स्वर्ण सहोदर की क्रांतिकारी कविता

स्वर्ण सहोदर

हम विद्रोही, हम क्रान्ति-दूत, हम हैं विप्लववादी,
तुफानों से ही लड़ने के हम हैं हरदम आदी।

है धर्म हमारा दीनों के दुखों को पी लेना,
है कर्म हमारा फटे हुए सीनों को सी देना,
है लक्ष्य हमारा मानवता का करना परिपालन,
है ध्येय हमारा दानवता का करना प्रसालन।

हम देख नहीं सकते मानव की अवनती, बरबादी,
हम विद्रोही, हम क्रान्ति-दूत हम हैं विप्लववादी।

हम भेदभाव की दुनिया के हैं जीवित प्रलयंकर,
हम बन्धुभाव की जगती के हैं विश्वम्भर, शंकर,
पर-पीड़न, शोषण, दमन, दैन्य दुख के हैं संहारक,
सुख-शान्ति, साम्य, सहयोग, स्नेह के हम हैं उध्दारक।

कल हमें नहीं, कल बेकल को जब तक किन दिलवा दी,
हम विद्रोही, हम क्रान्तिदूत, हम हैं विप्लववादी।

हम हैं विध्वंसक, विश्व पुरातन हमें उलटना है,
हम निर्माता हैं, युग की काया हमें पलटना है,
हम हैं विनाश, पशुता से पहले हमें निबटना है,
हम ही हैं नूतन सृजन, नया जग हमको रचना है।

धुन की ज्वाला में तपा हमारा यौवन फौलादी,
हम विद्रोही, हम क्रान्तिदूत, हम हैं विप्लववादी।

– स्वर्ण सहोदर

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