मैं एकदम अकेला था मेरे आसपास न कोई मनुष्य था न पशु, न पक्षी न घास ही थी आसपास रेत ही रेत थी दूर तक उन अकेलेपन के दिनों में मैंने जो सपने देखे उन सपनों में सघन हरापन था नदियाँ थीं, झीलें और झरने थे और उनमें से किसी भी सपने में मैं अकेला नहीं था
उन्हीं दिनों मैंने जाना कि सबसे ख़ूबसूरत लोग और सबसे ख़ूबसूरत रंग अकेले आदमी के सपनों में पाए जाते हैं ।
बाज़: तीन कविताएँ
1. बाज़ की आँखें सपने नहीं, शिकार देखती हैं। 2. बाज़ के पंजों में जकड़ा शिकार सोचता है महान बाज़ उसे आसमान की सैर करा रहा है। 3. पंजों में दबे खरगोश को ऊँचे से पटकते हुए बाज़ ने कहा- आज मैं तुझे खाऊँगा नहीं दयालु बाज़ ने उसे सचमुच नहीं खाया उसने सिर्फ़ देखा खरगोश को तड़प कर मरते हुए।
आँखें
मैंने कपड़ों की मरम्मत की धागा बार बार टूटता रहा मैंने रोटियां बनाईं टेढ़ी मेढ़ी बनी, जल-फुंक गईं दूध उबलने के लिए रखा पतीला छूटकर नीचे जा गिरा मुझे लगा मेरे हाथ काठ हो गए मैंने उन्हें ज़ोर से हिलाया, पाया हाथ काठ नहीं हुए थे बल्कि रास्ते को एकटक देखतीं मेरी आँखें पत्थर हो गई थीं।
पाँच छोटी कविताएँ
1. उसकी नज़र मेरी पीठ पर गड़ी मेरी पीठ ने फ़ौरन आँखें उगा लीं। 2. मुझे नदी के उस पार जाना था पहला पाँव रखते ही पुल ढह गया। 3. मैंने आसमान को छूने के लिए हाथ बढ़ाया मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन ग़ायब हो गई। 4. तालाब में पानी की कोई कमी नहीं थी मछलियाँ पता नहीं क्यों मरी पाई गईं। 5. तीज आई और चली भी गई सूखे सावन के गीत कौन गाता।
संताप
कभी घरों में बहुत सारी खूँटियाँ रहती थीं हम उन खूँटियों पर कपड़ों के साथ टाँग देते थे अपने संताप दीवारों से खूँटियाँ ग़ायब हुईं ख़ूबसूरत दिखने लगे दीवारों के चेहरे संताप चुपचाप खूँटियों से उतरकर हमारे तकियों के नीचे आ बसा
हार
एक दिन तुम हारोगे ईश्वर और मैं भी हारूँगा एक दिन ज़रूर बेनक़ाब होगी हम दोनों की षड्यंत्रकारी मित्रता एक दिन ज़रूर समझेंगे लोग कि उनकी दुनिया को किसने नरक बनाया है एक दिन ज़रूर डरना छोड़ देंगे डर के जाल में फँसे लोग एक दिन ज़रूर हम दोनों के अंत का जश्न मनाया जाएगा।
अतीत
हम वर्तमान की प्राचीर पर खड़े थे एक हाथ बढ़ा कर हम अतीत छू सकते थे दूसरा हाथ बढ़ा कर भविष्य हम चाहते तो अतीत के पतझड़ को भविष्य के वसंत में बदल सकते थे पर निकटस्थ अतीत या निकटस्थ भविष्य में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं थी हम सुदूर अतीत के भग्नावशेषों से भविष्य का महल बनाना चाहते थे इस महल को भी सुदूर भविष्य में बनना था हम भविष्य से ख़ौफ़ खाने वाले लोग थे अतीत क्योंकि बीत गया था इसलिए अतीत पर गर्व किया जा सकता था हमने इतिहास को भग्नावशेषों की खोज के काम में लगा दिया था लेकिन हमें इतिहास पर भरोसा नहीं था हम में से हर कोई ख़ुद भी महान अतीत की खोज में जुटा था हम अतीत में गर्व का समतल खोज रहे थे पर वहां शर्म की दलदल फैली हुई थी हम इसी दलदल में धंस कर गौरवमय भविष्य का सपना देख रहे थे और हमारे स्वागत के लिए उत्सुक भविष्य ख़ुद हर पल भूत होता जा रहा था।
डर
घर में जमा होता रहता था टूटा फूटा अनुपयोगी सामान इस सामान के साथ जमा होते रहते थे छोटे-बड़े डर सामान बिक जाता था कबाड़ी के हाथ समय-समय पर पर डर का ख़रीदार नहीं था न कोई राज़दार ही था शहर में सब लोगों के अपने-अपने डर थे और डरों से भरे घर थे लोग टीवी पर डर देखते थे और अपने डर के साथ रहते थे कोई किसी का डर नहीं बाँटता था जो डर बाँट सकते थे या डर का निवारण कर सकते थे वे सब गाँव में छूट गए थे और गाँव हमसे छूट गया था।
बढ़ना
पेड़ स्वभाव से बढ़ता है आदमी अक्ल से बढ़ता पेड़ कभी नहीं सोचता कि बढ़ जाए नदी की तरफ़ या बाज़ार की तरफ़ आदमी सोचता है बढ़ना ही है तो क्यों न बढ़ जाए दरबार की तरफ़।
परीक्षा
तुमने मुझसे प्रेम किया पानी सी दिखी तुम्हें मेरे भीतर की मृगतृष्णा तुम्हें मुझमें कोई बुराई नज़र ही नहीं आई मैंने भी तुमसे प्रेम किया मुझे मृगतृष्णा सा दिखा तुम्हारे भीतर का पानी मुझे सारी बुराइयां तुम्हीं में नज़र आईं
तुमने प्रेम, प्रेम की तरह किया मैंने परीक्षा की तरह।