वर्ष 2020 के लिए नोबेल पुरस्कार हेतु घोषित अमेरिकी कवियत्री लुईस ग्लूक की कविता- अवेर्नो, (अनुवाद-विनोद दास)

लुईस ग्लूक
 तुम मर जाते हो
जब मर जाता है तुम्हारा ज़ज़्बा
तुम कर नहीं पाते हो इसका कोई उम्दा इस्तेमाल
तुम करते रहते हो कुछ न कुछ ऐसा
जिसके लिए नहीं है और कोई विकल्प
जब यह मैंने अपने बच्चों से कहा
उन्होंने नहीं दिया ध्यान
बूढ़े खूसट हैं-उन्होंने सोचा
ऐसा वे करते रहते हैं हमेशा
करते रहते हैं ऐसी चीज़ों पर बात
जिनको कोई देख नहीं सकता
जिनको छिपाने के लिए
ग़ायब हो रही हैं उनकी दिमाग़ की कोशिकाएं
पुरनियों को सुनते हुए
वे मारते हैं एक दूसरे को आँख
उनके ज़ज़्बे को लेकर करते हैं बात
चूँकि अब कुर्सी के लिए याद नहीं आता उन्हें कोई लफ्ज़
अकेला होना भयावह है
मेरा मतलब अकेले रहने से नहीं है
अकेले का मतलब है जहाँ कोई तुमको नहीं सुनता
मैं कहना चाहता हूँ
मुझे कुर्सी के लिए लफ्ज़ याद है -लेकिन अब मुझे
इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है
यह सोचते हुए मैं जग गया
तुमको तैयार होना है
जल्द ही तुम्हारा ज़ज़्बा हार मान लेगा
फिर दुनिया की सभी कुर्सियां
तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाएंगी

नोट- इटली में नेपल्स से दस किलोमीटर दूर एक झील जिसे पुराने रोमवासी भूमिगत द्वार समझते थे.

फेसबुक से साभार

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