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मनजीत भोला
1.
क्या कहें बस एक तरफा प्यार जैसी हो गई फूल जैसी ज़िन्दगी थी खार जैसी हो गई लूट लो या बेच डालो मैं वतन सा हो गया आप की भी आदतें सरकार जैसी हो गई मुन्सिफों की महफिलों में चार दिन क्या रह लिया चोर की हिम्मत सुनो हक़दार जैसी हो गई हर तरफ बरसेंगी खुशियाँ ये ख़बर सुनते हुए सदरियाँ भीगे हुए अख़बार जैसी हो गई क्या सियासत कर गई है घर दिलों में आपके वहशतें भी खून की रफ्तार जैसी हो गई हम लड़े लेकिन लड़े किन बुज़दिलों के वास्ते जीत भी 'भोला' हमारी हार जैसी हो गई
2.
आप तो हर मंच से शोले शरारे बेचते आपको मालूम क्या, क्या-क्या बेचारे बेचते खेलने की सिन है जिनकी बोझ ढो सकते नहीं हाय रे मजबूरियां हल्के गुबारे बेचते क्यों नहीं ढंक पा रहे हैं तन बदन वो भी यहाँ ठंड में जो रोड़ पर किशमिश छुआरे बेचते चावलों की थैलियों पर दाम हैं छापे गए ढेरियों में धान क्यों दहकां हमारे बेचते औरतें नाशाद किनकी नौजवां जिन के लिए रात में बनकर जिगालो तन कुंवारे बेचते रहनुमाओं तुम कहो क्या बस यही है ज़िन्दगी कल की खातिर आज के हम खाब सारे बेचते आंसुओं पर वाहवाही सागरों को मिल गई अश्क "भोला" हम कहाँ सूखे किनारे बेचते
3.
महकमा तालीम का उसको मिला सरकार में पास दसवीं कर न पाया जो शख्स दो बार में और कुछ तो पेश अपनी चल नहीं सकती यहाँ चाहता है जी लगादूँ आग मैं अखबार में है करोडों का बजट जब मन्दिरों के वास्ते क्या इज़ाफ़ा हो सकेगा तुम कहो रुजगार में जान की क्या बात कीजे तुमसे प्यारी तो नहीं कीमतें मिलती कहाँ हैं जान की बाजार में ऐ हवा चलना संभल के दौर है बदला हुआ दाग लगते देर ही लगती नहीं किरदार में बागबां को डूबकर अब मर ही जाना चाहिए एक भी तितली नहीं महफूज़ इस गुलज़ार में
4.
लोग जब बेदार होंगे देखना कुछ नए किरदार होंगे देखना गर उजाड़ोगे यूँ ही तुम आशियाँ तिनके ही तलवार होंगे देखना कब तलक बेकार फिरेंगे नौजवां हाथ में हथियार होंगे देखना बेचने जितने हैं जुमले बेचलो ठप ये कारोबार होंगे देखना सर उठाकर चल सकोगे किस तरह पाँव में दस्तार होंगे देखना जिन सरों से है तुम्हारी दुश्मनी ताज के हकदार होंगे देखना
5.
हर तरफ सहमी हुई सी प्यार की आवाज है चाहतों के देश में अब नफरतों का राज है कौन चिड़िया गुनगुनाए गीत यारों बाग में हर शज़र पे आजकल बैठा हुआ इक बाज़ है तानपूरे,ढोल,तबले,बाँसुरी खामोश है गोलियों की धुन सुनो बन्दूक ही अब साज़ है कागजी किरदार सारे हैं अदीबों मौज में रौनकी मुहताज कल था आज भी मुहताज है है कहाँ गिरवी कलम, कुछ ऐ सहाफी तुम कहो खुदकुशी लिखते क़त्ल को क्या गज़ब अंदाज है खुशबुएँ थी जिन गुलों में बस वही तोड़े गए काम जो आए किसी के गिरती उस पे गाज है हक मिरा जो खा गए वो कह रहे हैं दोस्तों है हमारा खास "भोला" हमको उसपे नाज़ है
6.
जफ़ा जब मुस्कुराती है बहुत तकलीफ होती है वफ़ा आंसू बहाती है बहुत तकलीफ होती है जलाकर के चरागों को इशारे से हवाओं को सियासत खुद बुलाती है बड़ी तकलीफ होती है लगें जब तेज लू चलने परिन्दे बात करते हैं तलैया सूख जाती है बड़ी तखलीफ होती है बताओ मत हमें हाकिम मरे उस पार कितने हैं यहाँ जब लाश आती है बहुत तकलीफ होती है कहानी ज़िंदगानी की किसी किरदार के कारन मुकम्मल हो न पाती है बहुत तकलीफ होती है
7.
महफिले-शब के सुहाने मंजरों को देखना आस्तीनों में छुपे जो खंजरों को देखना सब शरीफों की हक़ीक़त सामने आ जाएगी मालिकों की बात करते नौकरों को देखना किस तरह बर्बाद करती एक तरफा आशकी मोम में लिपटे पतंगों के परों को देखना कश्तियां मझधार में जब डूबती तुमको लगें साहिलों पे मुस्कुराते रहबरों को देखना गर कभी फुर्सत मिले तो रात में फुटपाथ पे बिस्तरों को देखना तुम चादरों को देखना क्या ग़ज़ब की कोठियां हैं क्या ग़ज़ब बुनियाद है खाब जिनके हैं दफन उन बेघरों को देखना जो अदब की बात करते मुफ़लिसी से जूझते जेब भरते ऐश करते मसखरों को देखना
8.
क्या पसीना खूँ बहा देंगें मियाँ आपकी महफ़िल सजा देंगें मियाँ चाहते हैं रोटियाँ दो, गर मिलें दीप क्या हम घर जला देंगें मियाँ एक टूटी सी है थाली खाली है जब कहोगे हम बजा देंगें मियाँ सुन पसे-दीवार ऐसे लोग हैं सर तुम्हारा भी झुका देंगें मियाँ नाखुदाओं से रक़ाबत छोड़ दे ये सफीनों को डुबा देंगें मियाँ नफ़रती शमसीर आई जो कभी प्यार के नग़में सुना देंगें मियाँ हैं परिंदे जो कफ़स में आजकल आसमाँ उनको दिखा देंगें मियाँ
❤️ को छु लेने वाली हैं हर रचनाएं ।