अगर उत्तर भारत को समस्त जनता के आचार-विचार, भाव-भाषा, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ को जानना चाहते हैं तो में आपको निःसंशय बता सकता हूँ कि प्रेमचन्द से उत्तम परिचायक आपको दूसरा नहीं मिल सकता । झोपड़ियों से लेकर महलों तक, खोमचेवालों से लेकर बैंकों तक, गाँव पंचायतों से लेकर धारा-सभाओं तक, आपको इतने कौशलपूर्वक और प्रामाणिक भाव से कोई नहीं ले जा सकता । आप बेखटके प्रेमचन्द का हाथ पकड़ कर मेड़ों पर गाते हुए किसान को, अन्तःपुर में मान किये प्रियतमा को, कोठे पर बैठी हुई वारवनिता को, रोटियों के लिए ललकते हुए भिखमंगों को, कूट परामर्श में लीन गोयन्दों को, ईर्षापरायण प्रोफेसरों को, दुर्बलहृदय बैंकरों को, साहस-परायण चमारिन को, ढोंगी पण्डित को, फरेबी पटवारी को, नीचाशय अमीर को देख सकते हैं और निश्चिन्त होकर विश्वास कर सकते हैं कि जो कुछ आपने देखा है। – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(पूरा लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें) प्रेमचंद का महत्व – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी