सच्ची वीरता – सरदार पूर्ण सिंह

सरदार पूर्ण सिंह जी (1881 से 1931) का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के ज़िला एबटाबाद के गांव सिलहड़ में हुआ था । हाईस्कूल रावलपिंडी से उत्तीर्ण की और एक छात्रवृत्ति पाकर उच्च अध्ययन के लिए जापान चले गए । लौटकर पहले वे साधु जीवन जीने लगे और बाद में गृहस्थ हुए । देहरादून में नौकरी की, कुछ समय ग्वालियर में व्यतीत किया और फिर पंजाब में खेती करने लगे । उन्होंने ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मज़दूरी और प्रेम’, ‘सच्ची वीरता’ आदि कुल छः निबंध लिखे और हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया । उनके सभी निबंध ‘सरदार पूर्ण सिंह के निबंध’ नामक पुस्तक में संकलित है ।

सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं । उनके मन की गम्भीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है । वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है । सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती । वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती । वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं । ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आंख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं । जब ये शेर जागकर गर्जते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज़ की गूँज सुनाई देती रहती हैऔर सब आवाज़ें बंद हो जाती है । वीर की चाल की आहट कानों में आती रहती हैऔर कभी मुझे और कभी तुझे मद्मत करती है । कभी किसी की और कभी किसी की प्राण-सारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है ।

देखो, हरा की कंदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है । जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की ओर कोई ध्यान नहीं देता में, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था । एक उदारह्रदया धन-सम्पन्ना स्त्री की की वह नौकरी करता है । उसकी सांसारिक प्रतीष्ठा एक मामूली ग़ुलाम की सी है । पर कोई ऐसा दैवीकरण हुआ जिससे संसार में अज्ञात उस ग़ुलाम की बारी आई । उसकी निद्रा खुली । संसार पर मानों हज़ारों बिजलियां गिरी । अरब के रेगिस्तान में बारूद की सी आग भड़क उठी । उसी वीर की आंखों की ज्वाला इंद्रप्रस्थ से लेकर स्पेन तक प्रज्जवलित हुई । उस अज्ञात और गुप्त हरा की कंदरा में सोने वाले ने एक आवाज़ दी । सारी पृथ्वी भय से कांपने लगी । हां, जब पैगम्बर मुहम्मद ने “अल्लाहो अकबर” का गीत गाया तब कुल संसार चुप हो गया और कुछ देर बाद, प्रकृति उसकी आवाज़ को सब दिशाओं में ले उड़ी । पक्षी अल्लाह गाने लगे और मुहम्मद के पैग़ाम को इधर उधर ले उड़े । पर्वत उसकी वाणी को सुनकर पिघल पड़े और नदियाँ “अल्लाह अल्लाह” का आलाप करती हुई पर्वतों से निकल पड़ी । जो लोग उसके सामने आए वे उसके दास बन गए । चंद्र और सूर्य ने बारी बारी से उठकर सलाम किया । उस वीर का बल देखिए कि सदियों के बाद भी संसार के लोगों का बहुत सा हिस्सा उसके पवित्र नाम पर जीता है और अपने छोटे से जीवन को अति तुच्छ समझकर उस अनदेखे और अज्ञात पुरुष के, केवल सुने-सुनाए नाम पर कुर्बान हो जाना अपने जीवन का सबसे उत्तम फल समझता है ।

सत्वगुण के समुद्र में जिसका अंतःकरण निमग्न हो गया वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं । वे लोग अपने क्षुद्र जीवन का परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिए संसार के सब अगम्य मार्ग साफ हो जाते हैं । आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है । प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती है । हमारे असली और सच्चे राजा ये ही साधु पुरुष हैं । हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चाँदी से ज़र्क-वर्क पर सिंहासन पर बैठने वाले दुनिया के राजाओं को तो, जो ग़रीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिण्डोपजीवी हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है । ये जरी, मखमल और ज़ेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हरदम कांपते रहते हैं । इन्द्र के समान ऐश्वर्यवान और बलवान होने पर भी दुनिया के ये छोटे “जाॅर्ज” बड़े कायर होते हैं । क्यों न हों, इनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती । दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है । हां, जब कभी किसी अकबर का राज लोगों के दिलों पर होता है तब कायरों की बस्ती में मानों एक सच्चा वीर पैदा होता है ।

एक बागी ग़ुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई । यह ग़ुलाम क़ैदी दिल से आज़ाद था । बादशाह ने कहा – मैं तुमको अभी जान से मार डालूंगा । तुम क्या कर सकते हो ? ग़ुलाम बोला – “हां, मैं फाँसी पर तो चढ़ जाऊँगा, पर तुम्हारा तिरस्कार तब भी कर सकता हूं ।” बस इस ग़ुलाम ने दुनिया के बादशाहों के बल की हद दिखला दी । बस इतने ही ज़ोर, इतनी ही शेखी पर ये झूठे राजा शरीर को दुःख देते और मारपीट कर अनजान लोगों को डराते हैं । भोले लोग उनसे डरते रहते हैं । चूँकि सब लोग शरीर को अपने जीवन का केंद्र समझते हैं, इसीलिए जहां किसी ने उनके शरीर पर ज़रा ज़ोर से हाथ लगाया वहीं वे डर के मारे अधमरे हो जाते हैं । शरीर रक्षा के निमित्त ये लोग इन राजाओं की ऊपरी मन से पूजा करते हैं । जैसे ये राजा वैसा उनका सत्कार । जिनका बल शरीर को ज़रा-सी रस्सी से लटका कर मार देने भर का है, भला उनका और उन बलवान और सच्चे राजाओं का क्या मुकाबला जिनका सिंहासन लोगों के हृदय-कमल की पंखुडियों पर है? सच्चे राजा अपने प्रेम के ज़ोर से लोगों के दिलों को सदा के लिए बाँध देते हैं । दिल्ली पर हुकूमत करने वाली फ़ौज, तोप, बंदूक आदि के बिना ही वे शहंशाह-ज़माना होते हैं । मंसूर ने अपनी मौज में आकर कहा – “मैं खुदा हूं।” दुनिया कै बादशाह ने कहा – “यह क़ाफ़िर है।” मगर मंसूर ने अपने कलाम को बंद ना किया । पत्थर मार-मार कर दुनिया ने उसके शरीर की बुरी दशा की, परन्तु उस मर्द के हर बाल से ये ही शब्द निकले – “अनहलक़” – “अहं ब्रह्मास्मी” – “मैं ही ब्रह्मा हूं । सूली पर चढ़ना मंसूर के लिए सिर्फ एक खेल था । बादशाह ने समझा कि मंसूर मारा गया ।

शम्स तबरेज़ को भी ऐसा ही क़ाफ़िर समझकर बादशाह ने हुक्म दिया कि इसकी खाल उतार दो । शम्स ने खाल उतारी और बादशाह को दरवाज़े पर आए हुए कुत्ते की तरह भिखारी समझकर, वह खाल खाने के लिए दे दी । खाल देकर वह अपनी यह ग़ज़ल बराबर गाता रहा –

“भीख माँगने वाला तेरे दरवाज़े पर आया है,
ऐ शाह-ए-दिल! कुछ इसको दे दे ।”
खाल उतार कर फेंक दी! वाह रे सत्पुरूष!
भगवान शंकर जब गुजरात की तरफ़ यात्रा कर रहे थे तब एक कापालिक हाथ जोड़े सामने आकर खड़ा हुआ । भगवान ने कहा – “माँग, क्या माँगता है?” उसने कहा – “हे भगवान, आजकल के राजा बड़े कंगाल हैं । उनसे अब हमें दान नहीं मिलता । आप ब्रह्मज्ञानी और सबसे बड़े दानी हैं । आप कृपा करके मुझे अपना सिर दान करें जिसकी भेंट चढ़ाकर मैं अपनी देवी को प्रसन्न करूंगा और अपना यज्ञ पूरा करूंगा ।” भगवान शंकर ने मौज में आकर कहा – “अच्छा, कल यह सिर उतार कर ले जाना और अपना काम सिद्ध कर लेना।”

एक दफ़े दो वीर पुरुष अकबर के दरबार में आए । वे लोग रोज़गार की तलाश में थे । अकबर ने कहा – “अपनी-अपनी वीरता का सबूत दो” बादशाह ने कैसी मूर्खता की! वीरता का भला क्या सबूत देते? परंतु दोनों ने तलवारें निकाल लीं और एक-दूसरे के सामने कर उनकी तेज़ धार पर दौड़ गए और वहीं राजा के सामने क्षण भर में अपने खून में ढेर हो गए ।

ऐसे वीर, रूपया, पैसा, माल, धन का दान नहीं दिया करते । जब ये दान देने की इच्छा करते हैं तब अपने आप को हवन कर देते हैं । बुद्ध महाराज ने जब एक राजा को मृग मारते देखा तब अपना शरीर आगे कर दिया जिससे मृग बच जाए, बुद्ध का शरीर चाहे चला जाए । ऐसे लोग कभी बड़े मौकों का इंतज़ार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं ।

जब किसी का भाग्योदय हुआ और उसे जोश आया तब जान लो कि संसार में एक तूफ़ान आ गया । उसकी चाल के सामने फिर कोई रूकावट नहीं आ सकती । पहाड़ों की पसलियां तोड़ कर ये लोग हवा के बगोले की तरह निकल जाते हैं, उसके बल का इशारा भूचाल देता है । और उसके दिल की हरकत का निशान समुद्र का तूफ़ान ला देता है । क़ुदरत की और कोई ताक़त उसके सामने फटक् नहीं सकती । सब चीज़ें थम जाती हैं । विधाता भी साँस रोककर उसकी राह देखता है ।

यूरोप में जब पोप का ज़ोर बहुत बढ़ गया था तब उसका मुक़ाबला कोई भी बादशाह न कर सकता था । पोप की आंखों के इशारे से यूरोप के बादशाह तख़्त से उतार दिए जा सकते थे । पोप का सिक्का यूरोप के लोगों के दिलों में ऐसा बैठ गया था कि उसकी बात को लोग ब्रह्म वाक्य से भी बढ़कर समझते थे और पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे । लाखों ईसाई साधू-संन्यासी और यूरोप के तमाम गिर्जे पोप के हुक्म की पाबंदी करते थे । जिस तरह चूहे की जान बिल्ली के हाथ होती है, उसी तरह पोप ने यूरोपवासियों की जान अपने हाथ में कर ली थी । इस पोप का बल और आतंक बड़ा भयानक था । मगर जर्मनी के एक छोटे से मंदिर के कंगाल पादरी की आत्मा जल उठी । पोप ने इतनी लीला फैलाई थी कि यूरोप में स्वर्ग और नर्क के टिकट बड़े-बड़े दामों पर बिकते थे । टिकट बेच-बेचकर यह पोप बड़ा विषयी हो गया था । लूथर के पास जब टिकट बिक्री होने को पहुँचे तब उसने पहले एक चिट्ठी लिखकर भेजी कि ऐसे काम झूठे तथा पापमय हैं और बंद होने चाहिए । पोप ने इसका जवाब दिया – “लूथर! तुम इस गुस्ताख़ी के बदले आग में ज़िंदा जला दिए जाओगे ।” इस जवाब से लूथर की आत्मा की आग और भी भड़की । उसने लिखा – “अब मैंने अपने दिल में निश्चय कर लिया है कि तुम ईश्वर के तो नहीं, शैतान के प्रतिनिधि हो । अपने आप को ईश्वर के प्रतिनिधि कहने वाले मिथ्यादी ! जब मैंने तुम्हारे पास सत्यार्थ का संदेश भेजा तब तुमने आग और जल्लाद के नामों से जवाब दिया । उससे साफ़ प्रतीत होता है कि तुम शैतान की दलदल पर खड़े हो, न कि सत्य की चट्टान पर । यह लो! तुम्हारे टिकटों के गड्डे मैंने आग में फेंके । मुझे जो करना था मैंने कर दिया, जो अब तुम्हारी इच्छा हो, करो । मैं सत्य की चट्टान पर खड़ा हूं ।” इस छोटे से संन्यासी ने वह तूफ़ान यूरोप में पैदा कर दिया जिसकी एक लहर से पोप का सारा जंगी बेड़ा चकनाचूर हो गया । तूफ़ान में एक तिनके की तरह वह न मालूम कहां उड़ गया ।

महाराज रणजीत सिंह ने फ़ौज से कहा – “अटक के पार जाओ” अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठी हुईं थी । जब फ़ौज ने कुछ उत्साह प्रकट न किया तो तब उस वीर को ज़रा जोश आया । महाराज ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया । कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए ।

दुनिया में जंग के सब सामान जमा हैं । लाखों आदमी मरने-मारने को जमा हो रहे हैं । गोलियां पानी की बूंदों की तरह मूसलाधार बरस रही हैं । यह देखो ! वीर को जोश आया । उसने कहा – “हाल्ट” (ठहरो) । तमाम फ़ौज निःस्तब्ध होकर सकते की हालत में खड़ी हो गई । आल्प्स के पहाड़ों पर फ़ौज ने चढ़ना असंभव समझा त्यों ही वीर ने कहा – “आल्प्स है ही नही ।” फ़ौज को निश्चय हो गया कि आल्प्स नहीं है और सब लोग पार हो गए ।

एक भेड़ चराने वाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती के दिल में जोश आते ही कुल फ़्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया ।

वीरों के बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते । वे तो देवदार के दरख़्तों की तरह जीवन के अरण्य में खुद-ब-खुद पैदा होते है और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए, तैयार हो जाते हैं । दुनिया के मैदान में अचानक ही सामने आकर वे खड़े हो जाते हैं, उनका सारा जीवन भीतर ही भीतर होता है । बाहर तो जवाहरात की खानों की ऊपरी ज़मीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता । वीर की ज़िंदगी मुश्किल से कभी-कभी बाहर नज़र आती है । उसका स्वभाव तो छिपे रहने का है ।

वह लाल गुदड़ियों के भीतर छिपा रहता है । कन्दराओं में, गारों में, छोटी-छोटी झोपड़ियों में बड़े-बड़े वीर महात्मा छिपे रहते हैं । पुस्तकों और अख़बारों को पढ़ने से या विद्वानों के व्याख्यानों को सुनने से तो बस ड्राइंग हाॅल के वीर पैदा होते हैं, उनकी वीरता अनजान लोगों से अपनी स्तुति सुनने तक ख़त्म हो जाती है । असली वीर तो दुनिया की बनावट और लिखावट के मखौलों के लिए नहीं जीते ।

हर बार दिखावे और नाम की ख़तिर छाती ठोंक कर आगे बढ़ना और फिर पीछे हटना पहले दर्ज़े की बुज़दिली है । वीर तो यह समझता है कि मनुष्य का जीवन एक ज़रा सी चीज़ है । वह सिर्फ एक बार के लिए काफ़ी है । मानो इस बंदूक में एक ही गोली है । हाँ, कायर पुरुष इसको बड़ा ही क़ीमती और कभी न टूटने वाला हथियार समझता है । हर घड़ी आगे बढ़कर, और यह दिखाकर कि हम बड़े है, वे फिर पीछे इस गरज से हट जाते हैं कि उनका अनमोल जीवन किसी और अधिक काम के लिए बच जाए । बादल गरज-गरज कर ऐसे ही चले जाते हैं परंतु बरसने वाले बादल ज़रा देर में बारह इंच तक बरस जाते हैं ।

कायर पुरुष कहते हैं – “आगे बढ़े चलो ।” वीर कहते हैं – “पीछे हटे चलो ।” कायर कहते हैं – “उठाओ तलवार ।” वीर कहते हैं – “सिर आगे करो ।” वीर का जीवन प्रकृति ने फ़िज़ूल खो देने के लिए नहीं बनाया है । वीर पुरुष का शरीर कुदरत की कुल ताक़तों का भण्डार है । कुदरत का यह मरक़ज हिल नहीं सकता । सूर्य का चक्कर हिल जाए तो हिल जाए, परंतु वीर के दिल में जो दैवी केंद्र है, वह अचल है । कुदरत के और पदार्थों की पाॅलिसी चाहे आगे बढ़ने की हों, अर्थात् अपने बल को नष्ट करने की हो, मगर वीरों की पाॅलिसी, बल हर तरह से इकट्ठा करने और बताने की होती है । वीर तो अपने अंदर ही “मार्च” करते हैं, क्योंकि ह्रदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते है ।

बेचारी मरियम का लाड़ला, खूबसूरत जवान, अपनी मद में मतवाला और अपने आपको शाहजहाँ हक़ीक़ी कहने वाला ईसा मसीह क्या उस समय कमज़ोर मालूम होता है जब भारी सलीब पर उठकर कभी गिरता, कभी ज़ख़्मी होता और कभी बेहोश हो जाता है ? कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है मग़र उस मर्द का दिल नहीं हिलता । कोई क्षुद्र हृदय और कायर होता तो अपने बादशाहत के बल की गुत्थियां खोल देता, अपनी ताक़त को नष्ट कर देता और और संभव है कि एक निगाह से उस सल्तनत के तख़्ते को उलट देता और और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था । “सूली मुझे है सेज पिया की, सोने दो मीठी-मीठी नींद है आती ।” अमर ईसा को भला दुनिया के विषय विकार में डूबे लोग क्या जान सकते थे ? अगर चार चिड़िया मिलकर मुझे फाँसी का हुक़्म सुना दें और मैं उसे सुनकर रो दूँ या डर जाऊँ तो मेरा गौरव चिड़ियों से भी कम हो जाए । जैसे चिड़िया मुझे फाँसी देकर उड़ गईं वैसे ही बादशाह और बादशाहतें भी आज ख़ाक़ में मिल गईं है ।

सचमुच ही वह छोटा सा बाबा लोगों का सच्चा बादशाह है । चिड़ियाओं और जानवरों की कचहरी के फ़ैसले से जो डरते या मरते हैं वे मनुष्य नहीं हो सकते। राणा जी ने ज़हर के प्याले से मीराबाई को डराना चाहा, मग़र वाह री सच्चाई ! मीरा ने उस ज़हर को भी अमृत मानकर पी लिया । वह शेर और हाथी के सामने की गई, मग़र वाह रे प्रेम ! मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया । इस वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं । भीतर ध्यान करते हैं । मारते नहीं, मरते हैं ।

वह वीर क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठंडा हो जाता है । सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हज़ारों वर्ष बर्फ उस पर जमी रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठंडी हो । उसे ख़ुद गर्म और सर्द होने से क्या मतलब? कारलायल को जो आज की सभ्यता पर गुस्सा आया तो दुनिया में एक नई शक्ति और एक नई जवानी पैदा हुई । कारलायल अंग्रेज़ ज़रूर है, पर उसकी बोली सबसे निराली है । उसके शब्द मानों आग की चिंगारियां है, जो आदमी के दिलों में आग सी जला देते हैं । अब कुछ बदल जाए मगर, कारलायल की गर्मी कभी कम न होगी । यदि हज़ार वर्ष दुनिया में दुखड़े और दर्द रोएं जाएँ तो भी बुद्ध की शांति और दिल की ठंडक एक दर्ज़ा भी इधर-उधर न होगी । यहां आकर भौतिक विज्ञान के नियम रो देते हैं । हज़ारों वर्ष आग जलती रहे तो भी थर्मामीटर जैसा का तैसा ।

बाबर के सिपाहियों ने और लोगों के साथ गुरूनानक को भी बेगार में पकड़ लिया । उनके सिर पर बोझ रक्खा और कहा – “चलो!” आप चल पड़े । दौड़, धूप, बोझ, बेगार में पकड़ी हुई औरतों का रोना, शरीफ़ लोगों का दुःख, गांव के गांव जलना सब किस्म की दुखदायी बातें हो रही हैं । मगर किसी का कुछ असर नहीं हुआ । गुरूनानक ने अपने साथी मर्दाना से कहा – “सारंगी बजाओ, हम गाते हैं ।” उस भीड़ में सारंगी बज रही है और आप गा रहे हैं । वाह री शांति ।

अगर कोई छोटा सा बच्चा नेपोलियन के कंधे पर चढ़कर उसके सिर के बाल नोचे तो क्या नेपोलियन इसको अपनी बेइज्ज़ती समझकर उस बालक को ज़मीन पर पटक देगा, जिसमें लोग उसको बड़ा वीर कहें? इसी तरह जब सच्चे वीर, जब उनके बाल दुनिया की चिड़िया नोचती है, तब कुछ परवाह नहीं करते, क्योंकि उनका जीवन आसपास वालों के जीवन से निहायत ही बढ़-चढ़ कर ऊंचा और बलवान होता है । भला ऐसी बातों पर वीर कब हिलते हैं! जब उनकी मौज आई, तभी मैदान उनके हाथ है ।

जापान के एक छोटे से गांव की एक झोपड़ी में एक छोटे क़द का एक जापानी रहता था । उसका नाम ओशियो था । यह पुरुष बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था । बड़े कड़े मिजाज़ का, स्थिर, धीर और अपने ख़यालात के समुद्र में डूबे रहने वाला पुरूष था । आसपास रहने वाले लोगों के लड़के इस साधु के पास आया-जाया करते थे । यह उनको मुफ़्त पढ़ाया करता था । जो कुछ मिल जाता वही खा लेता था । दुनिया की व्यावहारिक दृष्टि से वह एक निखट्ठू था क्योंकि इस पुरुष ने दुनिया में कोई बड़ा काम नहीं किया था । उसकी सारी उम्र शांति और सत्वगुण में गुज़र गई थी । लोग समझते थे कि वह एक मामूली आदमी है । एक दफ़ा इत्तेफ़ाक से दो तीन फसलों के न होने से इस फ़कीर के आसपास के मुल्क़ में दुर्भिक्ष पड़ गया । दुर्भिक्ष बड़ा भयानक था । लोग बड़े दुःखी हुए । लाचार होकर इस नंगे, कंगाल फ़कीर के पास मदद माँगने आए । उसके दिल में कुछ ख़याल हुआ । उनकी मदद करने को वह तैयार हो गया । पहले वह ओसाको नामक शहर के बड़े-बड़े धनाढ्य और भद्र पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी । इन भले मानसो ने वादा तो किया पर उसे पूरा न किया ।

ओशियो फिर उनके पास कभी न गया । उसने बादशाह के वज़ीरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए, परंतु बहुत दिन गुज़र जाने पर भी जवाब न आया । ओशियो ने अपने कपड़े और किताबें नीलाम कर दीं । जो कुछ मिला, मुट्ठी भर उन आदमियों की तरफ फेंक दिया । भला इससे क्या हो सकता था ? परंतु ओशियो का दिल इससे शिवरूप हो गया । यहां इतना ज़िक़्र कर लेना काफ़ी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह को पिता की तरह पूजते हैं । उनके हृदय की यह एक वासना है । ऐसी कौम के हज़ारों आदमी इस वीर के पास जमा हैं । ओशियो ने कहा – “सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जाओ और बग़ावत का झंडा खड़ा कर दो ।” कोई भी चूं-चर्रा न कर सका । बग़ावत का झंडा खड़ा हो गया । ओशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे की ओर जाकर बादशाह के क़िले पर हमला करने के लिए चल पड़ा । इस फ़क़ीर जनरल की की फ़ौज की चाल को कौन रोक सकता था ? जब शाही क़िले के सरदार ने देखा तो तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशियो और उसकी बाग़ी फ़ौज पर बंदूकों की बाढ़ छोड़ी जाए ? हुक़्म हुआ कि – “नहीं, ओशियो तो क़ुदरत के सब्ज़ बर्क़ों को पढ़ाने वाला है । वह किसी ख़ास बात के लिए चढ़ाई करने आया होगा । उसको हमला करने दो और आने दो ।” जब ओशियो क़िले में दाखिल हुआ तब वह सरदार मस्त जनरल को पकड़कर बादशाह के पास ले गया । उस वक्त ओशियो ने कहा – “वे राजभण्डार जो अनाज से भरे हुए हैं, ग़रीबों की मदद के लिए क्यों नहीं खोल दिए जाते ?”

जापान के राजा को डर सा लगा । एक वीर उसके सामने खड़ा था जिसकी आवाज़ में दैवी शक्ति थी । हुक़्म हुआ कि शाही भण्डार खोल दिएं जाएं और सारा अन्न दरिद्र किसानों को बाटा जाए । सब सेना और पुलिस धरी की धरी रह गई । मंत्रियों के दफ़्तर लगे रहे । ओशियो ने जिस काम पर कमर बाँधी उसको कर दिखाया । लोगों की विपत्ती कुछ दिनों के लिए दूर हो गई । ओशियो के हृदय की सफ़ाई, सच्चाई और दृढ़ता के सामने भला कौन ठहर सकता था ? सत्य की सदा जीत होती है । यह भी वीरता का एक चिह्न है । रूस के जार ने सब लोगों को फ़ांसी दे दी । किन्तु टाॅल्सटाय को वह दिल से प्रणाम करता था । उनकी बातों का आदर करता था । जय वहीं होती है जहां कि पवित्रता और प्रेम है । दुनिया किसी कूड़े के ढेर पर नहीं खड़ी है कि जिस मुर्गे ने बांग दी वही सिद्ध हो गया । दुनिया धर्म और अटल आध्यात्मिक नियमों पर खड़ी है । जो अपने आपको उन नियमों के साथ अभिन्नता करके खडा हुआ वह विजयी हो गया । आजकल लोग कहते हैं कि काम करो, काम करो । पर हमें तो यह बातें निरर्थक मालूम होती है । पहले काम करने का बल पैदा करो – अपने अंदर ही अंदर वृक्ष की तरह बढो ।

आजकल भारतवर्ष में परोपकार करने का बुखार फैल रहा है । जिसको 105 डिग्री का बुखार चढ़ा वह आजकल के भारतवर्ष का ऋषि हो गया । आजकल भारतवर्ष में अखबारों की टकसाल में गढ़े हुए वीर दर्जनों मिलते हैं । जहां किसी ने एक दो काम किए और आगे बढ़कर छाती दिखाई तहां हिंदुस्तान के अखबारों ने हीरो’ और ‘महात्मा’ की पुकार मचाई । बस एक नया वीर तैयार हो गया । ये तो पागलपन की लहरें हैं । अखबार लिखने वाले मामूली सिक्के के मनुष्य होते हैं । उनकी स्तुति और निंदा पर क्यों मरे जाते हो ? अपने जीवन को अखबारों के छोटे छोटे पैराग्राफों के ऊपर क्यों लटका रहे हो ? क्या यह सच नहीं है कि हमारे आजकल के वीरों की जानें अखबार के लेखों में है ? जहां इन्होंने रंग बदला कि हमारे वीरों के रंग बदले, ओंठ सूखे और वीरता की आशाएँ टूट गईं ।

प्यारे, अंदर के केंद्र की ओर अपनी चाल उलटो और इस दिखावटी और बनावटी जीवन की चंचलता में अपने आप को न खो दो । वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी बनों, और वीरता के काम नहीं तो धीरे धीरे अपने अंदर वीरता के परमाणुओं को जमा करो ।

जब कभी हम वीरों का नाम सुनते हैं तब हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठती हैं और वीरता का रंग चढ़ जाता है । परंतु वह चिरस्थाई नहीं होता । इसका कारण सिर्फ़ यही है कि हमारे भीतर का मसाला तो होता नहीं । हम सिर्फ़ खाली महल उसके दिखलाने के लिए बनाना चाहते हैं । टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केंद्र में निवास करो और सच्चाई की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ । अपनी ज़िंदगी किसी और के हवाले करो ताकि ज़िंदगी के बचाने की कोशिशों में कुछ भी वक़्त ज़ाया न हो । इसलिए बाहर की सतह को छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में घुस जाओ, तब नए रंग खुलेंगे । द्वेष और भेद दृष्टि छोड़ो, रोना छूट जाएगा । प्रेम और आनंद से काम लो, शांति की वर्षा होने लगेगी और दुखड़े दूर हो जाएंगे । जीवन के तत्व का अनुभव करके चुप हो जाओ, धीर और गंभीर हो जाओगे । वीरों की, फ़क़ीरों की, पीरों की यह कूक है — हटो पीछे, अपने अंदर जाओ, अपने आप को देखो, दुनिया और की और हो जाएगी । अपनी आत्मिक उन्नति करो ।

More From Author

मानसिक पराधीनता – प्रेमचंद

हमारे समय का अनुपम आदमी : अनुपम मिश्र – अमरनाथ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *