कविता
भतेरा ढो लिया तेरी कल्चर का बोझ,
इब चलाइए ट्रैक्टर रोज।
आधी धरती आधा घर,
पूरी पढ़ाई, बणु अफसर।
देखणी मैंने दुनिया सारी,
छोड़ दी या सरम की बीमारी।
ब्याह की भी मर्जी,
तलाक की भी।
मेरी जिंदगी मेरी जिम्मेवारी,
करूंगी मैं सारी तैयारी।
राज़ी रहण का मैंने हक सै,
जियूंगी अपणी शर्तां पै।
ना जोडिय़ों नाक मेरे तै,
इज़्जत तेरी तेरे कर्मां तै।
छोरी हूं मैं इज़्जत का भरोटा नहीं,
अक बांध-बांध जेवड़ी सबने धरदी।
जीण भेजी थी राम ने,
गाम की इज़्जत ढोण नहीं।
अपणी-अपणी आप ढोओ,
मैंने इब नमस्ते कर दी।
स्रोतः सं. सुभाष चंद्र, देस हरियाणा( मई-जून 2016) पेज- 52