बीस बरस की लड़की – कुलदीप कुणाल

कविता


बीस बरस की लड़की

अब हो गयी तुम पूरे बीस बरस की लड़की
ये उम्र है किसी का कहा ना मानने की
अपनी कहने की, करने की
हालांकि मुश्किल है इक लड़की का इस उम्र का लुत्फ़ उठाना
इस देश में इक लड़की को गलतियां करने की इजाजत नहीं है
क्यूंकि लड़की ने गर गलती की तो बहुत सारी गलतियां पकड़ी जाएँगी
इसलिए बीस बरस की लड़की को अपना यौवन पहचानने की इजाज़त नहीं
जबकि उसका शरीर परखती हैं नुक्कड़ के दुकानदार की आँखें
ओ बीस बरस की लड़की, ये उम्र है वही;
जिसमे लडकियां प्रेम करती हैं
बालकनी से बाहर के लड़कों को ताकती हैं
और अपने शरीर की कम्पन भांपती हैं
मगर कुछ लडकियां ठीक इसी उम्र में अपने भीतर झांकती हैं
और अपने सवालों को भरपूर पनपने देती हैं
अपने शरीर की तरह, अपने शरीर के साथ-साथ
अपने इरादों को पूरा क़द देती हैं
अपनी जि़न्दगी को मकसद (या यूं कहैं कि बने-बनाए मकसद को ठोकर मारती हैं..)
अपने लिए दु:ख और बदनामी को चुनती हैं
जो अपने मासिक चक्र में देखती हैं किसी संभावना की सूरत
और जैसा की तुम जानती हो,
सम्भावना की कोई उम्र नहीं होती
उम्र होती है इक लड़की की
बीस बरस की लड़की के मकसद की उम्र नहीं होती।


स्रोत- सं. देस हरियाणा (मई-जून 2016), पेज- 21

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