्या करदा रोज मगर तूं ना मान्या
दाद्दालाही माल़ उडाये फेर् पूच्छै सै कड़ै गये।

5

जीवन म्हं तूं कुछ तो चज की कार कर।
माणस हो कै माणस जिसा बुहार कर।।

के नफरत भी कोय करण की चीज सै?
करणा सै तो माणसपण तै प्यार कर।

अगली पीढ्ढी फसल उगा ले प्रेम की
उस खात्तर तूं इब्बे धरती त्यार कर।

अरथी पै दो फूल चढा दें गैर भी
कुछ इस पै भी थोड़ा भोत विचार कर।

 बेगमपुर सुपना था संत रैदास का
जी ला कै नै उसनै तूं साकार कर।

सारे सैं जिब एक कुदरती तौर पै
तो तूं जात धरम नै दिल तै बाह्र कर।

हाट नहीं सै बणिये की या जिन्दगी
इसमैं सौद्दे बाजी ना तूं यार कर।

"खड़तल"सारी दुनिया बदलणहार सै
अच्छै तांही तूं खुद म्हं भि सुधार कर।

More From Author

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ- नामवर सिंह

एक कुत्ता और एक मैना- हजारी प्रसाद द्विवेदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *