वक्ता और सरोता की जिब एक्के भास्सा सै।
कितनिये झूठ बको मुंह आग्गै मोक्कल़वास्सा सै।
गाम घणखरा रोवै पर वें मौज हुई, कहरे
क्यूँ के पंचायत म्हं उनका कोरम खास्सा सै।
भेष बदलकै, दंगा करकै, आग लगावैं जो
कौण पिछाणै अपणे लाग्गैं उल्टा रास्सा सै।
बख्त बड़ा बलवान जगत म्हं रुत आणी-जाणी
सुणल्यो कल जो बज्जर था इब खील पतास्सा सै।
जिसनै घर कै बान्नी लाई भरी जवान्नी म्हं
आज सुणै ना कोए उसकी, के घर बास्सा सै।
नर-भेडा जिब न्हाकै लिकड़ै बाल़ां नै झटकै
भेड़ बणी जो भीड़ कहै,आ लिया चमास्सा सै।
जैसी उतणी देबी उनकी वैसे ऊत पुजारी
एक जिसे भगवान-भगत यू गजब तमास्सा सै।
मान लई जागीर तनै पर या भी सोच लिए
इस नगरी म्हं खड़तल का भी डांडल़वास्सा सै।