देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन द्वारा 14-15 मार्च को कुरुक्षेत्र स्थित सैनी धर्मशाला में आयोजित हरियाणा सृजन उत्सव में दोनों दिन सवाल उठाने और चेतना पैदा करने वाली कविताएं गूंजती रही। देश के जाने-माने वैज्ञानिक एवं शायर गौहर रज़ा के कविता पाठ के लिए विशेष सत्र आयोजित किया गया। सत्र का संचालन रेतपथ के संपादक डॉ. अमित मनोज ने किया। हरियाणवी गजल के सत्र में मंगतराम शास्त्री और कर्मचंद केसर ने सुनाई। कवि सम्मेलन में कवियों ने राजस्थानी, पंजाबी, हरियाणवी व हिन्दी में रचनाएं सुनाई। प्रस्तुत है अरुण कुमार कैहरबा की रिपोर्ट –
गौहर रजा ने अपनी प्रसिद्ध रचना सुनाते हुए कहा-
धर्म में लिपटी वतनपरस्ती क्या-क्या स्वांग रचाएगी,
मसली कलियां झुलसा गुलशन ज़र्द खिजां दिखलाएगी।
यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है,
खतरा है वो वहशत मेरे मुल्क में आग लगाएगी।
अंधे कूएं में देश की नाव तेज चली थी मान लिया,
लेकिन बाहर रोशन दुनिया तुमसे सच बुलवाएगी।
गौहर रजा ने अपने संबोधन में कहा कि फासीवादी खतरों का सामना करने के लिए कविताओं, कहानियों, गीत-संगीत व फिल्मों को उठ खड़ा होना होगा। सत्र के दौरान गौहर रज़ा, देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र सहित अनेक साहित्यकारों ने सिरसा के कवि हरभगवान चावला के काव्य संग्रह-‘इंतजार की उम्र’ और वीरेन्द्र भाटिया के काव्य संग्रह ‘युद्ध लड़ रही हैं लड़कियां’ का विमोचन किया।
सृजन उत्सव में हरियाणवी ग़ज़ल पर विशेष सत्र भी आकर्षण का केन्द्र बना, जिसमें प्रसिद्ध हरियाणवी गजलकार मंगतराम शास्त्री खड़तल और कर्मचंद केसर ने अपनी गजलें पढ़ी। देस हरियाणा के उप-संपादक अरुण कुमार कैहरबा ने सत्र का संचालन किया। मंगतराम शास्त्री खड़तल ने अपनी हरियाणवी ग़ज़ल सुनाते हुए फरमाया-
हांसण खात्तर मनवा बेफिकरा चाहिए सै,
सुंदर होण खात्तर हिरदा सुथरा चाहिए सै।
कहणे खात्तर बोहत फिरैं सैं मुंह नैं बाएं,
साच्ची बात कहण खात्तर जिगरा चाहिए सै।
दूसरी गजल में उन्होंने कहा-
बीज नफरत के सदा जो बोवैगा, जिंदगी भर नफरतां नैं ढ़ोवैगा।
सारे जाणैं देश भगत था जो, उस गांधी के हत्यारे पुजवाए जा सैं।
खड़तल के छोड्डै और लिखै भी के-के, आज गपोड़े भी इतिहास बताए जा सैं।
कर्मचंद केसर ने हरियाणवी में सार्थक-निरर्थक शब्दों के जोड़े को प्रयोग करने की प्रवृत्ति को आधार बनाकर भ्रष्टाचार पर जमकर तंज कसे। उन्होंने कहा-
ठेकेदार का देखो हाजमा क्यूकर इने डकारे।
रेता-रुत्ता, बजरी-बुजरी पत्थर-पात्थर सारे।
बाबा की करामात देखिए सब चरणा मैं बैठे,
धाक्कड़-धुक्कड़, अफसर-उफसर, लीडर-लुडर सारे।
अपनी दूसरी गजल में उन्होंने कहा-
भूली-बिसरी याद पुराणी लिख दूं के,
मैं भी अपणी राम कहाणी लिख दूं के।
फूटे आंडे, गिर्या आलणा चिड़िया का,
दरखत की वा टूटी टाहणी लिख दूं के।
सृजन उत्सव में अध्यापक व गायक विक्रम राही ने अपनी स्वरचित रागणी को वाद्य यंत्रों के साथ सुनाया। गायक और कवि विक्रम राही ने अपनी रागणी गाकर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।
माणस नै माणस की चाहना, माणस बण सम्मान करो, जो कैरया संविधान सुणो
सृजन उत्सव के पहले दिन रात को कवि सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें वरिष्ठ एवं युवा कवियों ने देर रात तक अपनी कविताएं पढ़ी। दूसरे दिन सुबह भी कवि सम्मेलन कईं कवियों ने अपनी कविताएं पढ़ी। सम्मेलन का संचालन दरवाजों के बाहर काव्य संग्रह से चर्चा में आए कवि जयपाल एवं युवा कवि योगेश शर्मा ने किया।
कवि सम्मेलन में राजस्थानी के प्रसिद्ध कवि रामस्वरूप किसान ने राजस्थानी में ही अपनी दो कविताएं- बाप के नाम बेटी का खत और अन्नदाता सुनाई। बेटी का खत कविता की कुछ पंक्तियों का हिन्दी अनुवाद देखिए
सच में पापा क्या परंपरा के कीचड़ में धंसा आपका पांव,
आधुनिकता के फूलों पर टिके दूसरे पांव के पास आ गया।
सुरजीत सिरड़ी ने अपनी दिलीए व भारतमाता शीर्षक की पंजाबी कविताएं सुनाई। कवि जयपाल ने अपनी पाखंडी शीर्षक कविता में कहा-
वे आर्थिक सुधार करेंगे,
मरने को मजबूर कर देंगे,
वे रोजगार की बात करेंगे,
रोटी छीन लेंगे,
वे शिक्षा की बात करेंगे,
व्यापार के केन्द्र खोल देंगे,
वे हमारे आंसू पोछेंगे और दृष्टि छीन लेंगे।
कवयित्री पूनम तुषामड़ ने कश्मीर शीर्षक कविता सुनाते हुए कहा-
कश्मीर एक घाटी है,
सिसकती-सी, सुबकती-सी, सुलगती सी,
किसी शायर ने जन्नत भी कहा था जिसको,
उसकी हकीकत अब कुछ ओर नजर आती है।
सिरसा से आए कवि हरभगवान चावला ने अपनी छोटी-छोटी कविताओं के जरिये श्रोताओं को सोचने को मजबूर कर दिया। वीरेन्द्र भाटिया ने अपने नव प्रकाशित काव्य संग्रह – ‘युद्ध लड़ रही हैं लड़कियां’ से ‘चिड़िया उड़ व हम जो हम हैं’ शीर्षक कविताएं सुनाई। कवि अरुण कैहरबा ने बच्चों के नाम कविता सुनाते हुए कहा-
हर बच्चा ही रहा है बोल,
खेल-मेल का मिले माहौल।
जिज्ञासा में जब कुछ पूछें,
प्रश्रों को ना करे कोई गोल।
शायर मंजीत भोला ने अपनी गजल में कुछ यूं कहा-
चरागों की तो आपस में नहीं कोई अदावत है,
अंधेरा मिट नहीं पाया उजालों की सियासत है।
बहाना मत जरा आंसू समझ लेना मेरे बाबा,
कतल मेरा करेंगे वो बताएंगे शहादत है।
दूसरी गजल में उन्होंने कहा-
संगदिल वो पानियों की धार से वाकिफ नहीं,
किसी तरह दिल में रहेगा प्यार से वाकिफ नहीं।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय महेन्द्रगढ़ में प्रोफसर एवं कवि अमित मनोज ने होर्डिंग कविता के जरिये राजनीति में विकल्पहीनता की स्थिति पर तंज कसते हुए कहा-
बेशक यह लोकतंत्र है,
लेकिन जनता के पास एक ही विकल्प है,
या यह मुख्यमंत्री या वह मुख्यमंत्री।
उन्होंने बिटिया की सैंडिल कविता भी सुनाई।दयाल चंद जास्ट ने तरन्नुम में अपनी कविता सुनाते हुए कहा कि
जो प्रात: प्यार बरसाएगी,
सबके तकरार मिटाएगी,
उस दिन की है इंतजरा मुझे।
उभरते कवि कपिल भारद्वाज ने अपनी कविता सुनाते हुए कहा-
अमरूद के
दूषित पत्ते पर बैठी तितली को
आभास हो चुका है
पुष्पगुच्छ कागजों से बनाए जा रहे हैं
कमल कीचड़ में नहीं
रक्त की दलदल में उगाए जा रहे हैं।
युवा कवि योगेश शर्मा व श्रद्धानंद राजली ने भी कविताएं सुनाकर खूब दाद पायी। ‘देस हरियाणा’ के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि अपने समय के साथ जुड़ी कविताएं केवल समाज की स्थिति ही नहीं दर्शाती बल्कि हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाती हैं। हरियाणा सृजन उत्सव एक ऐसा अवसर है, जिसमें प्रदेश ही नहीं विभिन्न राज्यों के रचनाकार आते हैं और अपनी रचनाएं एक-दूसरे को सुनाकर अपनी भूमिका की तलाश करते हैं।
अरुण कुमार कैहरबा,
हिन्दी प्राध्यापक,
वार्ड नं-4, रामलीला मैदान, इन्द्री, जि़ला-करनाल
हरियाणा-132041
मो.नं.-9466220145