बाबा साहब! यह ख़त ‘हम भारत के लोग‘ 137 करोड़ देशवासी आपकी आत्मा के साए तले बैठकर लिख रहे हैं। आज भी चुप रहे तो आपके साथ जुल्म होगा। इतिहास हमें कलंकित करेगा। ‘हम भारत के लोग‘ जानते हैं आईन की एक एक इबारत पर आपकी जे़हनियत दर्ज़ है। संविधान गीता, कुरानशरीफ, बाइबिल या गुरुग्रंथसाहब जैसा पवित्र है। अवाम के करीब 300 नुमाइंदों ने तीन साल की जी तोड़ जद्दोजहद के बाद आईन देश के हवाले किया। कई सदस्यों का एक पैर जेल और आंदोलन और दूसरा संविधान सभा की बैठकों में होता। पहाड़ जैसा काम आपने अपने कंधों पर उठा लिया। धार्मिकता में कहा गया है कि हनुमान ने पूरा पहाड़ उठाकर वैद्य के सामने इलाज की जड़ी बूटी खोजने रख दिया था। चट्टानी मजबूती के संविधान से राजनीतिक, प्रशासकीय और अदालती वैद्य जनता की तकलीफें दूर करने मुनासिब जड़ी बूटी क्या खोज पा रहे हैं?
बाबा साहब! ताजा इतिहास में गांधी सुकरात की तरह सत्य के उपासक, नेहरू प्लेटो की तरह गणतंत्र के रचयिता और आप पूरा ज्ञानशास्त्र विवेक, जेहन और कर्म में बिखेरते महान अरस्तू की भूमिका में रहे। तीनों हमारी आत्मा के रचयिता नहीं होते, तो ‘हम भारत के लोग‘ गोरों की गुलामी से कहां छूटते। गांधी और नेहरू ने इतिहास की खुर्दबीन से तुम्हें ढूंढ़कर नायाब हीरा निकाला। उस रोशनी से बना संविधान जगमगा रहा है। आप कालजयी संगतराश बने छेनी, हथौड़ी से एक एक इबारत का पत्थर तराशते फौलाद बनाते रहे। मजहबी जातिवादी आलोचक आपको जाने बगैर आपको प्रारूप समिति का अध्यक्ष ही बताकर सच बोलने से डरते हैं।
बाबा साहब! आपने आलिम फाज़िल, जहीन बुद्धि के सिपहसालारों को आंकड़ों, तर्कों, तथ्यों, तकरीर और तदबीर से संभाल लिया था। आखिरी भाषण में आईन की आत्मा निचोड़ते आपने कहा था हमसे जैसा बन पड़ा, संविधान दे रहे हैं। भविष्य की पीढ़ियों पर निर्भर करेगा वे इसके और देश की जनता के साथ कैसा सलूक करेंगी। आप बुद्धिमय बौद्ध हैं। आपने जिनके चरित्र को चट्टान समझा, वे बर्फ की सिल्ली निकलीं। काॅरपोरेटियों के धन के सामने पिघल गईं। ‘हम भारत के लोग‘ खुली मुट्ठी और नम आंखों से आपको याद करते हैं।
आपको कितनी चिंता थी बड़ी मुश्किल से मिली आजादी के बाद भारत फिर गुलाम न हो जाए। हम ‘मेक इन इंडिया‘, ‘बुलेट ट्रेन‘, ‘स्मार्ट सिटी‘, ‘स्टार्ट अप‘, ‘स्किल इंडिया‘ के जमाने में आ गए हैं। देशी उद्योगपतियों के गुलाम बना दिए गए हैं। संविधान सभा में के.टी. शाह ने कहा था ‘ये कारपोरेटिए गरीब जनता का खून चूसते हैं। देश की दौलत को इनसे बचाओ।‘ आपने भविष्य की संसद और सरकार पर भरोसा किया कि कुदरत की दौलत सबके लिए उपयोगी होगी। आप इतने भोले क्यों थे? संविधान निर्माताओं की छाती पर जितनी गोलियां अंगरेजों ने नहीं दागीं, उससे ज्यादा अहसानफरामोश कर्णधारों ने सबकी पीठ पर मारीं।
बाबा साहब! आपने कहा था संविधान जनता की भलाई के लिए है। सुप्रीम कोर्ट के महज पांच छह काले चोगे में लकदक रोबदार जज या चुना हुआ मंत्रिमंडल आपसी संघर्ष में आखिरी हुक्काम न बन जाए, इस जददोजहद से परेशान हूं। आपने नहीं सोचा होगा दोनों में आपस में सांठगांठ हो भी सकती है। जो चरित्रवान होता है, किसी के चरित्र पर शक नहीं करता। हालत है इंसाफ का मंदिर राजपथ का महल है। वकील एक बार खड़े होने इतनी फीस लेते हैं जितनी 90 प्रतिशत लोगों की जीवन भर की बचत नहीं होगी। जनता की अदालत है या जनता से अदावत? न्याय गिद्ध के जबड़े में फंसी मैना की तरह है। उसकी सिसकी में‘ हम भारत के लोग‘ शामिल हैं। गांधी की सिविल नाफरमानी, असहयोग और निष्क्रिय प्रतिरोध तथा क्रांतिकारियों की हिंसक क्रांति के रास्तों को भी खारिज करते न्याय के लिए आपको सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पर भरोसा था। कैसे बताएं जिसे न्याय समझते हैं वह तो बस मुकदमे का निपटारा है। मुफलिस, मजलूम, बेकार, पस्तहिम्मत पक्षकार समझ नहीं पाते बड़ी अदालतों में अंगरेजी भाषा में वकील और जज के बीच क्या गिटपिट हो रही है। इसीलिए आखीर में गांधी ने झल्लाकर कहा था ‘जाओ दुनिया से कह दो गांधी अंगरेजी भूल गया है।‘ नेहरू और गांधी पर किया जा रहा हर हमला दरअसल आपके संदेशों पर भी हो रहा है।
बाबा साहब! आप नहीं होते तो इतिहास लिखकर रख ले, संविधान इस तरह बन ही नहीं सकता था। देश को संवैधानिक ज्ञानशास्त्र का ‘एनसाइक्लोपीडिया‘ मिला था। आपने कड़ी मेहनत के जरिए देह की एक एक हड्डी गला दी। दिमाग को झकझोरते रहे। जिस स्याही से संविधान का भाष्य रचा उसमें ‘हम भारत के लोग‘ खून पसीना और आंसू भी देते रहे। आज होते तो आईन की दुर्दशा देखकर आपकी आंखें पथरा गई होतीं। आपने जिस्म को इस कदर होम नहीं कर दिया होता तो एक लंबी जिंदगी जीते। अपनी जिंदगी के कई बरस कुरबान कर आपने आईन दिया है। ‘हम भारत के लोग‘ आपको नहीं भूलेंगे। हम इतिहास में अहसानफरामोश नहीं बनेंगे।
बाबा साहब! हम 137 करोड़ चीटियां हैं। वक्त की दीवार पर चींटी चढ़ती चढ़ती फिसलकर नीचे गिरती है लेकिन हिम्मत नहीं हारती। चढ़ ही जाती है। वक्त आने पर हाथी की सूंड़ में घुसकर उसे मारने का जतन भी कर लेती है। ‘हम भारत के लोग‘ टिटहरी भी हैं, जो धरती पर उलटी लेटकर अपने पैरों से आकाश थामने का हौसला रखती है। आपने बताया था संविधान हमारा घर है। ‘हम भारत के लोग‘ उस घर के मालिक हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के मुंह से कहलवाया भी कि भारत में कोई सार्वभौम नहीं है, सरकार, न राष्ट्रपति, न अदालतें और यहां तक कि संविधान भी नहीं। भारत में कोई सार्वभौम है तो केवल ‘हम भारत के लोग‘ अर्थात जनता। हम अमर हैं, अनंत हैं, अविचल हैं, अप्रतिहत हैं। सरकारें, अदालतें, नौकरशाह, उद्योगपति औंर संविधान के संशोधन भले ही चेहरा और चरित्र बदलकर आते जाते रहेंगे।
बाबा साहब! आज हम तुम्हारी आत्मा से रूबरू हैं। भुखमरी के शिकार मजबूर लोगों की पीठ पर पुलिसिया लाठियां बरसाई जा रही हैं। संसद जनविरोधी कानून पास कर रही है। अदालतें मृगतृष्णा की तरह झिलमिला रही हैं। आपने आजादी के बाद झल्लाकर कहा था मेरा बस चले तो संविधान को ही जला दूं। संकीर्ण राष्ट्रवादियों को आपने जनता के लिए खतरा बताया, वे ही हुक्काम हो गए हैं। देश संसदों, विधायकों, मंत्रियों, काॅरपोरेटियों, जजों और वकीलों बल्कि व्यवस्था के कई तरह के दलालों का तो हो गया। क्या जनता का भी है?
बाबा साहब! यह आपका कैसा जन्मदिन है, जब आपके रास्तों पर चलते वंशज, मानव अधिकार कार्यकर्ता गिरफ्तारी दे रहे हैं। अब न्याय से उम्मीद अधमरा शब्द है। संवैधानिक संस्थाओं के परखचे उखाड़े जा रहे हैं। धरती पर पड़ा लोकतंत्र जटायु की तरह संघर्ष कर रहा है। आपने मीडिया को नागरिकों के बराबर अभिव्यक्ति की आजादी दी थी कि जनता की आवाज बनेगा। वह सरकार और कारपोरेटियों का दलाल बना जनता की आवाज का गला घोंट रहा है।
जो कौम अंगरेज के सांप से नहीं डरी उसको केचुआ डराता है कि जिसे चाहे राजा बना देगा। निज़ाम संविधान का ‘नागरिक आजादी का कैदघर‘ क्यों बना रहा है? हर कारवां को जनपथ पर राजद्रोह, अवमानना और मानहानि के कांटे क्यों गड़ने लगते हैं। बाबा साहब! आपने इशारा भी किया था कि सताए गए अवाम की आंखों में जम गए ओले इन्कलाब के शोले में बदलने की हैसियत भी रखते हैं। दलितों के लिए आप संविधान सभा गए थे। आज जातिवाद, सियासत, शोषण और काॅरपोरेट गुलामी के चलते वे आप पर भरोसा कर क्रांति नहीं कर रहे हैं। आपने निजाम को चेतावनी दी थी इन दलितों और वंचितों को जनविद्रोह के लिए उकसाए नहीं।
‘हम भारत के लोग‘ अब भी सब्र कर रहे हैं कि आपके संविधान के रास्ते देश मजबूत पैरों से चलेगा। आप असमय चले गए बाबा साहब! आपके हस्ताक्षर वाली आईन की किताब को एक हाथ में और दूसरे हाथ में नेहरू द्वारा दिया गया तिरंगा झंडा लेकर, छाती पर गांधी की तीन गोलियां याद करते हम आपसे पूछ रहे हैं बाबा साहब! आप कहां हैं? इतिहास जान ले कि ‘हम भारत के लोग‘ ही सविधान के निर्माता हैं। यह शिलालेख आपने ही अपने कालजयी हस्ताक्षरों से लिखा था।