जय्ब हरियाणा इस देस की सोच्चै -राजेन्द्र रेढू

मनै ला लिया जोर भतेरा रै
पर पाट्या कोन्या बेरा रै।
किसनै ला दी आग जड़ाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
कोए स्याणा, मनै खोल बतावै,
क्यूँ तात्ती लू, पहाड़ाँ तै आवै?
किस बैरी नै नरक बणा दिया,
जो धरती का सुरग कुहावै?
सुणो काटणा कोए चाहवै !
क्यूँ भला काटणा कोए चाहवै?
यु म्हारे सिर का सेहरा रै,
किसनै ला दी आग जडाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
क्यूँ जैत-धर्म के रोळे सैं?
पान्ने, बगड़ अर ठोळे सैं,
पढ़े-लिख्यां की बातां मैं भी,
क्यूँ चलैं जहर के गोळे सैं?
लच्छण तो त्हारे ओळे सैं,
हाँ, लच्छण तो त्हारे ओळे सैं,
कदे, उजड़ै यु रैन बसेरा रै!
किसनै ला दी आग जडाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
चलैं पटाके, किते जळै पराळी,
दिन धौळै करदी, रात या काळी,
सूंघ मरैं, इस जहर नै सारे,
जै ना गई लोगो, बात संभाळी।
खलिहान छोड कै भाज्या हाळी!
क्यूँ खेत छोड कै भाज्या हाळी?
तेरा सड़काँ उप्पर डेरा रै,
किसनै ला दी आग जडाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
क्यूँ ईब तलक बी बोझ सैं छोरी?
क्यूँ बंदड़ा मांगै, पिस्सयाँ की बोरी?
जिद बेटी जन्मै, कुणबा रौवै!
जणूं पाड़ लागग्या, हो गी चोरी!
फेर छेड़-छाङ अर सीनाजोरी,
क्यूँ बेसर्मी  अर सीनाजोरी?
सुणी, हो लिया नया सबेरा रै,
किसनै ला दी आग जडाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
कित्ते अलग हौंण का चढ रया भूत,
बाज्जै, दरिया के पाणी पै जूत,
भाईचारा म्हारा बी बिग्ड़या,
एक या ए आ री, बात कसूत,
कोए बण्ग्या बाग्गी, देसाँ का ऊत,
ओ अपणयां नै मारै, देसाँ का ऊत,
हाथाँ पै खून चचेरा रै!
किसनै ला दी आग जडाँ मैं?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै?
त्हाम हरियाणे तै सिक्खो यार!
गुड़गाम्मे सा द्यो रुजगार,
खाद्दर-बांगर, छोरे-छोरी,
मैडलां की ला रे लार,
अहीरवाळ के बाळक हुशिआर,
म्हारे बाग्गड़ के बाळक हुशिआर,
न्यु परदेसाँ तक बेरा रै,
किसनै ला दी आग जडाँ मैं ?
क्यूँ धुम्मा-धार अँधेरा रै ? 

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