प्राण – रवींद्रनाथ टैगोर

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती पर उनकी एक कविता “प्राण” का हरियाणवी में अनुवाद आपके सामने प्रस्तुत है जिसका हिंदी में अनुवाद श्री रामधारी सिंह दिनकर ने किया है.यह कविता गुरुदेव ने नवंबर 1886 में लिखी थी – मंगतराम शास्त्री

प्राण – रवींद्रनाथ टैगोर (अनु. मंगतराम शास्त्री)

इस सोहणी सी दुनिया म्हं मैं मरणा कोनी चांह्दा
माणसां कै बिचाल़ै बचणा चाहूँ सूं
जिन्दे-जागदे हिरदै म्हं जै जगांह थ्या ज्या
तो इन सूरज की किरणां म्हं
इस फूल्लां भरे बण म्हं
इब्बे मैं जीणा चाहूँ सूं।

धरती पै प्राणां का खेल धुर-दिन तै ए होन्दा आवै सै
उरै कितना गाढ़ा मेल़, कितना बिछोड़ा, कितनी हांस्सी अर कितने आंस्सू सैं
माणस के सुख-दुख म्हं संगीत पिरो कै
जै मैं कोए अमर ठाण बणा सकूँ
तो उरै मैं जीणा चाहूँ सूं।

जै न्यूं ना हो सकै तो मैं जिब तक बचूं
थारै सब कै बिचाल़ै मेरी जगांह बणी रहै
अर मैं इस आश म्हं
संगीत के नवे-नवे फूल खिलांदा रहूँ
के देर-सबेर थामें इन नै जरूर चुगोगे.
हांसदे होए फूल थामें ले लियो
पाच्छै जोणसे फूल सूख ज्यावैं तो
उन नै फैंक दियो.

अनुवादक – मंगतराम शास्त्री.

Leave a reply

Loading Next Post...
Sign In/Sign Up Sidebar Search Add a link / post
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...