चौधरी छोटूराम स्वतंत्रता से पहले किसान नेता व चिंतक-विचारक थे। किसानों को जागृत करने के लिए उन्होंने जाट-गजट नाम का उर्दू साप्ताहिक प्रकाशित किया। किसानों में व्याप्त बुराइयों, अंधविश्वास, पांखड, अज्ञानता को दूर करने के लिए तीखे लेख लिखे। किसानों का शोषण करने वाले महाजनों, पंडा-पुजारी वर्ग व शासकों को भी खरी खरी सुनाई। हिंदू-मुस्लिम एकता, धार्मिक सद्भाव व भाईचारे के चैंपियन थे। वे भारत-पाक विभाजन के खिलाफ थे। किसानों को संगठित होने व किसान आंदोलन को तीव्र करने के लिए अनेक कार्य किए. यहां उनके लेखों की शृंखला प्रस्तुत की जा रही है। ये लेख तत्कालीन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समेटे हुए हैं और आज भी प्रासंगिक हैं। उम्मीद है आपको पसंद आयेगी.
चौधरी छोटूराम का जीवन परिचय
जन्म: 24 नवम्बर 1881, दिल्ली-रोहतक मार्ग पर गांव गढ़ी-सांपला, रोहतक (हरियाणा-तत्कालीन पंजाब सूबा) में चौधरी सुखीराम एवं श्रीमती सिरयां देवी के घर। 1893 में झज्जर के गांव खेड़ी जट में चौधरी नान्हा राम की सुपुत्री ज्ञानो देवी से 5 जून को बाल विवाह।
शिक्षा: प्राइमरी सांपला से 1895 में झज्जर से 1899 में, मैट्रिक, एफ.ए., बीए सेन्ट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से 1899-1905। कालाकांकर में राजा के पास नौकरी 1905-1909। आगरा से वकालत 1911, जाट स्कूल रोहतक की स्थापना 1913, जाट गजहट (उर्दू साप्ताहिक) 1916, रोहतक जिला कांग्र्रेस कमेटी के प्रथम अध्यक्ष 1916-1920, सर फजले हुसैन के साथ नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी (जमींदार लोग) की स्थापना 1923, डायरकी में मंत्री 1924-1926, लेजिस्लेटिव काउंसिल में विरोधी दल के नेता 1926-1935 व अध्यक्ष 1936, सर की उपाधि 1937, प्रोविन्सियल अटॉनमी में मंत्री 1937-1945, किसानों द्वारा रहबरे आजम की उपाधि से 6 अप्रैल 1944 को विभूषित, भाखड़ा बांध योजना पर हस्ताक्षर 8 जनवरी 1945।
निधन: शक्ति भवन (निवास), लाहौर-9 जनवरी 1945।
1923 से 1944 के बीच किसानों के हित में कर्जा बिल, मंडी बिल, बेनामी एक्ट आदि सुनहरे कानूनों के बनाने में प्रमुख भूमिका। 1944 में मोहम्मद अली जिन्ना की पंजाब में साम्प्रदायिक घुसपैठ से भरपूर टक्कर।
एक मार्च 1942 को अपनी हीरक जयंती पर उन्होंने घोषणा की-‘मैं मजहब को राजनीति से दूर करके शोषित किसान वर्ग और उपेक्षित ग्रामीण समाज की सेवा में अपना जीवन खपा रहा हूं।’
भारत विभाजन के घोर विरोधी रहे। 15 अगस्त 1944 को विभाजन के राजाजी फॉर्मुले के खिलाफ गांधी जी को ऐतिहासिक पत्र लिखा।
अगर रहबर रे आजम दीनबंधु सर चौधरी छोटू राम 1945 में अचानक इस दुनिया से नहीं जाते तो वह शख्सियत पाकिस्तान नहीं बनने देता क्योंकि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को पंजाब से भगा दिया था चौधरी छोटू राम भारत देश की बहुत बड़ी शख्सियत थे उन्होंने महात्मा गांधी के गलत कार्यों का भी विरोध किया और खासकर पुराने पंजाब में लोगों के रहन-सहन को ऊंचा उठाने का कार्य किया और उनको रोजगार की तरफ आकर्षित किया अंत में मैं यही कहूंगा कि अगर चौधरी छोटू राम 1945 में इस दुनिया से अलविदा नहीं होते तो आज भारत का अलग ही स्वरूप होता चौधरी छोटू राम को भारत से ज्यादा पाकिस्तान के लोग पूजते हैं