मुझे याद आ रहा है कि एक नोवल है ‘कन्थापुरम’ मिस्टर राव ने लिखा है, इंग्लिश में एक ही नोवल है लेकिन उसमें जो पृष्ठभूमि है वो कर्नाटका की है, एक गाँव की है कहानी, कन्थापुरम एक गाँव है। उसमें आमतौर पर वहाँ के लोग एक हेरिटेज करते हैं, वो एक स्लोगन लगाते हैं कि “With the sacrifice of Jatin Das, with the fire and courage of Bhagat Singh and under the leadership of Mahatma Gandhi, we will bring freedom।” तो कॉमन मैन उसको किस तरह साँझा कर रहा था। आज हम वो सांझी धरातल और मुझे क्योंकि मैं मनमथ क्योंकि वो काकोरी केस में उनको उम्र कैद हुई थी वहाँ पे रामप्रसाद बिस्मिल अश्फाक के साथ ही थे। तो वहाँ पे उन्होंने बड़े स्वाभाविक रूप से कहा कि हम सब इंकलाबी बनारस में महात्मा गाँधी जी की एक कॉल पे आये थे तो मेरे मन में बड़ी उत्सुकता हुई कि वो कौन सी कॉल थी जिसपे वो सारे इंकलाबी कौमी लहर की उस मूवमेंट में आये? और मैंने वो खोजी। वो गांधी जी का एक लेक्चर है। वो कहते हैं कि मेरे साथ मालवीय जी बैठे हैं, मैं जब हिंदुस्तान आया था तो मुझे लगता था कि मैं इनके क़दमों बैठ के सेवा कर दूँ तो मेरा काम पूरा हो जाए लेकिन, आज हम दो अलहदा विचारों में टकराह है हमारा। क्योंकि ये कहते हैं कि कोई हिन्दू विश्वविद्यालय बनाया था, ये कहते हैं कि नौजवान पढ़ें, नौकरी करें, अपने परिवारों को मदद करें लेकिन मैं कहता हूँ कि बहुत बड़ा परिवार भारत है और नौजवानों को थोड़ी देर के लिए जो अपने परिवारों के लिए जो काम है वो बंद करके देश के परिवार के लिए आना चाहिए। देखिए उस आवाज में कितनी ताकत थी कि चंदशेखर आज़ाद 14 साल के थे वो भी निकले, उसी सत्याग्रह में उन्होंने हिस्सा लिया, और जब उन्हें पकड़ा गया तो उन्हें 14 बेंत कि सजा हुई। अब बेंत खाना बहुत भयानक था, नॉर्मली ये गिना जाता था कि जो आदमी अपने आप को बड़ा बोल्ड समझता है, वो भी गिर जाता है। लेकिन हमारे चंद्रशेखर आज़ाद, जंगल में भीलों के साथ पलने वाले, उन्होंने 14 बेंत खाए और उसमें बड़ी मजेदार बात ये थी कि बाद में जेलर 4 आने देता था कि जाओ जाकर गर्म दूध पी लेना, तो वो 4 आने जेलर के मुहं पर फेंककर अपने पाँव पर आ गये और उस शाम को बनारस में जो सभा हुई उसमें पहली फोटो हमें चंद्रशेखर आजाद जी की मिलती है। 14 साल का लड़का खड़ा है और उसके खड़े होने के साथ पूरा बनारस खड़ा हो गया है। ये उसमें एक, यानी क्या? कि आप अपने निज को छोड़ कर अपने समाज के लिए कम करें, ये एक बहुत बड़ी उक्ति है जो आज भी हमें देखने की जरूरत है।
महाभारत की दो चीजें आपसे जरुर शेयर करूं जो मैंने सीखी हैं कि द्रोणाचार्य को कैसे मारा गया? आधा सच बोल के। ( कि सबसे बड़ा जो गुरु है उसको आधे सच से मारो)। और नौजवान अभिमन्यु कैसे मरा? क्यूंकि उसे आधा आधा ज्ञान था। तो आज जिस चीज से हम टकरा रहे हैं वो आधे सच और आधे ज्ञान से टकरा रहे हैं और भगत सिंह पैरलल हैं।
मैं अपना बचपन, क्योंकि कई सारे लोगों ने बचपन में मुझे प्रभावित किया, मेरे मदर का तो एक बहुत सूक्ष्म तौर पर मेरे मन में डाला हुआ प्रश्न कि लोग मुझे पूछते हैं घर में कि घर में भगत सिंह को जानने वाला कोई है? तो बड़ी सूक्ष्मता से उन्होंने मुझे बताया कि रिश्तेदारी जो है वो जानने से बनती है। तो मैंने वो सब जानना चाहा जिसमें भगत सिंह जिसके साथ रहे और उसमें हमारे कुछ बुजुर्ग ऐसे भी थे, एक हमारे सज्जन सिंह मिरगनपुरी सोशलिस्ट थे लेकिन उनके बारे में ये था कि उनकी सच्चाई पे अंग्रेज मजिस्ट्रेट भी इतना एतबार करते हैं कि अगर सज्जन सिंह कह रहा है तो फिर हमें उसकी वेरिफिकेशन की जरूरत नहीं है। वो बाद में पार्टी में आए। तो उनसे क्या सीखा कि मेरा बचपन इस तरह का था कि गांधीवादी जैसे होते हैं, कि खद्दर पहनना है ताकि खुद उसे धो सकें क्योंकि माता जी तो बाहर पोलिटिकल काम में रहते थे तो मुझे अपनी परजाई पर भी डिपेंडेंट ना होना पड़े और सादगी में रहना है लेकिन पढ़ना है। तो वो एक प्रभाव का पीरियड था जब गांधी जी ट्रांसलेट होते थे यूथ के लिए एक सादगी में और उसके बाद एक पीरियड जिसकी बात हम कर रहे हैं, कि एक भरम पैदा किया जाता है क्यूंकि हम इस धरती पे हैं, तो मुझे लग रहा था कि मैं महाभारत की दो चीजें आपसे जरुर शेयर करूं जो मैंने सीखी हैं कि द्रोणाचार्य को कैसे मारा गया? आधा सच बोल के। ( कि सबसे बड़ा जो गुरु है उसको आधे सच से मारो)। और नौजवान अभिमन्यु कैसे मरा? क्यूंकि उसे आधा आधा ज्ञान था। तो आज जिस चीज से हम टकरा रहे हैं वो आधे सच और आधे ज्ञान से टकरा रहे हैं और भगत सिंह पैरलल हैं। भगत सिंह बीच में वो भी अपना स्कूल छोड़ देते हैं, और देखो गांधी जी कि कॉल का असर कि भगत सिंह भी स्कूल छोड़ देते हैं और वो अभी दसवीं नहीं की थी उन्होंने। उसके बाद नौजवानों को कहते कि देखो ये काम तो हो नहीं पाया क्योंकि मैंने कहा था कि स्वराज नौ महीने में आ जायेगा लेकिन कुछ प्रोब्लम्स हैं हमारे समाज की अगर वो ठीक नहीं होती तो हमारे स्वराज का कोई मतलब नहीं होगा और वो क्या है? यहाँ पर धर्मों के नाम पे हमारे समाज में टकराव पैदा हो गया है। यहाँ पर हम एक तिहाई लोगों को इन्सानी हक नहीं देते। उन्हें अछूत कहके दूर रखते हैं। तीसरा, नौजवान लड़के लड़कियां कहाँ हैं? ये उस सारी मूवमेंट का निरिक्षण था जो बाद में भगत सिंह ने बाद में नौजवान भारत सभा जब बनायी क्यूंकि ये बड़ा मजेदार है कि गांधी जी मिलाने के लिए भगत सिंह को उनके पिताजी बेलगाँव कांग्रेस लेके गये थे क्यूंकि जब 1923-24 कि कांग्रेस हुई बेलगांव में भगत सिंह घर से दौड़ चुके थे। उनके पिताजी को लगा ये 16 साल का लड़का घर से भाग रहा है इसको ये तो समझाएं कि लीडर बनना है तो कैसे बना जाता है तो उनको सुभाष से मिलाया कि देखो ये नौजवान है, ये भी कॉलेज से निकाल दिया गया था, लेकिन इनके पिता ने इसका एक टेस्ट लिया, कि तुम जाओ मैं इंग्लैंड तुम्हें भेज देता हूँ तुम ICS बन के दिखाओ तो मुझे एतबार आएगा कि तुममें कुछ क्षमता है नहीं तो घर पर पढ़ने से तो नहीं बनेंगे। और वो ICS बनें और बाद में उन्होंने ICS नहीं ज्वाइन किया, क्यों? उन्होंने अपने पिता को लिखा अपने बड़े भाई के रास्ते से कि मेरे पिता जी ने मुझे एक टेस्ट दिया था जो मैंने पास कर लिया है, मेरा चौथे नम्बर पे ICS कि लिस्ट में नाम है लेकिन पिता जी ने ये भी कहा था कि गुलामी पे साइन नहीं करने। इसीलिए मैं नौकरी साइन नहीं कर रहा क्यूंकि वो गुलामी होगी। तो ये असर और उसके बाद फिर कौमी कॉलेजिज का बनना। क्यूंकि उन्होंने कहा कि आप वापिस कॉलेज जाइए भगत सिंह कहते कि वो तो छोड़ आए। अब कोई नया तरीका बताइए पढ़ने का तो उस वक्त लाला लाजपत राय जी ने नेशनल कॉलेज बनाया और भगत सिंह का स्पेशल टैस्ट हुआ उसमें पढ़ने के लिए। तो वो एक धारा है। भगत सिंह का जो क्रिटिक है, गांधी जी को नजदीक से देखा, उनको मिलाया गया, शायद आमने सामने तो नहीं लेकिन, उनको दिखाया गया कि देखो ये महात्मा गांधी हैं जो इंग्लैंड पढ़ कर आये थे तो आज लीडर हैं। तो पहले पढ़ो और उसके बाद घर से भागना लीडरी करने। तो ये एक धरातल बन रहा है लेकिन उसके बाद भगत सिंह जब नेशनल कॉलेज में आये तो उनका पढ़ने का दौर शुरू होता है.
इन दिनों मुझे एक बड़ी मजेदार रिसर्च मिली शायद आप सबको भी ये नई जानकारी हो कि लाहौर ने 4 नोबल प्राइज विनर पैदा किए हैं कलकत्ते ने 6 किए हैं। लाहौर और कलकत्ते में साँझ क्या थी कि वहां पर जनता के लिए साइंस बंगाली में पढाई जाती थी। सत्यन बोस बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं, उनकी सारी राइटिंग बंगाली में हैं। जगदीश चन्द्र बोस ने कहा कि मेरे यहाँ जो रिसर्च होगी उसका कोई पेटंट नहीं होगा और वो आप लोगों को बंगाली में समझाएंगे कि उनके लिए क्या बना उसमें से, जो आपने निकाला है। तो लोगों के साथ उसका जुड़ना और यही लाहौर में हुआ। भगत सिंह को जो धराताल मिला वैज्ञानिक सोच का, वो वहाँ के रुचिराम साहनी के पांच सौ पंजाबी के लेक्चर्स हैं। आम आदमी की जिन्दगी की साइंस वहाँ पढाई जाती थी। ओ मुझे लगा कि ये स्वाभाविक नहीं है कि जस्ट एकदम बन गए। क्योंकि एक धरातल मिला उनको, एक सोचने का तरीका मिला। साइंस का मतलब एक सोचने का तरीका है कि आप एक सवाल करते हैं सवाल का भी फिर एक जवाब खोजते हैं। यहीं पर जो कोमन ग्राउंड आगे है तो अगर शोर्टली मैं उसे कहूँ, जो मेरा सारे विचार करने के बाद बना कि भगत सिंह गांधी के पूरक हैं, कोम्प्लेम्न्ट्री है एक, कैसे? क्योंकि वहाँ पर एक मजेदार बात ये है कि गांधी जी की रेवोल्युस्नरी के साथ बेलगांव कांग्रेस के बाद एक डिबेट है और वो डिबेट कंक्ल्युड क्या करती है? जो मैंने पहले कहा कि पहले ये तीन प्रोब्लम्स का हल निकालो फिर मेरे से स्वराज कि बात करना। और वो लेके भगत सिंह नौजवान भारत सभा बनाते हैं। नौजवान भारत सभा के यही तीन पॉइंट्स थे कि नौजवानों के दिमाग से जात पात का प्रश्न है और ये जो धर्म का प्रश्न है इसको हटाया जाए, तब हम आगे बढ़ सकते हैं। वो जो बात गाँधी जी ने डिफाइन की उसको भगत सिंह ने आगे बढ़ाया। इस तरह यह एक पूरकता है। गांधी जी से जब पूछा गया कि आप जब सत्याग्रही थे तो आपने कुछ प्रिंसिपल्स दिए थे, तो वो कहते कि मैं अब 1925 में पोलिटिशियन हो गया हूँ। सत्याग्रही का मतलब था कि मैं एक सोशल वर्क के तौर पर एक ऐसा समाज खड़ा कर दूंगा जो ब्रिटिश राज को खत्म कर के एक नया समाज बनाएगा। लेकिन अब मुझे समझ लगी कि आप जब तक आप पोलिटिकल पार्टिसिपेशन नहीं करते तो यह मुश्किल है। तो उस वक्त भगत सिंह ने कहा कि जो उन्होंने उसूल बनाए हैं वो तो ठीक हैं; अगर आप भगत सिंह को पढ़ें कि भगत सिंह खुद चलके सेंट्रल असेंबली में गए, वो ड्रामा किया ताकि उनको सुना जाए, कहीं ये ना हो कि छोड़ दें तो इसीलिए उन्होंने वो धुंए वाला बम्ब फेंका वहाँ पर और बाद में जो गांधी जी ने कहा था कि मेरा सत्याग्रही अगर किसी कानून को नहीं मानता उसको तोड़ेगा और फिर कहेगा कि मुझे सजा दो। तो भगत सिंह उसपे क्रिटिक करते हैं कि गांधी जी ने पूरा नहीं पढ़ाया उनको। वो वहाँ पर अपनी पोलिटिकल बात नहीं करते, कानून तोड़ते हैं और चुपके से सजा भुगत लेते हैं, उसको पोलिटिकल प्लेटफार्म के तौर पर प्रयोग किया जाना चाहिए, जो भगत सिंह और उसके साथी बी के दत्त ने बड़ी खूबसूरती से किया। दूसरा ये है कि अगर आपके पास कोई और पावर नहीं है, तो आत्मिक पावर यूज़ करिए। जैसे ही वो मुकदमा खत्म हुआ उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। वो जिसका जिक्र मैंने किया कि कर्नाटका के गाँव तक वो स्पिरिट पहुंची है। वो जैतून दास को याद कर रहे हैं जिन्होंने उस भूख हड़ताल के बाद शहादत दी थी और उसमें पूरा ट्रांसफॉर्मेशन किया था।
26 जनवरी हमारा रेहदा था कि भारत में सम्पूर्ण आज़ादी आएगी और उस सम्पूर्ण आज़ादी की ओथ गाँधी जी ने ली। उसका पहला पैराग्राफ जो है मैं आपको सुना देता हूँ: “जो सरकार लोगों को विद्या नहीं दे सकती, जो सरकार लोगों कि सेहत का प्रबंध नहीं कर सकती, जो नौजवानों को नौकरी नहीं दे सकती, जो सरकार लोगों को सर ढंकने के लिए मकान नहीं दे सकती उस सरकार को हटाने क ही नहीं ABOLISH करने का हक़ है।
गांधी जी बड़ा आवाज कर रहे हैं कि नौजवान किधर को जा रहा है और उसी के लिए जो पोस्टपोंमेंट थी, कि एक सम्पूर्ण आज़ादी का मता जो है वो कलकत्ता कांग्रेस में लहराया गया था तो गांधी जी ने एक साल का टाइम लिया कि चलो एक साल ब्रिटिश को देते हैं अगर वो डोमिनियन स्टेटस भी दे दें तो फिर सम्पूर्ण आज़ादी की बाद में बात कर लेंगे। वो ‘बाद’ जो है लाहौर कांग्रेस में हुई, मतलब दिसम्बर 1929 में और वहाँ पर ये रेजोल्यूशन पास हुआ कि सम्पूर्ण आज़ादी कि मांग होगी और आपको ये याद होना चाहिए कि 26 जनवरी को संविधान क्यों लांच किया गया? क्योंकि 26 जनवरी हमारा रेहदा था कि भारत में सम्पूर्ण आज़ादी आएगी और उस सम्पूर्ण आज़ादी की ओथ गाँधी जी ने ली। उसका पहला पैराग्राफ जो है मैं आपको सुना देता हूँ: “जो सरकार लोगों को विद्या नहीं दे सकती, जो सरकार लोगों कि सेहत का प्रबंध नहीं कर सकती, जो नौजवानों को नौकरी नहीं दे सकती, जो सरकार लोगों को सर ढंकने के लिए मकान नहीं दे सकती उस सरकार को हटाने क ही नहीं ABOLISH करने का हक़ है। ABOLISH शब्द गाँधी जी ने लिखा, क्योंकि वो जो पूरा मोमेंटम बना और उस मोमेंटम को भगत सिंह दूसरी तरह डिफाइन करते हैं। मुझे लगता है कि उसमें एक शब्द बड़ा इम्पोर्टेंट है, वो कहते हैं कि; “हम कौमी लहर के अगुआ के तौर पर हैं उसके लिए रास्ता बना रहे हैं।” यह मुझे बड़ा मजेदार लगा कि कराची कांग्रेस में ही दो रेजोल्यूशन पास हुए क्योंकि भगत सिंह क्रिटिसाइज कर रहे हैं कि आपने सम्पूर्ण आज़ादी तो कह दी लेकिन सम्पूर्ण आज़ादी का जो भाव है, लोगों का क्या मिलेगा उसमें? आप ये कह के कि जी वहाँ क्रप्शन नहीं होगी, शराबबंदी होगी, ये बहुत ऊपरी बातें हैं। उनके जीवन में बराबरी लाने वाली कोई चीज या उन्हें हक मिलेगा या नहीं मिलेगा? यह जो फन्डामेंटल राइट्स का जो रेजोल्यूशन है, कराची कांग्रेस में पेश किया गया और यह हमनें आयरलैंड से सीखा और जवाहर लाल नेहरु जी जोकि प्रेसिडेंट थे, उन्होंने उसको पेश किया। दूसरी जो बहुत महत्वपूर्ण बात है, तिरंगा झंडा तीन वैल्यूज के साथ वहीं कराची कांग्रेस में अडॉप्ट किया गया। उन्होंने कहा कि ये तीन रंग, तीन सामाजिक स्तम्भों के रंग हैं जिनपर समाज आगे बनता है और वो हैं Equality, Liberty and Fraternity। जो इसका प्रीएम्बल है, मैं समझता हूँ कि वो इसको ट्रांसलेट करता है। उसके साथ सोशल जस्टिस वाली बात वो आ गयी। इसीलिए उस आज़ादी कि लहर का वो हिस्सा जिसने हमें यह मूल आधार दिया जिसे आज हम Spirit of Constitution कहते हैं, मतलब वो रूह है उसकी। उस विधेयक में से यह निकला।
भगत सिंह के बारे में एक बात और जिसे हमें ज्यादा जानना चाहिए भगत सिंह और दत्त ने अपनी जो स्टेटमेंट दी असेम्बली में उसमें उन्होंने अपने आप को बड़ा डिफाइन किया कि “हम बड़ी नम्रता से आपको यह बताना चाहते हैं कि हम इतिहास के बहुत गंभीर विद्यार्थी हैं, और हमने अपने लोगों कि हालत को भी बड़ी गंभीरता से देखा है और उनकी आशाओं को लेकर हम चल रहे हैं।” तो यह कोमन ग्राउंड है, यानि कि ये तीनों शब्द भगत सिंह, महात्मा गांधी और अम्बेडकर साहब। अम्बेडकर साहब के बारे आपको मालूम है कि उन्होंने डबल D.Sc. किया। वो कानून के D.Sc. थे, उनसे उनकी तसल्ली नहीं हुई तो उन्होंने FINANCE में D.Sc. किया। क्योंकि जो इम्पियरिलिज्म जो है वो फाइनेंस में चलती है। और यहाँ पर हमें इसमें लगता है कि अम्बेडकर साहब का जो डीप कंसर्न था, क्योंकि इतना पढ़ने के बाद भी उनको इस समाज ने वकालत नहीं करने दी। उनको लगा कि मैं अगर इतना पढ़ने के बाद भी अगर लिबरेट नहीं हो पाया तो मुझे कुछ अपने लोगों के लिए करना चाहिए। उसके बाद उन्होंने यह निश्चय किया कि मेरे जो लोग हैं उनका हक सुनिश्चित होना चाहिए। हमारे नए नए जो अम्बेडर को पढ़ने वाले हैं वो कई दफा यह कहते पाए जाते हैं कि वो एक सांडर्स के खिलाफ था एक हक में था लेकिन, कहीं पर भी उन्होंने साइमन कमिशन के हक में बात नहीं की। उन्होंने यह कहा कि अगर कोई बात होने वाली है तो मेरे लोगों का जो हक है उसको मैं सुरक्षित करूं। उसमें जो सबसे खुबसुरत बात जो मुझे लगी, मैंने दोबारा पुना पैक्ट कि पूरी कोर्रेस्पोंडेस जो गांधी जी की चल रही है वो पढ़ी तो मुझे लगा कि गांधी जी तो बड़ा महत्वपूर्ण पॉइंट उठा रहे हैं। क्योंकि जो गोल मेज कोंफ्रेंस थी उसपे ब्रिटीशर्स ने यह कह दिया कि हम दलितों को आरक्षण दे देंगे। गांधी जी कहते कि मुझे यह चिंता है कि अगर अंग्रेजों ने यह आरक्षण दिया, तो ये जो हमारा समाज है यह तो इन्हें जिन्दा नहीं रहने देगा। तो इसीलिए उसका सिर्फ एक ही हल है कि यह जो आरक्षण है वो हम इस समाज से दिलवाएं। मालवीय जी से उनकी टकराहट हुई क्योंकि मालवीय जी के साथ मिलकर भूख हड़ताल किया है उन्होंने। मालवीय जी जब भी उनसे मिलने आते तो गांधी जी कहते कि भाई अंग्रेज यह आरक्षण क्यों दे, आप समाज मिलकर क्यों नहीं देते? तो वह उन्होंने करवाया। पूना पैक्ट के बारे में अक्सर गांधी वेर्सेज अम्बेडकर कहा जाता है परन्तु गाँधी ने इसमें एक बहुत बड़ा रोल अदा किया जिसे बाद में अम्बेडकर जी ने खुद इस चीज को माना। उसके बाद एक बड़ा मूवमेंट चला, दलितों को मंदिरों में जाने दिया गया, पानी की लड़ाई उसे पहले आंबेडकर साहब लड़ चुके थे, क्योंकि मंदिरों से ज्यादा तो पानी की सांझ है, कि कहीं अगर कोमन वाटर है तो उसमें हमें मिले। तो वो सारी एक लहर चली।
गांधी जी कहते कि मुझे यह चिंता है कि अगर अंग्रेजों ने यह आरक्षण दिया, तो ये जो हमारा समाज है यह तो इन्हें जिन्दा नहीं रहने देगा। तो इसीलिए उसका सिर्फ एक ही हल है कि यह जो आरक्षण है वो हम इस समाज से दिलवाएं।
इसी में एक मजेदार बात है जो आज के लिए भी है, गाँधी और मुंजे के जो लैटर हैं वो काफी पठनीय हैं; गांधी जी मुंजे को लिखते हैं कि आप बहुत शैतान लोग हैं, अपने मन की बात आप मेरे नाम पर करते हैं। क्योंकि मुंजे, सावरकर आज कि पूरी मानसिक परिस्थिति में है। वो कहते है कि आप कहते हैं कि जो अछूत है वो तो हिन्दू समाज का नहीं छुटने वाला रंग है, इसको हटाया नहीं जा सकता, अगर आपका समाज ये मानता है तो उस समाज से मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं उससे छुट्टी लेता हूँ। ये गांधी जी के मुंजे को लेटर्स हैं। लगातार इन समस्याओं पर और किसी ने बड़ा ठीक कहा है कि गांधी जी अगर वर्ण व्यवस्था से सीधा टकराते तो उनको भी कोई और न मिलता लेकिन उन्होंने उसकी सबसे कमजोर कड़ी जो है वो ली और उससे उन्होंने टकराव किया। तो तीसरी बात जो है कि, मैंने आंबेडकर साहब को भी काफी पढ़ने की कोशिश की, तो मुझे एक चीज लगी कि वो सिर्फ इतने पर ही नहीं हैं, और ये जो बाँट वाली बाटी है क्योंकि जलियांवाला बाग़ का ये सौ साला मनाया जा रहा है, तो मुझे एक उक्ति मिली जो एक अंग्रेज इतिहासकार G.W. FORREST की है, वो 1904 में लिख रहे हैं (अभी प्रसून लतांत जी रहे थे कि हमने 1857 को उसी तरह ग्रहण किया है जैसा हमें लपेट कर दे दिया गया है, असल में वो 1857 नहीं है), G.W. FORREST जिसने असली दस्तावेज देखे क्योंकि वो उस वक्त इलाहबाद में था, उसके बाद वह कहता है कि हम सब इतिहासकार और प्रशासनिक लोग 1857 से एक सबक सीखते हैं कि अगर भारत में, आपको यह गलतफहमी है कि भारत बहुत बिखरा हुआ है, इसमें बहुत जातियां हैं या धर्म हैं तो ये कभी हमें चैलेंज नहीं करेगा तो यह समझ लीजिए कि यदि ब्राह्मण और शुद्र इकट्ठे हो गये और हिन्दू और मुसलमान इकट्ठे हो गये तो आपका यहाँ रहना नामुमकिन है। और यही कारण है कि 1905 में कर्जन ने बंगाल को बांटा। ये भी एक बात समझने वाली है कि 1904 में ये कोंक्ल्युजन ड्रा किया जाता है, (हिस्ट्री ऑफ़ इंडियन म्युटिनी- जी. डब्ल्यू. फारेस्ट)। 1905 में ये पहला तजुर्बा किया जाता है कि बंगाल को हिन्दू और मुस्लिम अलग अलग एरिया में बांटा जाए और वो रिवर्स कब होता है जब 1909 में जो सेपरेट एलेक्ट्रोल रिफार्म दे दिए जाते हैं। उसमें बड़ी एक मजेदार बात है कि उस रिफार्म पे हमारे लायलपुर का एक DC लिखता है, वो कहता है, हम आगे से बहुत सयाने हो गये हैं, पहले हम हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ाते थे अब हमने यह तरीका खोज लिया है कि अब हम हिन्दु हिन्दुओं से लड़ेंगे और मुसलमान मुसलामानों से, क्योंकि जब वो अपने अपने चुनाव क्षेत्रों में लड़ेंगे तो दो ग्रुप बनेंगे। और यहाँ पर मैं समझता हूँ कि गाँधी जी का पहला वो पीरियड है कि 1916 में लखनऊ पैक्ट जो है वो तिलक, अनी बेसंत और मुस्लिम लीग में होता है जिसमें हिन्दू मुस्लिम एकता कि बात होती है वो हिन्दू मुस्लिम एकता जो आपको जलियांवाले बाग में मिलेगी और जलियांवाला बाग़ में राम नवमी एक कोमन त्यौहार के तौर पर मनाई जाती है। उस राम नवमी का जो जुलुस है उसको लीड करते हैं डॉ बशीर और उनको बाद में इसलिए फांसी की सजा दे दी जाती है कि उन्होंने वो लीड किया था वहाँ पर कोई हिन्दू मुस्लिम पानी नहीं है, और उसके पहले एक बहुत मजेदार बात हुई, एक कोमन बहस हुई (लोगों में महंगाई को लेकर मुश्किलें थी) कि लोगों कि भुख को पूरा करने के लिए क्या करें? जो प्रो ब्रिटिशर्स ग्रुप था उन्होंने कहा कि DC के पास चलते हैं, उसके पास स्पेशल पावर है वो फेयर प्राइस दुकानें खुलवा देगा। दुसरे कहते ये हमारी समस्या है ये उसकी समस्या नहीं है। इसलिए वहाँ लंगर लगना शुरू हुआ और उस लंगर ने इतनी एकता बढ़ा दी कि धर्म और जात सबसे मुक्ति हो गयी थी। और इसीलिए 10 अप्रैल को पहली दफा लाहौर में भी और अमृतसर में भी गोली चलाई गयी और 20-20 लोग मारे गए। क्योंकि वो एकता के खिलाफ लड़ाई हो रही थी। यह पूरा किस्सा देखने वाला है। इसको गांधी जी हिन्दू मुस्लिम एकता का सबसे बड़ी सम्भावना के रूप में देख रहे हैं। इसलिए जो पूरी लहर, और इसमें यदि हम इसकी पूरकता को देखेंगे कि अगर भगत सिंह कर रहे हैं तो इसको वो एक लॉजिकल सिरे तक ले जा रहे हैं।
G.W. FORREST जिसने असली दस्तावेज देखे क्योंकि वो उस वक्त इलाहबाद में था, उसके बाद वह कहता है कि हम सब इतिहासकार और प्रशासनिक लोग 1857 से एक सबक सीखते हैं कि अगर भारत में, आपको यह गलतफहमी है कि भारत बहुत बिखरा हुआ है, इसमें बहुत जातियां हैं या धर्म हैं तो ये कभी हमें चैलेंज नहीं करेगा तो यह समझ लीजिए कि यदि ब्राह्मण और शुद्र इकट्ठे हो गये और हिन्दू और मुसलमान इकट्ठे हो गये तो आपका यहाँ रहना नामुमकिन है।
अम्बेडकर साहब जो हैं, आखिर में जो मैसेज उन्होंने दिया वो तीन शब्द का है; EDUCATE ORGANISE AND AGITATE। कि पहले पढ़ो-समझो, फिर अपने आप को संगठित करो और फिर आप अपने हक के लिए लड़ाई करो। और जो नॉन वायलेंस का और भगत सिंह का है, भगत सिंह कहते हैं कि MAAS MOVEMENT HAVE TO BE NON VIOLENT, लेकिन जब वो रुकावट आएगी, यानी जिसके खिलाफ आपका संघर्ष है वो इतना करुर है कि वो आपको उकसाएगा ही। उसी से मुझे लगा कि दिल्ली के दंगों में भी और उससे पहले हरियाणा के दंगों में भी जिसे JAAT AGITATION कहते हैं, कि 36 घंटे के लिए आप UNPROTECTED हैं, यहाँ भी यही हुआ था, हमने उसकी रिपोर्ट बनाई थी, कि 36 घंटे के लिए कोई स्टेट EXSIST नहीं करती तो फिर कार्नेज होता है फिर हिंसा होती है, दिल्ली में भी यही हुआ। इसके लिए मुझे लगा कि 36 घंटे क्लोगों को अपने आप को प्रोटेक्ट करने के लिए तैयार होना होगा। और ये दिल्ली में हुआ। कुछ मोहल्लों में आपस में हिन्दू सिख मुस्लिम मिलकर वहाँ पर उन्होंने वो दंगे नहीं होने दिए। तो इसलिए वो जो पूरा आज का संदर्भ है और मुझे लगा कि संविधान में जो बाबा साहेब अम्बेडकर कि लास्ट स्पीच है वो जरुर हमें पढ़नी चाहिए। क्योंकि जो 25 नवम्बर को उन्होंने संविधान सभा में जो स्पीच दी उसमें उन्होंने कहा कि “लोग कहते हैं कि अच्छा संविधान है कोई कहता है कि खराब है तो मैं ये बता दूँ कि जो हमारी साझी समझदारी बन सकी और उसमें कांग्रेस ने ये मदद की जो बड़े अनुशासित लोग थे जिन्होंने इसे पूर्ण करने में मदद दी लेकिन कल को जो राज करेंगे अगर खराब हुए तो अच्छे संविधान को भी खराब बना देंगे और अगर अच्छे हुए तो खराब संविधान में से भी अच्छा निकल सकता है”। वो कहते कि “मुझे फ़िक्र इसका नहीं है, मुझे फ़िक्र ये है कि भारत एक दफा नहीं कई दफा अपनी आज़ादी खो चुका है आज जो हमें मिला है ये कैसे खोएंगे, कि हमारे अपने ही लोग इसके खिलाफ जाएंगे।” और इसी पर भगत सिंह ने भी चेतावनी दी थी कि जब सामाजिक तरक्की रुक जाएगी तो पिशाचिनी ताकतें भारी हो जाती हैं और वो जब भारी होती हैं, उससे बचने के लिए एक इंकलाबी जज्बे कि जरूरत होती है.
आज मुझे एक बड़ी खुबसुरत बात लगी कि फ्रांस में एक डिबेट हुई कि फ्रेंच क्रांति में जो इंकलाबी संवेदना या पैशन पैदा किया था या एक चेतना पैदा कि थी उसको लेकर उन्होंने कहा कि चलो दुनिया में देखते हैं कि कहीं और भी ये चेतना, इंकलाबी पैशन (यह इन्कलाब नहीं है, यह इंकलाबी पैशन है, जिसमें आप लगातार काम करते हैं) तो देख कर वो इस निर्णय पर पहुंचे कि BHAGAT SINGH REPRESENT THAT REVOLUTIONARY PASSION। वो किताब फ्रेंच में आई फिर अंग्रेजी में और उसके टाइटल पर भगत सिंह थे। वही इंकलाबी पैशन आपको गांधी जी में भी मिलेगा क्योंकि उसमें निरन्तरता है। और अंतिम बात कि जब दंगे होते हैं तब मैंने गांधी जी से सवाल किया, सवाल करने चाहिए आपको भी, कि जब पहले दंगे हुए थे 1946 में वो अहमदाबाद में हुए थे उसके बाद दूसरी जगहों पर हुए, तो अहमदाबाद गांधी जी का घर है वहाँ पर पटेल साहब जो हैं होम मिनिस्टर हैं भारत के और मोरारजी देसाई जो हैं वो बोम्बे प्रेसीडेंसी के प्रसीडेंट थे, तो मैंने जानना चाहा कि गांधी जी क्या कर रहे थे तो गाँधी जी के 2 पत्र मिले मुझे जो उन्होंने मोरारजी देसाई को लिखे थे उन्होंने कहा कि भाई ये जो दंगे हो रहे हैं ये पोलिटिकल काम है, आप पॉलिटिशियन को वहाँ जाकर इसे सुधारना चाहिए तो मोरारजी देसाई लिखता है कि जी मैंने पटेल जी से भी पूछ लिया है वो कहते हैं कि नहीं नहीं हम वहाँ पुलिस भेजेंगे या आर्मी भेजेंगे… वो इसको करेंगे। और अगला बहुत महत्वपूर्ण है मै समझता हूँ, वो कहते हैं कि अगर ये जो राजनितिक प्रॉब्लम हैं आप इसे मिलिट्री और पुलिस से हल करना चाहेंगे तो आप मिलिट्री पुलिस के गुलाम हो जाएंगे और प्रोब्लम कभी हल नहीं होंगी। ये जो संवेदना थी उसी को लेकर वो नौखली गए उनका एक आदमी वहाँ निगौरी लेकर आया और उसी ने वहाँ शांति बनायी। तो ये जो पैशन है वो आपको अम्बेडकर साहब में भी मिलेगा, जो कोमन ग्राउंड है वो तीनों का इंकलाबी पैशन है अपने लोगों के भले के लिए हालाँकि भगत सिंह उस पर क्रिटिक करते हैं कि GANDHI JI IS A PHILANTHROPIST, यानि कि वो लोगों का भला चाहते हैं लेकिन भला चाहने से समाज बदलता नहीं है। समाज बदलने के लिए आपको एक SCIENTIFICALLY ORIENTED DYNAMIC SOCIAL FORCE चाहिए। यहाँ पर भगत सिंह डिफाइन करते हैं और वो सोशल डायनामिक फ़ोर्स अम्बेडकर साहब ने पैदा की। मैंने वो भी पढ़ना चाहा जो उनकी पूरी 36 पॉइंट्स कि आखरी स्पीच है जो उन्होंने बौद्ध धर्म को अडॉप्ट करने के वक्त दी, उसमें एक पैराग्राफ है कि जो कोमन आदमी है उसको कोई न कोई निगौरी चाहिए ही और वो धर्म की निगौरी लेके चलता है लेकिन मैं कौन सी निगौरी पकड़ाऊँ कि जिसको लेकर वो चल सकें तो मैं समझता हूँ कि बौद्ध धर्म जो है वो बेहतर विकल्प है तो उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया। उसमें फिर अमर्त्य सेन का जो विश्लेष्ण है कि बौद्ध धर्म यदि रहस्यवाद की जगह यथार्थवाद पर काम करता है और, यानि समाज की जो असल हालत है उसपर, वो कहता है कि इसे बदलो, जोकि बिलकुल ठीक बात है।
“लोग कहते हैं कि अच्छा संविधान है कोई कहता है कि खराब है तो मैं ये बता दूँ कि जो हमारी साझी समझदारी बन सकी और उसमें कांग्रेस ने ये मदद की जो बड़े अनुशासित लोग थे जिन्होंने इसे पूर्ण करने में मदद दी लेकिन कल को जो राज करेंगे अगर खराब हुए तो अच्छे संविधान को भी खराब बना देंगे और अगर अच्छे हुए तो खराब संविधान में से भी अच्छा निकल सकता है”। वो कहते कि “मुझे फ़िक्र इसका नहीं है, मुझे फ़िक्र ये है कि भारत एक दफा नहीं कई दफा अपनी आज़ादी खो चुका है आज जो हमें मिला है ये कैसे खोएंगे, कि हमारे अपने ही लोग इसके खिलाफ जाएंगे।” -बाबा साहेब अम्बेडकर
आज कनक तिवारी जी ने याद दिलवाई के. टी. शाह की। मुझे याद आया कि भगत सिंह ने अपनी जेल नोटबुक में एक पेज जो है वो रशियन रिवोल्यूशन पर लगाया है और उसपर जो टाइटल दिया है उन्होंने वो के.टी. शाह जी कि किताब है; द रशियन एक्सपेरिमेंट 1917-27, कि वहाँ क्या तजुर्बा हुआ है उसी तजुर्बे से उन्होंने समाजवाद शब्द को जन्म दिया। ना बराबरी का हल बराबरी है और बराबरी भाईचारे के बिना नहीं आती। तो ये जो समानता है, गांधी जी भी बराबरी की बात करते हैं और बाकी सब भी। मुझे यह बात बड़ी अच्छी लगी कि संविधान के पहले 51 क्लोजेज जनता कि जुबान में होने चाहिए और मैं काफी समय से बात कर रहा हूँ कि उसमें 2 ऐसे क्लोजेज रख दी गए हैं कि जिनको कोर्ट नहीं डिसाइड नहीं करेगी कि सरकार कि जनता के प्रति जो जुम्मेवारी है, वो DIRECT TO PRINCIPLE OF STATE POLICY में है, उसमें अदालत नहीं करेगी उसमें लोग करेंगे। और जो फंडामेंटल ड्यूटीज जिनका जिक्र प्रधान मंत्री कर चुके हैं दो बार और लगता है शायद उन्होंने भी फंडामेंटल राइट्स और ड्यूटीज नहीं पढ़ी हैं, लेकिन हमें कहते हैं ड्यूटी करिए और अब तो चीफ जस्टिस ने भी कह दिया है, तो मैंने सोचा कि उन्हें पढ़ लेते हैं तो फंडामेंटल ड्यूटीज ये है कि जो संविधान की रूह है उसको हम आगे बढ़ेंगे और उसको प्रोटेक्ट करेंगे। आज शाहीन बाग़ और वो जो पूरी मूवमेंट है, वो संविधान को बचने कि मूवमेंट है उसकी रूह को बचाने की मूवमेंट है। दूसरा बात है जो आज़ादी कि लड़ाई के संघर्ष में हमारे सामने जो आदेश थे उन आदेशों पर पहरा देना और उनको आगे बढ़ाना, जो इन तीनों को लेकर हम कर रहें और शायद हमें नेता जी को भी इसमें जोड़ना चाहिए क्योंकि उनपर बहुत कम काम हुआ है, और जो धरातल है हम उनके लिए छोड़ रहे हैं। नेता जी वो हैं जिन्होंने भगत सिंह का 2 फरवरी 1931 वाला कार्यक्रम पढ़ा, बंगाल में फैलाया और भगत सिंह का जो नारा था “DOWN WITH IMPERIALISM LONG LIVE REVOLUTION”, उसको पूरा किया उन्होंने रामगढ़ पैरलल कांग्रेस में कि नो कम्प्रोमाइज विद इम्पियरेलिज्म। शायद हमने नेता जी का वो नो कम्प्रोमाइज विद इम्पियरेलिज्म वाला जिसमें उनके साथ ग़दर पार्टी वाले बाबा भकना, स्वामी सहजानंद सरस्वती आदि वो लोग थे, जो बाद में आगे बढ़ता रहा, हमनें भुला दिया। फंडामेंटल ड्यूटीज में मानवता भी है कि हम इंसानियत कि कद्रों को बढाएं। यदि इन तीनों कि मूवमेंट के आधार पर हम सरकार को आज ये प्रश्न करने लग जाएं कि ना बराबरी आज क्यों है? एक नई किताब आई है, जिसमें INEQUALITY पर काम किया गया है THE CAPITAL AND IDEOLOGY उसमें भी उसने कहा है कि जो धरातल है वो समाजवाद के ही तरीके से होगी, बराबरी और बराबरी भाईचारे के बगैर नही आती। तो तीनों का यही उद्येश्य है कि उस भाईचारे को, उस बराबरी के सिद्धांत को हमने कैसे लाना है? हमने आगे भारत को बिल्ड करना है, इसमें बहुत सी क्षमता है। SO DOWN WITH IMPERIALISM LONG LIVE REVOLUTION। धन्यवाद।