कविता
डिजिटल चावल
और चींटी चावल का दाना छोड़ कर चली गयी,
और इस तरह से चावल का वो दाना सुदामा के हाथों कृष्ण को नसीब हुआ।
बात यहीं ख़त्म हो जाती तो गनीमत थी;
चावल का वो दाना उगाने वाला किसान परसों रिक्शा चलाता मिला।
बोला- ‘अब खेती में पूरा नहीं पड़ता, इसलिये फैजाबाद छोड़ आया, अब रिक्शा चलाउंगा…’
अब चींटियों की नवीं नस्ल पछता रही है कि-
हमारी पूर्वजों नें वो चावल का दाना क्यूं छोड़ दिया।
इंडिया को राशन खिलाने वाला किसान अभी भाषण खा रहा है।
डिजिटल हो रही ज़मीन को ‘टच’ करके चावल का दाना उगा रहा है॥
स्रोत- सं. देस हरियाणा (मई-जून 2016), पेज- 20