
गुरू रविदास की जयंती के अवसर पर देस हरियाणा पत्रिका और सत्यशोधक फाउंडेशन की ओर से सावित्रीबाई-जोतिबा फुले पुस्तकालय, सैनी समाज भवन, कुरूक्षेत्र में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुभाष चन्द्र ने मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की।
गुरू रविदास के विचारों को समझना सबसे महत्वपूर्ण है। वंचित समुदायों के आगे बढऩे में शिक्षा क्रांतिकारी औजार है। गुरू रविदास जी ने समाज के वंचित समुदायों को स्वाभिमान बख्शा है। उनकी रचनाओं को गुरू ग्रंथ साहिब में स्थान मिला है, जोकि उनकी प्रतिभा का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि गुरू रविदास और डा. भीम राव अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना भी हमारा कर्तव्य है। अपने जीवन संघर्षों और प्रशासनिक अनुभवों के माध्यम से वंचित समाज के लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने का आह्वान किया।
समाज के पिछडे तबके में जब जागरूकता आती है तो वह बहुत आगे जाता है। जब समाज खुद को पहचानता है तो उसमें बहुत बड़ा बदलाव आता है। रविदास जी का साहित्य इस ओर साफ इशारा करता है।
रविदास का साहित्य बराबरी की मांग करता हुआ दिखलाई पड़ता है। जब किसी को जाति लिंग या धर्म के आधार पर किसी मनुष्य की गरिमा पर प्रश्न-चिन्ह लगता है तो वह मानवीय गरिमा की मांग करता है।रविदास का मत यह है कि ईश्वर का मिलना खुद का मिलना है। घट को पहचान कर ही ईश्वर को जाना जा सकता है। रविदास जी की दार्शनिक चेतना का स्वरूप उनकी रचना बेगमपुरा की परिकल्पना को देखकर समझा जा सकता है।
विचारधाराओं की तार्किक शब्दावलियाँ अनुभव के ज्ञान के आगे धरी की धरी रह जाएगी। यहीं वह शक्ति है जिसके कारण मध्यकालीन संत शास्त्रात करने तक की चुनौती देते दिखाई पड़ते है। इसी का जिक्र कबीर के साहित्य में मिलता है। कबीर कहते है –
संतो भाई आई ज्ञान की आंधी रे

संत रविदास भक्ति आन्दोलन की उपज है। गुरूनानक कबीर, रैदास, हमारे नायक है। उनके विचारों को समय की कसौटी पर कसना और प्रांसांगिकता पर चर्चा करना हमारी जरूरत है।
डा. सुभाष चन्द्र ने कहा कि महान समाज सुधारकों के साथ अनेक प्रकार की किवदंतियां और चमत्कार जुड़ जाते हैं। जिन पाखंडों व बुराईयों का उन महापुरूषों ने विरोध किया था, उन्हीं पाखंडों से उनका संबंध जोड़ दिया जाता है।उन्होंने कहा कि गुरू रविदास की महानता उनके चमत्कारों में नहीं है, उनके विचारों में है। रविदास जी की रचनाओं में सच्चाई प्राप्त करने और न्याय स्थापित करने का संघर्ष है।
जिन पाखंडों व बुराईयों का उन महापुरूषों ने विरोध किया था, उन्हीं पाखंडों से उनका संबंध जोड़ दिया जाता है। रविदास जी के चित्रों में भी उन्हीं के हाथ में माला पकड़ा दी गई है, उनके माथे पर तिलक भी लगा दिया। वे बनारस में पैदा हुए। कबीर और रविदास का एक ही समय है। वे हाथ से काम करते थे और बिना किए खाने वाले मुफ्तखोर लोगों द्वारा फैलाई जा रही बुराईयों का विरोध करते थे। उन्होंने पूर्व जन्म, पुनर्जन्म और आने वाले जन्म की दकियानूसी सोच और कुतर्कों का खंडन किया

डा. सुभाष चन्द्र ने कहा कि महान समाज सुधारकों के साथ अनेक प्रकार की किवदंतियां और चमत्कार जुड़ जाते हैं। जिन पाखंडों व बुराईयों का उन महापुरूषों ने विरोध किया था, उन्हीं पाखंडों से उनका संबंध जोड़ दिया जाता है। रविदास जी के चित्रों में भी उन्हीं के हाथ में माला पकड़ा दी गई है, उनके माथे पर तिलक भी लगा दिया। वे बनारस में पैदा हुए। कबीर और रविदास का एक ही समय है। वे हाथ से काम करते थे और बिना किए खाने वाले मुफ्तखोर लोगों द्वारा फैलाई जा रही बुराईयों का विरोध करते थे। उन्होंने पूर्व जन्म, पुनर्जन्म और आने वाले जन्म की दकियानूसी सोच और कुतर्कों का खंडन किया। उन्होंने जातपात, ऊंच-नीच और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करके समानता, न्याय और आजादी के मूल्यों पर आधारित बेगमपुर का सपना देखा था। लेकिन आज उनको मानने वाले लोग उनके मंदिर बनाने और मूर्तियां स्थापित करने के काम में लगे हैं। जिस विचारधारा का रविदास जी ने आजीवन विरोध किया, आज उसी को पोषित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गुरू रविदास की महानता उनके चमत्कारों में नहीं है, उनके विचारों में है। रविदास जी की रचनाओं में सच्चाई प्राप्त करने और न्याय स्थापित करने का संघर्ष है।
वरिष्ठ कवि जयपाल जी ने गुरू रविदास के सपनों पर आधारित जातिमुक्त समाज बनाने के लिए लोगों से एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज कर्मकांडों की बजाय हमारे समाज को सृजनशालाओं व अच्छी किताबों की जरूरत है।
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए वरिष्ठ कवि हरपाल गाफिल ने गुरू रविदास के विचारों पर चलने की प्रेरणा दी और देस हरियाणा पत्रिका को ऐसे कार्यक्रमों को लगातार करने के लिए बधाई दी। इस मौके पर अरूण कैहरबा, विकास साल्याण, ब्रजपाल, नरेश सैनी, सुनील थुआ, वीरेन्द्र वीरू, हरपाल गाफिल, विपुला, राजकुमार जांगडा, मनजीत भोला, कपिल भारद्वाज, बलदेव मैहरोक आदि मौजुद थे।
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