वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै – मंगतराम शास्त्री

वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै।
कितनिये झूठ बको मुंह आग्गै मोक्कल़वास्सा सै।

गाम घणखरा रोवै पर वें मौज हुई, कहरे
क्यूँ के पंचायत म्हं उनका कोरम खास्सा सै।

भेष बदलकै, दंगा करकै, आग लगावैं जो
कौण पिछाणै अपणे लाग्गैं उल्टा रास्सा सै।

बख्त बड़ा बलवान जगत म्हं रुत आणी-जाणी
सुणल्यो कल जो बज्जर था इब खील पतास्सा सै।

जिसनै घर कै बान्नी लाई भरी जवान्नी म्हं
आज सुणै ना कोए उसकी, के घर बास्सा सै।

नर-भेडा जिब न्हाकै लिकड़ै बाल़ां नै झटकै
भेड़ बणी जो भीड़ कहै,आ लिया चमास्सा सै।

जैसी उतणी देबी उनकी वैसे ऊत पुजारी
एक जिसे भगवान-भगत यू गजब तमास्सा सै।

मान लई जागीर तनै पर या भी सोच लिए
इस नगरी म्हं खड़तल का भी डांडल़वास्सा सै।

Avatar photo

मंगत राम शास्त्री

जिला जीन्द के टाडरथ गांव में सन् 1963 में जन्म। शास्त्री, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोतर। साक्षरता अभियान में सक्रिय हिस्सेदारी तथा समाज-सुधार के कार्यों में रुचि। अध्यापक समाज पत्रिका का संपादन। कहानी, व्यंग्य, गीत विधा में निरन्तर लेखन तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। बोली अपणी बात नामक हरियाणवी रागनी-संग्रह प्रकाशित।

More From Author

पंजाब का सांस्कृतिक त्यौहार लोहड़ी – डा. कर्मजीत सिंह अनुवाद – डा. सुभाष चंद्र

मैं हिन्दू, मेरा देश हिंदुस्तान पर यह हिन्दू राष्ट्र न बने – राजेंद्र चौधरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *