अरुण यह मधुमय देश हमारा – जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद
अरुण यह मधुमय देश हमारा!
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।
सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर-मंगल कुंकम सारा!
लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये-समझ नीड़ निज प्यारा
बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणाजल।
लहरें टकराती अनन्त की-पाकर जहाँ किनारा।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा। 

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