बुत गूंगे नहीं होते

 
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के सभागार में देस हरियाणा की तरफ वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश करुणेश के हाल ही में प्रकाशित हुए काव्य संग्रह ‘बुत गूंगे नहीं होते’ पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में युवा समीक्षक वैभव सिंह ने काव्य संग्रह की विभिन्न कविताओं का जिक्र करते हुए अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता सामाजिक चिंतक डॉ. टीआर कुंडू ने की और संचालन देस हरियाणा के संपादक एवं विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर डॉ. सुभाष चन्द्र ने किया। संगोष्ठी में काव्य संग्रह की कविताओं को पढ़ा गया और उन पर चचा्र की गई। संगोष्ठी की शुरूआत करते हुए ओमप्रकाश करूणेश ने अपने अनुभवों और रचना प्रक्रिया पर चर्चा की।
वैभव सिंह ने कहा कि कविता लिखना एक मुश्किल काम है। कविता एक सार्थक वक्तव्य होती है। ओमप्रकाश करूणेश इसमें सफल हुए हैं। करूणेश जी की कविताएं पढ़ते हुए उन्हें निराला, मुक्तिबोध, धूमिल व नागार्जुन की याद आई। उनके काव्य-संग्रह के आधार पर कहा जा सकता है कि करूणेश जी उन्हीं की परंपरा के कवि हैं। करूणेश जी की कविता में लोकतंत्र की चिंता है। झूठ से लडऩे की चिंता है। समाज में बढ़ती जा रही गैरबराबरी से मनुष्यता का ऐतिहासिक संघर्ष व्यक्त करने की चिंताएं हैं। उनकी कविताएं आंदोलनों से अर्जित सामाजिक चेतना को कलात्मक रूप से व्यक्त करती हैं। कवि की कशमकश यही है कि किस तरह से सार्थक और कलात्मक वक्तव्य गढ़ा जाए। करूणेश जी की कविता में बहिर्मुखता बहुत ही लाउड है। उनकी कविता में अपने समाज के प्रति खास तरह की ईमानदारी और जिम्मेदारी का भाव है। उनकी कविता में नाम के अनुरूप ही करूणा का तत्व मौजूद है। यह करूणा पूरी तरह वास्तविक है। करूणेश जी की कविताएं आलोचक के रूप में हमारे सामने आती हैं।
डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि करूणेश जी की कविताएं नागरिक बनाने की परियोजना के हिस्से के तौर पर अपना दायित्व निभा रही हैं। करूणेश जी की कविताओं में भाषा का छल नहीं है, जिससे पाठक फिसल जाएगा। वे खुरदरे अनुभवों का अहसास करवाएंगी, जोकि हमें अपने साथ ले जाएंगी। कविता की आंतरिक रूप की बनावट में विविधता है। प्रो. टी. आर. कुंडू ने कहा कि हर एक सृजनकार को अपने समय के सवालों से जूझना पड़ता है। उसे तय करना होता है कि क्या कहना है और कैसे कहना है। उन्होंने कहा कि करूणेश जी का परिप्रक्ष्य बहुत व्यापक है। वे जनपक्षधरता के कविता हैं। उनकी कविताओं में उनकी प्रतिबद्धता और ईमानदारी मुखर होकर सामने आती है।
काव्य संगह पर वरिष्ठ रचनाकार राम कुमार आत्रेय, डॉ. कृष्ण कुमार, डॉ. कुलदीप सिंह, बृजेश कठिल, रविन्द्र गासो, डॉ. अशोक भाटिया, ओम सिंह अशफाक, प्रदीप सिंगला, रविन्द्र कुमार, मेवात से आए नफीस अहमद, राजेश कासनिया, इकबाल, रानी, प्रदीप मानव, सुनील थुआ सहित अनेक रचनाकारों एवं शोधार्थियों ने भी करूणेश जी की कविताओं पर चर्चा की।

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