चौबीस घन्टे रहता यो तै माटी गेल्या माटी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी
बिन पाणी बता क्यूंकर करै बिजाई रै नहीं टेम पै मिलते बीज, दवाई रै कदे खाद पै मारा-मारी, कदे आज्या बाढ़, बीमारी हरगिज भी या मिटती कोन्या इसकी गात उचाटी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी
न्हाण-धोण और खाण-पीण की फुरसत ना हांडै धक्के खाता किते भी इज्जत ना ना फसलां के मिलते भा रै, न्यू छाती मै होरये घा रै अपणे हक की बात करै तो मिलैं गोली और लाठी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी
कर्जे के म्हां जन्म ले और कर्जे मै मर जाता रै कोय कोन्या छुट्टी रोज कमाता रै यो फेर भी भूखा सोवै , किस आगै दुखड़ा रोवै कोय कोन्या साथी, इसकी सबनै जड़ या काटी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी
समुन्द्र सिंह करो अब तो इसका ख्याल रै दिन-दूणा यो होता जा बेहाल रै जै भारत देश बचाणा, पड़ै किसान का दर्द बंटाणा सच बूझो तो जीवन इसका होरया मौत की घाटी अन्नदाता का हाल देख मेरी छाती जा सै पाटी
2.
हिंदुस्तान हमारे का बुरा हाल हुआ रखवाले बणे लुटेरे जुल्म कमाल हुआ
जो काम देश कै आते उनके कफ़न बेच कै खाते बिल्कुल ना शरमाते, गन्दा ख्याल हुआ रखवाले बणे लुटेरे जुल्म कमाल हुआ
जब चुनाव सिर पै आते कर वायदे बहोत लुभाते फेर टोहे भी ना पाते, न्यू हरदा घाल हुआ
सब एक थैली के चट्टे - बट्टे देश नै लूटैं हो कै कट्ठे नित खोदें नये घट्टे, देश कंगाल हुआ
समुन्द्र सिंह के करले जब बाड़ खेत नै चरले बलंभिये हरि सुमरले, घणा क्यूँ काल हुआ
3.
मात-पिता की चौधर घर मै आज ना रही वृद्ध-आश्रम खुलगे शर्म-लिहाज ना रही
जितने ज्यादा पढ़े-लिखे उतने ज्यादा खराब सैं मात-पिता नै ना संग मै राखें बणे फिरै जो साहब सैं आजकाल की औलाद नर्म-मिजाज ना रही वृद्ध-आश्रम खुलगे शर्म-लिहाज ना रही
मात-पिता नै बहु और बेटे समझण लागे लोगों भार छीन कै उनकी प्रोपर्टी सारी घर तै कर दे सैं बाहर मात-पिता के हक मै कोय आवाज ना रही वृद्ध-आश्रम खुलगे शर्म-लिहाज ना रही
मात-पिता वृद्धआश्रम के म्हा फूट-फूट कै रोते हद छाती उन बहु बेटां की जो चैन से घर मैं सोते चली निराली , पहले आली रिवाज ना रही वृद्ध -आश्रम खुलगे शर्म-लिहाज ना रही
समुन्द्र सिंह जो जैसे बोवै वैसे ही वो काटैगा थारे गैल बी इसी बनै जब थामनै बेरा पाटेगा बेसक काल्ली मान जाओ ना जायज ना कही वृद्ध-आश्रम खुलगे शर्म-लिहाज ना रही