विज्ञापन सुंदरी- लीलाधर जगूड़ी

लीलाधर जगूड़ी
विज्ञापन सुंदरी द्वारा प्रस्तुत करने योग्य बनाया जायेगा इस जीवन को
हमको इसमें क्या देखना क्या समझना है,
एक तो यह कि जीवन और ज़रूरतों के हम कितने शिकार हैं
दूसरा यह कि कितना हम शिकार कर पाते हैं समस्याओं का
तीसरा यह कि विज्ञापन सुंदरी द्वारा प्रस्तुत करने योग्य
क्या है हमारे जीवन में? 
यह तो बाज़ार है जिसे अपने विज्ञापन के लिए
विश्वसुंदरी की भी ज़रूरत है
वरना विश्वसुंदरी की भी क्या ज़रूरत है 
विज्ञापन सुंदरी द्वारा प्रस्तुत करने योग्य जीवन में
कितने अनुपयोगी और कितने अदर्शनीय हैं हम
हमारे अप्रस्तुत जीवन में हर वक्त प्रस्तुत हैं।
गोबर थापती, उपले पाथती ग़रीब गबरू औरतें
उत्पीड़ित कमाऊ बच्चों की अस्थायी नींद और स्थायी बीमारियाँ
जो सफल और सभ्य समाज में
साबुन, पाउडर, क्रीम और हिंसक खिलौनों में बदल जाती हैं 
जिन्हें पुरानी स्त्री के मैल से पैदा नयी स्त्रियाँ बेंचती हैं 
क्योंकि नयी स्त्रियाँ ही आर्थिक स्त्रियाँ मान ली गयी हैं
इनका विवेक प्रायोजित विवेक है 
कौन नहीं चाहता कि लंबी छरहरी और वाक्पटु लड़कियां हों
युद्ध स्तर पर बौद्धिक होने का अत्याचार सहे बिना शारीरिक
सौष्ठव में बौद्धिक सौंदर्य लड़कों का भी जाँचा नहीं चाहिए।  
मैल कितना उत्पादक हो सकता है यह साबुनों और
डिटर्जेंट पाउडरों के बीच हो रहे युद्ध से जाना जा सकता है
जिन्हें सौंदर्य के मैनेजर अधिक सुंदर दामों पर बेचने की होड़ में हैं 
पसीने से बचने के हज़ार उपाय करते हुए जीना 
और फिर पसीना निकालने के लिए महँगी मशीन पर व्यायाम करना
अपव्यय नहीं बल्कि व्ययशक्ति और क्रयशक्ति का मामला है
वायुशक्ति में साँस लेते-लेते क्षीण होती हुई आयुशक्ति
उस सुंदर स्त्री की भी समस्या है 
कंपनियों की कठपुतलियाँ विज्ञापन सुंदरियाँ
एक अकर्मण्य-सा परिधान बेचती हैं
एक अस्वीकार्य-सा वस्त्र स्वीकार्य करवाती हैं
कम लंबाई वालों के बीच ज़्यादा लंबी-लंबी बेजोड़ स्त्रियाँ
जिनमें बौद्धिक सौंदर्य की तलाश उन्हें अबौद्धिक मान लेने से हुई हैं
ये स्वतःस्फूर्त सौंदर्य की धनी भरोसे की स्त्रियाँ नहीं हैं। 
वह स्त्री कहाँ है जो इस ड्रेस की डिज़ाइनर है
वह कैंची के बराबर कैंची जैसी चलती स्त्री कहाँ है
जो समझती है देह दर्शन उसके जीवन का दर्शन नहीं
जो समझे बैठी है सिर्फ मुख का सौंदर्य गया सुख का सौंदर्य गया 
कहाँ हैं वे कोठरियाँ जिनमें दर्जनों दर्जी स्त्रियाँ
सौंदर्य परिधानों पर सौ-सौ सिलाइयाँ डालने के बाद भी
अपने जीवन की एक धज्जी नहीं सिल पातीं 
प्रसव पीड़ा से गुज़री हुई माताएँ कहाँ हैं?
विज्ञापन सुंदरियाँ 
सुरक्षित बच्चों का खेलकूद और उनकी ड्रेसें बताती हैं।
उनके खान-पान उनके उपहार गिनाती हैं
उनकी टॉफियाँ और चुसनियाँ बेचती हैं।
हमें अपने चारों ओर के बच्चों में वह स्वास्थ्य और सुरक्षा से 
पैदा हुआ सौंदर्य क्यों नहीं दिखता? 
चाभी भरी हुई संयोजित सुंदरियाँ
अपने विज्ञापन के लिए पाना चाहती हैं
अधिकतम अनाथ और विकलांग बच्चे 
दूसरी ओर
एक विज्ञापन आता है कि शिशुओं को स्तनों से ही दूध पिलायें 
और संयोग देखिए
इसे विश्व व्यवस्था में परिवर्तन माना जा रहा है।

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