सुनो विक्रम
कबसे लादे हो
तुम
कंधों पर
कथाओं का बैताल।
आदर्श, प्रेम, राजा, न्याय के अतिरिक्त
बहुत क़िस्से हैं
ज़रा अपनी नज़र से भी देखो
निर्णय देने से
अधिक कठिन है
कथा को दिशा देना।
अब तुम सुनाओ कथा बैताल को
सवार होकर कंधों पर
और पूछो सवाल—
अधिकतम कितना मूल्य है
एक निरीह महिला को
सरेआम नंगा करने का?
एक इंसान को बेबसी की
अंतिम सीमा तक
पहुँचा देने का?
मत गढ़ो क़िस्से
सामाजिक समता के
अस्मिता की पुकार—
कथा-परंपरा की
भेड़चाल नहीं हो सकती
कब मिलेगा पशुतुल्य मानव को
अधिकार!
कब बदलेंगे कर्मकांड
कब मिलेगा सामाजिक न्याय
पूछो उससे
अन्यथा
कर दो उसके टुकड़े-टुकड़े
देखो
वह हल सुझाएगा
और तुम्हारे साथ
गंतव्य तक जाएगा!