क्रांतिकारी सूफी संत कवि बू अली शाह कलंदर – अरुण कुमार कैहरबा

बू अलीशाह कलंदर दरगाह

जाति, धर्म, सम्प्रदाय, बोली-भाषा, क्षेत्र, रंग व लिंग आदि के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिशें होती आई हैं। लेकिन पीरों, फकीरों और पैगंबरों ने हमेशा मानव एकता का संदेश दिया है। सूफी कवि एवं संत हजरत बू अली शाह कलंदर के उर्स के उपलक्ष्य में नित्यनूतन वार्ता द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में ऐसा ही नजारा उस समय देखने को मिला, जब भारत व पाकिस्तान के लोगों ने एक साथ मिलकर कलंदर साहब को खिराजे अकीदत पेश की। कार्यक्रम में वीडियो के प्रसारण से कलंदर को समर्पित कव्वालियां सुनाई गई। पाकिस्तान के श्रद्धालुओं ने पानीपत में सूफी संत बू अली शाह कलंदर की दरगाह के दर्शन किए।

कलंदर साहब के जीवन-दर्शन पर आयोजित वेबीनार में लाहौर में रह रहे हजरत बू अली शाह कलंदर के सज्जादानशीं जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने मुख्य अतिथि और भारत के लोक जीवन के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की। वेबीनार का संयोजन नित्यनूतन वार्ता के प्रभारी व सामाजिक कार्यकर्ता राममोहन राय, प्रसिद्ध इतिहासकार सुरेन्द्र पाल सिंह व पाकिस्तान की संस्कृतिकर्मी असमारा नोमानी ने संयुक्त रूप से किया। विकास साल्याण ने तकनीकी संयोजन किया।

राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी

डॉ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि पानीपत का सांस्कृतिक सर्वेक्षण करते हुए उनकी निगाह कलंदर साहब की दरगाह पर गई, जहां पर हिन्दू और मुसलमान एक साथ एक ही भावना से आते हैं। वे दोनों अपनी आस्थाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। वह ऐसी जगह है, जहां लकीरें मिट जाती हैं। कलंदर साहब का नाम शेख सादी के साथ लिया जाता है। लिकाउल्लाह खां द्वारा लिखी गई किताब बुजुर्गान-ए-पानीपत के माध्यम से बू अली शाह कलंदर से उनका परिचय हुआ। उन्होंने कहा कि कलंदर साहब की मान्यताओं को हम साहित्य, समाज व मजहब तीन नजर से देख सकते हैं। ये नजरें कोई अलग-अलग नहीं हैं। लेकिन अध्ययन के लिए हम अपनी सहूलियत के लिए वर्गीकरण करते हैं। चतुर्वेदी ने कहा कि हम देखते हैं कि कलंदर साहब में एक विद्रोह, क्रांति व बगावत की भावना है। वह कोई मामूली बात नहीं है। असाधारण है।

पानीपत में आने से पहले बू अली शाह कलंदर कुतुब मीनार पर मदरसा चलाते थे। लिटरेचर, भाषा, धर्म पढ़ाते थे। जब पानीपत में लौटे तो वजीराबाद में विश्राम किया। वहां उन्हें ख्वाब आया है कि क्या तेरा जन्म इसीलिए है। सवेरे के समय उन्होंने सारी किताबें यमुना में बहा दी। बाशरा से बेसरा हो गए। कलंदर सम्प्रदाय को बाशरा और बेशरा दो धाराओं में बांटा जाता है। कलंदर बेशरा को स्वीकार करते हैं। वे बंदिश को स्वीकार नहीं करते। लोगों ने उनकी शिकायत की कि कलंदर नमाज नहीं पढ़ता।

साहित्य के आलोचकों ने कलंदर शब्द पर चर्चा की है, लेकिन इस शब्द का सबसे अच्छा अर्थ है- मुक्त पुरूष। जिसने राज पा लिया है। कलंदर साहब बादशाहों के ताज की बजाय ज्ञान व कर्म को अहमियत देते थे। उस समय संगीत को धर्म विरूद्ध माना जाता था, लेकिन कलंदर को संगीत से बहुत लगाव था। इसलिए कहा जाता है कि एक विद्रोही चेतना के व्यक्तित्व थे कलंदर साहब। समाज की दृष्टि से कलंदर का मुख्य संदेश इश्क है। इश्क को लेकर उन्होंने खूब शायरी लिखी है। प्यार के उस चरम पर वे पहुंचे हुए हैं, जहां अहंकार व अभिमान नहीं रहता। इश्क में आशिक द्वारा अपनी तमन्नाएँ ही कुर्बान नहीं की जाती, बल्कि आशिक अपनी खुदी को मिटा देता है।

कलंदर साहब कहते हैं-तुम अपनी हैसियत को खत्म कर दो। इश्क और मैं दो अलग-अलग चीजें हैं। जब इश्क पैदा होगा तभी परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं। कलंदर साहब के अनुसार आशिक का आदर्श परवाना है। इश्क के मार्ग में कातिल को बद्दुओं के स्थान पर दुआएं दी जाती है। कलंदर कहते हैं-इश्क अब्बल, इश्क आखिर, इश्क गुल।उन्होंने कहा कि हिन्दी में कितने सूफी कवि हुए हैं। प्रेमाश्रयी मार्ग में सूफी धारा बहुत बड़ी है। सूफी कवियों में कुतबन, मंझन, शेख नबी सहित अनेक नाम हैं।

हिन्दी साहित्य की सूफी काव्य-धारा को समझने के लिए कलंदर के लिखे को पढ़ना जरूरी लगता है। हालांकि उनका साहित्य पर्शियन में है। आदमी मिले तो उनसे एक नई धारा निकलती है। कबीर के कथन-जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी की तरह ही कलंदर की अभिव्यक्ति है। उन्होंने बताया कि अमीर खुसरो अलाऊद्दीन खिलजी की सौगात को लेकर बू अली शाह कलंदर के पास पानीपत आए थे।जनाब आबिद आरिफ नोमानी ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर ने मोहब्बत का संदेश दिया। भाईचारा ही असल है। इन्सानियत की बात सबसे बुनियादी है। हमें इसे सीखना चाहिए। हमें आपस में बंटना नहीं है, जुड़ना है। झगड़ा करने का कोई फायदा नहीं है। भारत-पाकिस्तान के लोगों को आने-जाने के मौके मिलने चाहिएं ताकि कलंदर साहब जैसे सूफी संतों के संदेश को पूरी दुनिया में फैलाया जा सके। हम एक दूसरे के यहां आ पाएं, जा पाएं। एक दूसरे की इज्जत करें।

 राममोहन राय ने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर की पूरी दुनिया में ख्याति है। पानीपत के लोगों को पानीपत की लड़ाईयों के लिए इज्जत नहीं मिलती है बल्कि हजरत बू अली शाह कलंदर का शहर होने के कारण इज्जत मिलती है। प्रसिद्ध गांधीवादी निर्मला देशपांडे कलंदर के भाईचारे व मानवता के संदेश से खासी प्रभावित थीं। उन्होंने किसी शायर के शेर को याद करते हुए कहा कि ‘सियासत को लहू पीने की लत है। वरना यहां सब खैरियत है।’ उन्होंने कहा कि जनता की भावनाएं भाईचारे की हैं, ये भावनाएं मजबूत होनी चाहिएं। उन्होंने 1997 में पाकिस्तान से पाकिस्तान में आए दल के सदस्यों के साथ मिलन के संस्मरणों को याद किया। उस समय असमारा ने पानीपत के मशहूर शायर शुगन चंद रोशन की लिखी नज्म गाई थी-‘ए बादे सबा ए बादे सबा, पैगाम हमारा उनको सुना।

’सुरेन्द्र पाल सिंह ने कहा कि भारत में हिन्दोस्तान व पाकिस्तान के लोगों में एक दूसरे से मिलने-जुड़ने की कसमसाहट है। इसी की अभिव्यक्ति ‘आगाज-ए-दोस्ती’ नाम की संस्था द्वारा हर वर्ष दोनों देशों के भाईचारे के लिए निकाली जाने वाली यात्रा से होती है। दिल्ली, हरियाणा व पंजाब के विभिन्न स्थानों से होते हुए यात्रा 14-15 अगस्त को वाघा बॉर्डर पर पहुंचती है। वहां पर देश भर के कार्यकर्ता भाईचारे के लिए दीये जलाते हैं। उन्होंने कहा कि हजरत बू अली शाह कलंदर दोनों देशों की एकता के प्रतीक हैं।

इस वेबीनार में खुशी की बात है कि बहुत से दोस्त पाकिस्तान और यूरोप से भी जुड़े हैं। हजरत बू अली शाह कलंदर के सूफीवाद को भुलाया नहीं जा सकता। भारत विविधताओं का देश है। इसमें हीर रांझा, मलंग, धमाल, दमादम मस्त कलंदर की बात होती है जो सूफीवाद से जुड़े हुए शब्द हैं। उन्होंने कहा कि भारत भाईचारे व सौहार्द का प्रतीक है। गुरु ग्रंथ साहब में बाबा फरीद की वाणी है। पंजाब में फरीदकोट शहर उनकी याद में बसाया गया। लंगर परंपरा की शुरूआत की बात होगी तो अजमेर शरीफ की बात भी आती है। गोल्डन टेंपल की नींव हजरत मियां मीर जी के द्वारा रखी गई। पंजाबी के विकास में सूफी फकीरों-शाह हुसैन, बुल्ले शाह, वारिस शाह, शेख हासिम शाह, मीयां मीर सहित अनेक लोगों का योगदान रहा है। लाहौर में रहने वाली असमारा नोमानी ने कहा कि वे हजरत बू अली शाह कलंदर के सज्जादानशीं के परिवार से हैं। बंटवारे के बाद उनका परिवार पानीपत से पाकिस्तान आया। उनका परिवार बंटवारे के बाद से लाहौर में कलंदर साहब का सलाना उर्स मुबारक आयोजित करता आ रहा है। वे बचपन से ही उर्स में घड़ा भराई, लंगरे आम, दुआ, महफिले शम्मां में हिस्सा लेती हैं। हमें मानवता, अमन, मोहब्बत व भाईचारे का सिलसिला आगे भी जानी रखना है।

पानीपत में कलंदर की दरगाह की तरफ से मुख्य वक्ता, मुख्य वक्ता व असमारा नोमानी को चादर भेंट करके सम्मानित किया गया।वेबीनार में पाकिस्तान से जुड़े विचारक साजिद नोमानी ने कहा कि मजहब रीतियों तक सिकुड़ कर रह गया है। माथा टेकने पर काम नहीं चलेगा। सूफी बड़े बुद्धिजीवी थे। उन्होंने जीवन को देखा और समझा। उसकी विसंगतियों पर चोट की। अपनी शायरी द्वारा अपनी भावनाएं प्रकट की। वे रूहानियत के सिंबल हैं। उन्होंने बताया कि बू अली शाह कलंदर का असली नाम शरफूद्दीन था। उन्होंने लिखा है-शरफा चूड़ी कांच की, दमड़ी-दमड़ी बेच।जब लग लागे पियू के, लाख टके की एक।।

अरुण कुमार कैहरबा, हिन्दी प्राध्यापक, स्तंभकार व लेखक
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,जिला-करनाल, हरियाणा मो.नं.-9466220145

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