कविता
यदि लड़की भी होती मनुष्य
लड़की को
हक नहीं होता प्रेम करने का
लेकिन,
आते-जाते, घूमते-फिरते, छिपते-छिपाते
कपड़े छत पर
सुखाते-उतारते भी
प्राय:
हो ही जाता है प्रेम
कहीं न कहीं
कैसे भी
आखिर
मनुष्य होने की
फितरत में है ‘प्रेम’
जबकि
शायद
लड़की को नहीं समझा जाता
मनुष्य
देखा न —
यदि लड़की भी होती मनुष्य।
तो लिख सकती
प्रेम की कविताएं
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा( मई-जून 2016) पेज- 61