ऊँचा बोलने की कम तोलने की ना सुनने की साजिशें बुनने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
खाल मोटी है चाल खोटी है कुकर्म बीनने की रोटी छिनने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
शोर मचाने की झूठ फैलाने की हड़काने की भड़काने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
सपने दिखाने की मुकर जाने की बहलाने की फुसलाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
तूफान आते है उड़ा ले जाते है उखड़ जाने की बाज ना आने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
जो भी आता है मालिक बन जाता है जिंदा बुलाने की खाक में मिलाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
जिनके दम पे पलती उनको ही छलती है प्यार दिखाने की नफ़रत फैलाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
डराने की घमकाने की पूँछ दबाने की पीठ दिखाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
पहले देर फिर अंधेर थकाने की भ्रमाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
कभी धर्म पर कभी कर्म पर लड़वाने की मरवाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
भाई से भाई मर्द से लुगाई लड़वाने की बंटवाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
कभी मक्कारी कभी धिक्कारी टरकाने की उलझाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
चिराग दिखाना पर आग लगाना भड़काने की सुलगाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
गैर से मिलकर अपना बनकर वैर बढ़ाने की लूट मचाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
मीठा बोलना जहर घोलना धौंस वर्दी की अंधेरगर्दी की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
कभी आपातकाल कभी संकटकाल लोग सताने की डर फैलाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
आज़माती है फिर थर्राती है मौका पाने की झुक जाने की दिल्ली तेरी पुरानी आदत है
4.
बिखरे हुए ख्वाबों को, एक साथ संजोना है गिरते भी रहना है चलते भी जाना है
खुशियों सा कोलाहल तो सिर्फ दिखावा है गायेगा सिर्फ वही आता जिसे रोना है
आएंगी टकरायेंगी लहरें वापिस भी जाएंगी सागर से टक्कर है साहिल हो जाना है
मन के मेले में लोग तो आएंगे छोड़ भी जाएंगे मस्ती में रहना है दामन क्या भिगोना है
फूलों ने जब ये कहा जो हँसकर कांटो में तो उगना है बचकर भी जाना है
खुश रहकर जीना है हँसते हुए जाना है कैसी भी हो डगर चाहे चलते ही जाना है
जान लिया जिसने ये 'राज ' है मस्ती का कुछ लेकर नही आये खो कर क्या जाना है
5.
वह रैटलस्नेक जैसा (साँप की प्रजाति ) शातिर जब भी आता है धीरे से आता है फन छुपाता है पूँछ हिलाता है दिखाता है खड़खड़ाता है लुभाता है बुलाता है दाँव लगाता है भोजन बनकर आता है कोई समझ नही पाता है तब दाँत गड़ाता है जहर फैलाता है पंगु बनाता है सब कुछ निगल जाता है और जब कोई भी नही बच जाता है । तब अगले शिकार को निकल जाता है वह रैटलस्नेक जैसा शातिर ।
6.
दिन दहाड़े म्हारी मेहनत पै इन ऊतां नै लूट मचाई रै सब क्याहें का नाश करा इसी चढ़ रही सै करड़ाई रै
मस्टंडे आवैं हमने समझावें घणी बडी बडी बात करै मुफ्त का खावें और गुर्रावे बिगाने धन पै हाथ धरै माणस जात में पाड़ लगा रै न्यारे धर्म और जात करै लेण के न्यारे देण के न्यारे रै यें न्यारे न्यारे बाट धरै सब क्याहें में दोभान्त करैं काग्या नै रोळ मचाई रै सब क्याहें का नाश.............
लोग भकाणां लूट के खाना यो ए ढंग अपणा राख्या लठ बजवाणा फ़ायदा ठाणा सबकै रंग चढ़ा राख्या बाबु दादा जोड़ के धरगे बेचण पै ध्यान लगा राख्या भरे जोहड़ में सूखा काढ्य ईसा पंचायती बैठा राख्या यू छड़ के देश बगा राख्या किसी रापट रोळ मचाई रै सब क्याहें का नाश ...........
दो का ले कें सौ का बेचय इसे ब्यौपारी पाळ लिए ले के देंणा ना करके खाणा इसे ब्यौहारी पाळ लिए आँख के आंधे गांठ के पूरे इसे खाँचे में ढाळ दिए दिन धौळी नै रात बतावैं आड़े बिछा इसे जाळ दिए चाहे सारी दुनियां जा गाळ दिए तार के शर्म बगाई रै सब क्याहें का नाश ...........
मुंड मुंडावे कोई बाळ बढ़ावे ढोंगी एक तै एक आड़े कई पेट घुमावे माळ उड़ावे कई हांडे भूखे पेट आड़े आपणी गावे ना सुणना चाहवे घणे अप टू डेट आड़े स्कूल का चाहे मुँह ना देख्या ठा रहे बत्ती स्लेट आड़े इसे सै धन्ना सेठ आड़े इनने बैंकां की तळी दिखाई रै सब क्याहें का नाश ...........
पढां पढावां अंधकार मिटावां जै इनसे पिंड छुटाणा माणस माणस में कोई फर्क नही चाहिए प्रेम बढ़ाणा बंधी बुहारी आच्छी लागय या सबकी समझ बनाणा भगतसिंह सै पूत खपे जद होया आजादी का आणा राजकुमार सबनै समझाणा ज्योत सै ज्योत जलाई जै सब क्याहें का नाश ...........
7.
म्हारी तो या जंग सै अब मेहनत की लूट बचाणे की लुटेरे ना आतंकवादी म्हारी आदत करके खाणे की
देश धर्म की खातिरअपणी जिंदगी भी बलिदान करी कदे शेर कदे सांप के मुंह में हथेली ऊपर ज्यान धरी सादा बाणा, करके खाणा, खेत और खलिहाण भरी जाडा गर्मी कदे नही देखी दिनऔर रात कुर्बान करी अन्न धन की भंडार भरी ना छोडी कसर कमाणे की लुटेरे ना ............
बाबू खेत में बेटा फ़ौज में दुश्मन गैल्या जंग लड़ रै टैंक चलावा जहाज उड़ावां जड़े अड़ावे ओड़े अड़ रै कमा कमा के झोड़ा हो लिया रोटी के सहंसे पड़ रै दो दो महीने नहाएं हो ज्यां हम पशुआ तै भुंडे सड़ रै लुटेरे पाछे पड़ रै हमने जगह नही जान छुपाणे की लुटेरे ना ............
मेहनत म्हारी चौधर थारी कद लग सहन करी जागी खाद बीज भी घर ते लागय क्यूकर खेती करी जागी ब्याज के ऊपर ब्याज लगै या धरती रहन धरी जागी कदे सूखे में कदे बाढ़ में कद लग फसल हरी जागी कद लग डंड भरी जागी कोर्ट,पुलिस और थाणे की लुटेरे ना ............
बोई सै तो काट भी जाणा हमने किसे का डर नही हम भी सुख तै रहना चाहवे क्यू थारे जैसे घर नही म्हारी खावे हमने गुर्रावे तन्ने कति लागता डर नही घणा आसमान में उड़ता जावे के तेरे कटणे पर नही राजकुमार नै डर नही कदे करी ना बात उल्हाणे की लुटेरे ना ............
8.
क्यूं काम करणियाँ भूखे सोवे,हामने या बता दो रै । क्यूं ठाडे के दो बॉन्डे हो से ,कोई तो समझा दो रै ।
कमा कमा के झोड़ा होग्या, गिनती नहीं खून पसीने की । हामने कद न्या भा मिलेगा,किम्मे ठोड़ ठिकाणे ला दयौ रै ।