जहाँ तक नज़र जाती और जहाँ तक नहीं जाती है इसमें लोक शामिल हैं इसमें लोक और सुर-लोक और तिरलोक शामिल हैं ये मेला है इसमें धरती शामिल, पेड़, पानी, पवन शामिल हैं इसमें हँसी, आँसू, और हमारे गान शामिल हैं और तुम्हें कुछ पता ही नहीं इसमें कौन शामिल है! इसमें पुरखों का दमकता इतिहास शामिल है इसमें लोक-मन का रचा मिथहास शामिल है इसमें धुन हमारी सब्र और आस शामिल है इसमें सबद, सुरति, धुनि और अरदास शामिल है और तुम्हें कुछ पता ही नहीं! इसमें वर्तमान, अतीत संग भविष्य शामिल है ईसाई , हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन और सिक्ख शामिल है बहुत कुछ दिख रहा और कितना अदृश्य शामिल है ये मेला है ये है एक लहर भी, संघर्ष भी पर जशन भी तो है इसमें रोष हमारा, दर्द हमारा, टशन भी तो है जो पूछेगा कभी इतिहास तुमसे, प्रशन भी तो है और तुम्हें कुछ पता ही नहीं इसमें कौन शामिल हैं! नहीं ये भीड़ कोई, ये तो रूहदारों की संगत है ये गतिमान वाक्य का अर्थ है, शब्दों की पंगत है ये शोभा-यात्रा से अलग ही है यात्रा कोई गुरुओं की दीक्षा पर चल रहा है काफ़िला कोई ये मैं को छोड़ हम, हमलोग होता जा रहा कोई इसमें मुद्दतों से सीखे-समझे सबक शामिल हैं इसमें सूफ़ियों फक्करों के चौदह तबक़ शामिल हैं तुम्हें एक बात सुनाता हूँ, बहुत मासूम और मनमोहनी हमें कहने लगी कल एक दिल्ली की बेटी सलोनी तुम जब लौट जाओगे, यहाँ रौनक़ नहीं होगी ट्रैफिक तो बहुत होगी मगर संगत नहीं होगी ये लंगर छक रही और बाँटती पंगत नहीं होगी घरों को दौड़ते लोगों में यह रंगत नहीं होगी फिर हम क्या करेंगे तो हमारी आँखें नम हो गयीं ये कैसा स्नेह नया है ये मेला है घरों को लौटो तुम, राजी खुशी, है ये दुआ मेरी तुम जीतो सच की ये बाजी, है ये दुआ मेरी तुम लौटो तो धरती के लिए नयी तक़दीर होकर अब नये एहसास, ताज़ा सोच और तदबीर होकर अब मोहब्बत, सादगी, अपनत्व की तासीर होकर अब ये इच्छराँ माँ और पुत्तर पूरन के मिलने की बेला है ये मेला है जहाँ तक नज़र जाती है और जहाँ तक नहीं जाती इसमें लोक शामिल हैं इसमें लोक और सुर-लोक और तिरलोक शामिल हैं ये मेला है इसमें धरती शामिल, पेड़, पानी, पवन शामिल हैं इसमें हँसी, आँसू और हमारे गान शामिल हैं और तुम्हें कुछ पता ही नहीं इसमें कौन शामिल है ये मेला है।