किसानी चेतना की चार कविताएं- जयपाल

स्रोत इंटरनेट

जयपाल अपनी कविताओं में हमारे समय के यथार्थ के विभिन्न पक्षों को बहुत विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत करते हैं। सामाजिक-शक्तियों के बीच चल रहे संघर्षों का वर्णन करती ये कविताएं जनता के पक्ष को मजबूत करने के लिए समाज में मौजूद प्रचलित धारणाओं को तोड़ती हैं। जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता कविताओं में सीधे तौर पर मौजूद है। जनता के संघर्ष व आन्दोलन कविताओं का विषय नहीं है, लेकिन विचाराधारात्मक परिप्रेक्ष्य शोषित-वंचित वर्ग का है। – प्रो. सुभाष चन्द्र

किसान आन्दोलन

  दिल्ली बॉर्डर पर किसानों
के रंग ढंग देखकर सरकर हैरान है
सरकार परेशान है बैलगाड़ी में आना चाहिए था इसे तो
यह तो ट्रैक्टर लेकर आया है
टाट-बोरी लेकर आना चाहिए था इसे
यह तो गरम कम्बल लेकर आया है
झौंपड़ी में ठिठुरना चाहिए था इसे तो
इसने तो शाममयाना सजाया है
फटी धोती कुरते साथ अच्छा लगता था
जीन्स की पैंट और जैकेट पहन कर आया है
परना-तौलिया लपेटकर आना था इसे तो
पगड़ी संभाल कर लाया है
शांति के साथ आना था इसे तो
यह तो क्रांति के साथ आया है
यह किसान आया है! या तूफ़ान आया है!!

पूस की रात और नील गाय

 नील गाय का पीछा करतेकरते प्रेमचंद का हल्कू
दिल्ली आ गया है
साथ में पत्नी मुन्नी और जबरा कुत्ता भी है
वह अकेला नहीं आया सारे गााँव को भी ले आया है
सरकार को समझ नहीं आ रहा कि
हल्कू को किसने बता दिया
नील गाय जंगल में नहीं
दिल्ली में रहती है|
 
* हल्कु, मुन्नी, जबरा प्रेमचंद की कहानी पूस की रात के पात्र |

प्रेमचंद और किसान

  अभी तो प्रेमचंद की पूस की रात का हल्कू ही
 कुंडली बॉडर पर आकर बैठा है
तो पूस की रात में सरकार थरथराने लगी है
सरकार परेशान है
अभी तो हल्कू ही आया है
कल कहीं माधव और घीसू भी साथ आ गए
तो फिर क्या होगा !
हल्कू, माधव, घीसू, होरी, सब के सब आ जायेंगे
प्रेमचंद के सारे पात्र यहीं आकर मेला लगाएंगे
धीरे धीरे
प्रेमचंद की सारी कहानियाँ
और सारे के सारे उपन्यास
यहां धरने पर आकर बैठ जाएंगे
फिर क्या होगा !
यह सोचकर
पूस की रात में सरकार काँप रही है
मन ही मन में प्रेमचंद और उसके पात्रों को कोस रहीं है|
 
* हल्कू, माधव, घीसू, होरी प्रेमचंद की कहानियों/ उपन्यासों के पात्र

भगत सिंह और किसान

  किसान इस बार खाली हाथ नहीं आया है
वह अपने साथ भगत सिंह को भी लाया है
भगत सिंह  के विचार लाया है
लेनिन की वह किताब लाया है
जो भगत सिंह  फांसी के वक्त पढ़ रहे थे
जहां से भगत सिंह ने पन्ना मोड़ा था
वहीं से आगे वह पन्ने पढ़ रहा है
किसान खेत की मट्टी लेकर आया है
जैसे भगत सिंह  लाए थे जलियां वाले बाग से
किसान कृषि कानून पढ़ रहे हैं
और अपनी बात आप रख रहे हैं
जैसे भगत सिंह  ने रखे थे अपने विचार
अदालत में किसान पर्चे छाप रहे हैं
किसान पर्चे बाँट रहे हैं
जैसे पर्चे फैंके थे भगत सिंह ने असैम्बली हाल में
गूंगी-बहरी सरकार को सुनाने के लिए
किसान लड़ रहे हैं आजादी की दुसरी लड़ाई
जैसी भविष्यवाणी भगत सिंह  ने की थी
सबको एक दिन लड़नी होगी यह लड़ाई
यह भी कहा था भगत सिंह  ने
चलो भगत सिंह  को फिर से पढ़ें
अपन हिस्से की लड़ाई हम भी लड़ें।

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