अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं और पूरा आकाश देख लेते हैं सबके हिस्से का आकाश पूरा आकाश है । अपने हिस्से का चन्द्रमा देखते हैं और पूरा चन्द्रमा देख लेते हैं सबके हिस्से की जैसी तैसी सांँस सब पाते हैं वह जो घर के बीच में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा है और वह भी जो बदबू और गंदगी के अँधेरे में जिन्दा है । सबके हिस्से की हवा वही हवा नहीं है । अपने हिस्से की भूख के साथ सब नहीं पाते अपने हिस्से का पूरा भात बाजार में जो दिख रही है तंदूर में बनती हुई रोटी सबके हिस्से की बनती हुई रोटी नहीं है । जो सबकी घड़ी में बज रहा है वह सबके हिस्से का समय नहीं है । इस समय ।
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया मैंने हाथ बढ़ाया मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ मुझे वह नहीं जानता था मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था हम दोनों साथ चले दोनों एक दुसरे को नहीं जानते थे साथ चलने को जानते थे ।
मैं उनसे नहीं कहता जो निर्णय लेते हैं
मैं उनसे नहीं कहता जो निर्णय लेते हैं क्योंकि वे निर्णय ले चुके होते हैं । उनसे कहना चाहता हूँ कहा नहीं अभी तक जिनके बारे में मैं नहीं जानता कि वे नहीं करेंगे कहने के बाद मालूम होता कि उन्होंने कुछ नहीं किया । जान लेने के बाद दुबारा क्यों कहता । यह मैं भी कह देना चाहता हूँ कि अपन लोगों को एक दुसरे का साथ देना देना चाहिए । मैं चिल्लाता नहीं पर बहुजन उपस्थिति से कविता को माईक की तरह सामने खींचकर कहता हूँ ।
यह चेतावनी है
यह चेतावनी है कि एक छोटा बच्चा है यह चेतावनी है कि चार फूल खिले हैं यह चेतावनी है कि ख़ुशी है और घड़े में भरा हुआ पानी पीने लायक है हवा में सांँस ली जा सकती है यह चेतावनी है कि दुनिया है बची हुई में मैं बचा हुआ यह चेतावनी है मैं बचा हुआ हूँ किसी होने वाले युद्ध से जीवित बच निकलकर मैं अपनी अहमियत से मरना चाहता हूँ कि मरने के आखरी क्षणों तक अनन्तकाल जीने की कामना करूं कि चार फूल हैं और दुनिया है
मैं अदना आदमी
मैं अदना आदमी सबसे ऊँचे पहाड़ के बारे में चिंतित हुआ इस चिंता से मैं बाहर ही बाहर रहा आया एक दिन इस बाहर को कोई खटखटाता है हवा को खटखटाता है जंगलके वृक्षों एक एक पत्तियों को खटखटाता है देखें तो आकाश के नीचे खुले में है साथ में कोई नहीं है दूर तक कोई नहीं है पर कोई इस खुले को खटखटाता है । कौन आना चाहता है ? मैं कहता हूँ अन्दर आ जाइए सब खुला है मैंने देखा मुझे हिमालय दिख रहा है ।
मैं दीवाल के ऊपर
मैं दीवाल के ऊपर बैठा थका हुआ भूखा हूँ और पास ही एक कौवा है जिसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा उसका ही हिस्सा छीना हुआ है सोचता हूँ कि हाय! न मैं कौआ हूँ न मेरी चोंच है-- आखिर किस नाक नक़्शे का आदमी हूँ जो अपना हिस्सा छें नहीं पाता!!
दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है
दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है कहकर मैं घर से चला यहाँ पहुँचने तक जगह जगह मैंने यही कहा और यहाँ कहता हूँ कि दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है जहाँ पहुँचता हूँ वहाँ से चला जाता हूँ दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है-- बार बार यही कहता हूँ और कितना समय बीत गया है लौटकर मैं घर नहीं घर-घर पहुंचना चाहता हूँ और चला जाता हूँ
दीवाल में एक खिड़की रहती थी
दीवाल में एक खिड़की रहती थी एक झोंपड़ी, दो पगडंडी, एक नदी और दो-एक तालब रहते थे एक आकाश के साथ सबका होना रहता था लोगों का आना-जाना कभी-कभी रहता था पेड़-पक्षी रहते थे खिड़की से सब कुछ रहता था नहीं रहने में एक खिड़की खुली नहीं रहती थी रहने में एक खिड़की खुली रहती थी खिड़की से हटकर दीवाल में एक आदमी रहता था ।
जब पिता मार डाला गया
जब पिता मार डाला गया तब पिता की गोद में जाने को लालायित बच्चा भी । माँ भी मारी गई तब जब बच्चे को पिता की गोद में दे रही होगी कि वह भाजी काट ले बच्चे को धोखे से चाकू लग जाता तो -- तभी चाकू से सब मारे गए कि भाजी की तरह कटे गए लोग । यह सब गुजराती में कहा जाता छतीसगढ़ी में कहने से मुझे डर लगता है परन्तु राष्ट्रभाषा में कहा गया ।
गुज़ारिश
गुजराती मुझे नहीं आती परन्तु जानता हूँ कि गुजराती मुझे आती है । वह हत्या कर के भाग रहा है-- यह एक गुजरती वाक्य है । दया करो, मुझे मत मारो मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, अभी लड़की का ब्याह करना है, और ब्याह के लिए बची लड़की बलात्कार से मर गई-- ये गुजराती वाक्य हैं । 'गुज़ारिश' यह एक गुजराती शब्द है ।
ईश्वर अब अधिक है
ईश्वर अब अधिक है सर्वत्र अधिक है निराकार साकार अधिक हरेक आदमी के पास बहुत अधिक है । बहुत बांँटने के बाद बचा हुआ बहुत है । अलग अलग लोगों के पास अलग अलग अधिक बाकी है । इस अधिकता में मैं अपने खाली झोले को और खाली करने के लिए भय से झटकारता हूँ जैसे कुछ निराकार झर जाता है ।
साभार- विनोद कुमार शुक्ल, प्रतिनिधि कविताएँ, राजकमल प्रकाशन