राजकुमार जांगडा ‘राज’ की हरियाणवी कविता

अक्ल के दाणे नहीं मगज़ में, खुद बिद्वान बता रे सै ।
झूठे भरै  हुंकारे सारे , रै भेड चाल में जा रे सै ।।

पूँछ हिलावै,सिर भी झुकावै ,चाट रहे सै जूता नै ।
भौं भौं करदे फिरै रात दिन,माफ करै सै कुत्ता नै ।
कतई चैन नही सै सुतयां नै ,पैंद सिरहाणे जा रे सै ।।

अक्ल के दाणे नहीं मगज़ में, खुद बिद्वान बता रे सै ।
झूठे भरै  हुंकारे , सारे भेड चाल में जा रै सै  ।।

खुद की अक्ल चरण नै जा ली ,सबके सिर नै कर रे खाली ।
बिल्ला दूध की करे रखवाली , के खावैंगे हाली और पाली ।
बाबा आवे और बाजे ताड़ी,  घणा घमसाण मचा  रे सै ।।

अक्ल के दाणे नहीं मगज़ में, खुद बिद्वान बता रे सै ।
झूठे भरै  हुंकारे , सारे भेड चाल में जा रै सै  ।।

झाड़ा लावै रोग भजावै, लुक़मान बणे हाण्डय सै ।
गुफ़ा में बुलावै खीर खुवावै ,भगवान बणे हाण्डय सै ।
धनवान बणे हाण्डय सै वो, देश लूट के खा रे सै ।।

अक्ल के दाणे नहीं मगज़ में, खुद बिद्वान बता रे सै ।
झूठे भरै  हुंकारे , सारे भेड चाल में जा रै सै  ।।

सिर पै ढो-ढो महल बणा ग्या,बदनाम करें उस दादा नै।
दादा लाई खेत बेच के,आज फिरे गिणादे फैदया नै
आग लगो  पोथी कादया में, भाई तै भाई लड़ा रे सै।

अक्ल के दाणे नहीं मगज़ में, खुद बिद्वान बता रे सै ।
झूठे भरै  हुंकारे , सारे भेड चाल में जा रै सै  ।।

राजकुमार जांगडा ‘राज’

More From Author

सिद्दिक अहमद ‘मेव’ की कविताएं

ज्ञान का दीप जलाओ साथी – राजकुमार जांगडा ‘राज’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *