त्योहारी कुण्डलियाँ- सत्यवीर नाहडिय़ा

सत्यवीर नाहडिय़ा
1

जाट्टी गेल्यां हो सदा, गुग्गा नौम्मी मेल।
गाम-गाम मेल़े सजैं, दंगल-कुश्ती खेल।
दंगल-कुश्ती खेल, कढ़ाई चढ़ती न्यारी।
गुग्गा ल्यावैं तोड़, झोड़ की हो रै त्यारी।
बणैं गुलगुले खास, महक ज्या म्हारी माट्टी।
खीर-लापसी ढ़ाल, गैल रह गुग्गा जाट्टी।।

2

न्यारी थी वा कोथल़ी, न्यारी उसकी आन।
चढ़ा कढ़ाई तारती, माँ न्यारे पकवान।
माँ न्यारे पकवान, मान बेट्टी का सारा।
गोल़ सुहाल़ी गैल, चकुट्टा सक्करपारा।
बीरा ल्याता बाँध, कोथल़ी माँ की तारी।
हरे हुवैं थे धान, रीत ये कितनी न्यारी।।

3

बास्योड़ा त्योहार सै, जन-मन का बिसवास।
लोक ग्यान का मोरधी, रुत बदलण आभास।
रुत बदलण आभास, खास यो नेम बताया।
कुदरत का यो मान, बड़ां नै सदा निभाया।
गुणे भोत थे लोग, पढ़े थे बेस्सक थोड़ा।
खान-पान कर ध्यान, बणाग्ये न्यूं बास्योड़ा।।

4

देख धुलंडी की घड़ी, छायी न्यारी आज।
भाभी लेरी कोरड़ा, भाज सकै तै भाज।
भाज सकै तै भाज, नहीं तै रेल बणावै।
होल़ी का त्योहार, रंग यो खूब जमावै।
मन-पिचकारी खोल, भूल बाजारू-मंडी।
मन पै गेर गुलाल, मना न्यूं देख धुलंडी।।

5

होल़ी तै इब हो लयी, होग्या बंटाधार।
ढ़ाल-बिडक़लां की दिखे, छोट्टी होग्यी लार।
छोट्टी होग्यी लार, सार लग गायब होग्या।
ना होल़ी के गीत, जणूं यो फाग्गण सोग्या।
ना होल़ी के खेल़, नहीं मस्तां की टोल़ी।
होल़ी-होल़ी हाय, हवा हे होग्यी होल़ी।।

6

बात पुराणी ना रही, बदल गये हालात।
दाल़-चूरमा हे बच्या, बच्यी नहीं सकरात।
बच्यी नहीं सकरात, दान तै ध्यान हटाया।
कौण ‘जगावै’ ईब, बड़ां का मान घटाया।
जुड़ां जड़ां तै फेर, बात वै ना बिसराणी।
लोकलाज की आन, हुवैं थी बात पुराणी।।

7

न्यारी प्यारी लोहड़ी, न्यारी इसकी बात।
लकड़ी-मेवे रेवड़ी, गज्ज़क की सौगात।
गज्ज़क की सौगात, रात नै नाच्चैं-गावैं।
कठ्ठे हों नर-नार, आँच म्हं खील चढ़ावैं।
सुँदरी-मुँदरी गीत, बेटियाँ गावैं सारी।
हो बेट्टी का मान, लोहड़ी हो जब न्यारी।।

8

मात अहोई पूज कै, मांँगै मांँ अरदास।
सुखी रहै औलाद न्यूं, करै बरत यो खास।
करै बरत यो खास, आस नित नयी जगावै।
सबका भरकै पेट, बच्या आखर म्हं खावै।
सुक्के म्हं औलाद, आप आल्ले म्हं  सोई।
मांँ-सा दुज्जा नाय,जाणती मात अहोई।।

9

न्यारी कात्यक की कथा,दिखे बड़ां नै जाण।
रीत पुराणी ना रही, खूग्या कात्यक न्हाण।
खूग्या कात्यक न्हाण,परिकमा सीम चफेरै।
बिरम-मुरत म्हं गीत, गूंँजते रोज सबेरै।
दान-ध्यान का न्हाण,  साधना जप-तप भारी।
गयी टेम कै गैल,न्हाण की महिमा न्यारी।।

10

आये मांँ के नौरते,जाग्यी तन-मन आस।
करां नयी कुछ साधना,आवै जी नै रास।
आवै जी नै रास,भजां मन आल़ी माल़ा।
झूठ-कपट नै त्याग,ग्यान का खोल्लां ताल़ा।
मन-मंदर म्हं फेर,भजन जाँ साच्चे गाये।
भित्तर मांँ-दरबार,साधना के दिन आये।।

11

गयी पुराणी बात रै, नहीं रही वै रीत।
नहीं सुणाई देंवते,सांझी आल़े गीत।
सांझी आल़े गीत, भीत पै सार समाया।
दिखे कनागत पार, त्यार लणिहार बताया।
लोक-कला थी खास, नहीं ढूंढे तै पाणी।
गुंज्या करता गाम, सांझ वै गयी पुराणी।।

12

गुग्गा नौम्मी गुलगुले, कितै चूरमा-खीर।
गुग्गामेड़ी पै पुजै, बाब्बा जाहरवीर।
बाब्बा जाहरवीर, नाग के देव बताये।
हिंदू-मुस्लिम साथ, पूजते हरदम आये।
जिसनै दी सै चोंच, सदा वो देवै चुग्गा।
कह गुरु गोरखनाथ,मनाओ मिलजुल गुग्गा।।
 
13

जाट्टी का इक पेड़ हो, जाट्टी इक त्योहार।
जाट्टी नै जाट्टी पुजै, किस्से कई हजार।
किस्से कई हजार, सार किसन मुरारी।
जिनके रूप अनूप, जाणती दुनिया सारी।
कंस-पूतना मार,पाप की ठायी टाट्टी।
हो सभका कल्याण, कहैं न्यूं दोन्नू जाट्टी।।
 
14

डोरी न्यारी या दिखे,पोंह्ची आल़ा सार।
भाई अर यो भाण का,न्यारा सै त्योहार।
न्यारा सै त्योहार,सलूणी कहो सलूमण।
हरे हुवैं ज्यूं धान,भाण न्यूं लाग्गै झुम्मण।
त्योहार बणे ब्योपार, घणी न्यारी कमजोरी।
राक्खी हो अनमोल, अनूठी हो या डोरी।।

15

आण बखेरै जो दिखे, त्योहारां के बीज।
सामण की सौगात हो, या हरियाली तीज।
या हरियाली तीज, पींग के झोट्टे न्यारे।
चढ़ै कढ़ाई खास, सुहाली-सक्करपारे।
घेवर की महकार, आंवती देख चफेरै।
लड़ैं पतंग के पेच,मेंह-झड़ आण बखेरै।
 

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